उत्तराखंड की संस्कृति एवं लोक विरासत के पुरोधा चंद्र सिंह राही (73) का रविवार सुबह दो बजकर 20 मिनट पर निधन हो गया। वह लंबे समय से हेपेटाइटिस बी से जूझ रहे थे और इसके चलते दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में भर्ती थे। रविवार को राही के बेटों ने दिल्ली में ही उनका अंतिम संस्कार किया। मुख्यमंत्री हरीश रावत के प्रतिनिधि के तौर पर शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी दिल्ली पहुंचे और राही को श्रद्धांजलि दी।
हिलमा चांदी कू बटना, रैंदी दिल मा तुमारी रटना। यही चंद्र सिंह राही का वह गीत है जो उन्हें बेहद पसंद था। अब लोगों के दिलों में भी राही की रटना रहेगी। लोग दिलों में राही को याद रखेंगे। उत्तराखंड के लोक गायक राही थे ही ऐसे, तभी तो खुद बीमार होते हुए अन्य मरीजों के लिए अस्पताल में भजन गा रहे थे।
लोक गायक चंद्र सिंह राही भले ही खुद बेहद बीमार थे, लेकिन शनिवार (9 जनवरी) शाम को जब उनके बगल में लेटे एक मरीज ने उनसे कुछ सुनाने की फरमाइश की तो उन्होंने बिना ना-नुकूर किए ‘पायो जी मैंने राम-रतन धन पायो’ भजन सुनाया। उनका गीत सुनते ही दर्द से कराह रहे मरीजों के चेहरे खिल उठे। यह देखकर राही को सुकून मिला।
घर हो या बाहर राही हमेशा यही कहते थे कि जागर गाया और सुना करो ना कि अंग्रेजी गाने। राही ने पोतों को भी जागर सिखाया। वह घर पर सभी से अपनी बोली में ही बात करने को कहते थे। राही के बेटे वीरेंद्र नेगी ने कहा कि पिता ने कितना कुछ जीवन में कर दिया, इन सबका हिसाब-किताब तो हमने कभी लगाया नहीं, लेकिन अब लगाएंगे। कहा कि जल्द ही पिता पर किताब लिखेंगे, जिसमें उनके जीवन से जुड़ी घटनाओं को शामिल किया जाएगा।
यही उनके मुंह से निकला अंतिम भजन हो गया। रविवार तड़के उनका निधन हो गया। शाम तक राही का यूं मुस्कुराना सभी के लिए गाना और सुबह निधन होने से अस्पताल में सभी सन्न थे। आसपास के मरीजों को यकीन नहीं हो रहा था कि हंसते-गाते राही उन्हें हमेशा के लिए छोड़ गए।राही के पास लोक गीतों और लोक संस्कृति से संबंधित जो जानकारी थी वह उसका संग्रहालय बनाना चाहते थे। यही वजह रही कि करीब तीन साल पहले उन्होंने दिल्ली में एक बड़े राजनेता से मुलाकात की थी, लेकिन रिस्पांस नहीं मिलने से उन्हें यह मलाल हमेशा रहा कि कहीं ऐसा ना हो जो जानकारियां उन्होंने मेहनत से जुटाई वह उनके साथ ही दुनिया से ना चली जाएं।