अद्धयात्म

एक नहीं बल्कि पांच हैं भगवान शिव की काशी, जानें इनका पौराणिक महत्व

सनातन धर्म से संबंधित धार्मिक पुस्तकों में पंचकाशी (Panch Kashi) का उल्लेख मिलता है। इन पुस्तकों में वर्णित कथाओं के अनुसार, पृथ्वी पर एक नहीं बल्कि पांच काशी हैं। इन पांच काशियों को पंचकाशी नाम से संबोधित किया जाता है। आइए, आज जानते हैं कि कौन-सी हैं ये पांच काशी, क्या हैं इनके नाम और कहां स्थित हैं…

एक नहीं बल्कि पांच हैं भगवान शिव की काशी, जानें इनका पौराणिक महत्वये हैं पंच काशी के नाम

सबसे पहले गुप्त काशी, फिर उत्तरकाशी, तीसरे नंबर पर वाराणसी। चौथी है दक्षिण काशी, पांचवी (Panch Kashi) और अंतिम है शिव काशी। ये सभी काशी महादेव शिव को समर्पित हैं।

गुप्तकाशी

गुप्तकाशी उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ केदारनाथ को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़नेवाले रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड के समीप है। केदारनाथ यात्रा के दौरान गुप्तकाशी क्षेत्र में पड़ाव मुख्य रूप से पड़ाव डाला जाता है। यहां कई पर्यटक स्थल हैं। यहां पहुंचने के लिए कुछ दूरी की चढ़ाई पैदल करनी पड़ती है। प्रकृति के सौंदर्य से लबरेज इस मार्ग में चढ़ाई कब पूरी हो जाती है पता भी नहीं चलता। यहां पर अगस्त्य मुनि का आश्रम है और वाणासुर की राजधानी शोणितपुर के कुछ अवशेष देखने को मिलते हैं। परिजनों की ह’त्या के कारण पांडवों से नाराज शिव उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए यहां से भगवान शिव गुप्त होकर कैलाश पहुंच गए थे। इसलिए इस जगह का नाम गुप्तकाशी पड़ा।

उत्तरकाशी

उत्तराखंड राज्य में ऋषिकेश से करीब 155 किलोमीटर दूर स्थित है उत्तरकाशी जिला। इस जिले की राजधानी और मुख्य शहर का नाम भी उत्तरकाशी ही है। यहां भगवान विश्वनाथ का मंदिर है। इस मंदिर की स्थापना परशुरामजी द्वारा की गई थी। इस शहर में मंदिरों और तीर्थ स्थलों की बनावट एकदम काशी यानी वाराणसी की तरह है। केदारनाथ जानेवाले यात्री काशी के दर्शन करते हुए केदारनाथ पहुंचे इस उद्देश्य के साथ उत्तरकाशी को बसाया गया था। उत्तर दिशा में होने के कारण इसका नाम उत्तरकाशी पड़ा।

अविमुक्त क्षेत्र काशी

वाराणसी को बनारस और काशी नाम से भी जाना जाता है। यह क्षेत्र अविमुक्त क्षेत्र कहलाता है। यह विश्व के प्राचीन शहरों में से एक है और भारत का प्राचीनतम शहर है। माना जाता है कि इस शहर का यह नाम यहां बहनेवाली दो स्थानीय नदियों वरुणा और असि नदी के नाम पर वाराणसी पड़ा। ये नदियां यहां उत्तर व दक्षिण से आकार गंगा नदी में गिरती हैं। काशी का पौराणिक महत्व है। इसका महत्व इसी बात से प्रकट होता है कि स्वयं भगवान विष्णु भोलेनाथ की पूजा करने के लिए यहां आए थे। यह जगह भगवान शिव ने श्रीहरि विष्णु से अपने निवास के लिए ली थी। यहां स्थित कपाल मोचन तीर्थ वह स्थान है, जहां शिवजी को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी।

दक्षिणकाशी

मीरजापुर जिले से करीब 70 किलोमीटर दूर अदवा नदी के तट पर स्थित है दक्षिणकाशी। यहां दक्षिणकाशी मंदिर के अवशेष पुरातन काल में बने भव्य शिव मंदिर की गाथा गाते हैं। पुराणों में मिले वर्णन के अनुसार, इस स्थान का इतिहास करीब 2 हजार साल पुराना है। प्राचीन काल में यह स्थान मुख्य काशी अर्थात वाराणसी जाने के रास्ते का मुख्य पड़ाव था। यहां ठहरने और पूजा-पाठ करने के बाद लोग आगे बढ़ते थे। मंदिर के निकास द्वार पर गढ़ा एक शिलालेख इस काशी के महत्व को बताता है।

शिवकाशी

तमिलनाडु राज्य के विरुधुनगर में स्थित है शिवकाशी। वर्तमान समय में यह शहर पटाखा उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। 14वीं शताब्दी में मदुरै के महाराज हरिकेसरी परक्कीरामा पांडियन ने मदुरै के दक्षिण क्षेत्र पर शासन किया। वे विशाल शिवमंदिर का निर्माण कराना चाहते थे, इसके लिए वाराणसी गए और वहां से पूजा-अर्चना के बाद वरदान में मिला शिवलिंग और गाय लेकर वापस लौटते समय रास्ते में एक बेल के वृक्ष के नीचे विश्राम किया। बिल्व पत्र शिवजी को अति प्रिय होते हैं। विश्राम के बाद जब आगे बढ़ने की तैयारी की तो गाय यहां से आगे बढ़ी ही नहीं। फिर इसे शिवजी का आदेश मानकर महाराजा ने यहीं पर शिवलिंग स्थापित कर मंदिर का निर्माण कराया।

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