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पूर्णा मलवथ एक बार फिर चर्चा में हैं। कारण वे उन सबसे यंग लोगों में हैं जिनपर बायोपिक बनी है। पूर्णा नाम से फिल्म रिलीज हो चुकी है। दरअसल पूर्णा वेमिसाल व्यक्तित्व की है। वे आदिवासी परिवार से आती हैं। उनके माता-पिता खेतिहर मजदूर हैं। जिन्होंने खेलने-कूदने की उम्र में ऐसा कारनामा कर दिया है, जिसे आज तक इतनी कम उम्र में किसी ने नहीं किया। उन्होंने एवरेस्ट की चोटी तक फतह की जब उनकी उम्र केवल 13 वर्ष थी। पूर्णा के साथ मजेदार बात यह है कि एवरेस्ट पर चढ़ने से पहले उन्होंने किसी चोटी की चढ़ाई नहीं की थी। 10 नेपाली गाइडों और अपने एक 16 साल के दोस्त के साथ पूर्णा ने 25 मई 2014 को एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया। पूर्णा कहती हैं कि मुझे इस बात का अंदाजा एवरेस्ट चढ़ने के बाद भी नहीं था कि मैंने कोई रिकाॅर्ड बनाया है। मैंने यह तो अखबार पढ़कर जाना। जैसे ही मुझे यह जानकारी मिली मैंने खुद को दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की माना। पूर्णा के साथ खास बात यह भी है कि एवरेस्ट पर चढ़ाई के लिए उसने तिबब्त का रास्ता चुना। नेपाल के रास्ते से यह कठिन माना जाता है। लेकिन यात्रा कितनी कठिन रही इस बात का जवाब पूर्णा मजाकिया अंदाज में देती है कि एवरेस्ट पर चढ़ना उतना कठिन नहीं था जितना पैकेट वाला खाना खाना और सूप पीना।
एवरेस्ट से लौटने के बाद उन्होंने अपने साक्षात्कार में कहा कि, मैं अब सीधे घर जाऊँगी और मां के हाथ का चिकन और चावल खाऊँगी। उन्होंने आम का अचार और दाल-भात खाने की भी इच्छा जाहिर की। पूर्णा आंध्रप्रदेश के निजामाबाद जिले के जिस हिस्से में रहती हैं, वहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। बिजली-पानी का संकट है। वे राज्य सरकार के एक आवासीय स्कूल में पढ़ती थीं। इसी स्कूल में खेलकूद के एक सेशन के दौरान उनका सामना पहली बार राॅक क्लाइंबिग से हुआ। कोच शेखर बाबू ने उनकी प्रतिभा पहचानी और फिर पूर्णा को पहले हैदराबाद फिर दार्जिलिंग और आखिर में लद्दाख में पर्वतारोहण की टेªनिग दिलवाई। उन्हें केंद्र सरकार से मदद मिली। सात महीने की टेªनिंग के बाद उन्होंने अपना सफर शुरू किया। एवरेस्ट पर चढ़ाई के लिए जिस दिन निकलना था उसके एक दिन पहले ही चढ़ाई के दौरान 16 शेरपाओं की मौत हुई थी। इस खबर से पूरी दुनिया हतप्रभ थी और अनेक लोगों ने अपनी चढ़ाई की तैयारी छोड़ दी। ऐसे में पूर्णा को डर नहीं लगा? पूर्णा का जवाब था- ‘मुझे डर नहीं लगता। मुझे ट्रेनिग में यही सिखाया गया है कि एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने के लिए जरूरी है डर पर विजय प्राप्त करना। यही कारण है कि जब कई लोग बोरिया बिस्तर समेट लेने की बात कह रहे थे मैंने आगे बढ़ने की जिद की।
पूर्णा की सबसे बड़ी ताकत उसकी अदम्य इच्छाशक्ति है। एक बार ठान लेने के बाद वे पीछे हटना नहीं जानतीं। चढ़ाई के दौरान उन्होंने बर्फ के बीच पड़े छह शव देखे, लेकिन दूर-दूर तक घबराहट का नामोनिशान नहीं था। वे कहती भी हैं कि हिम्मत और कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो इंसान कुछ भी हासिल कर सकता है। उनका लड़की होना कितना बाधक रहा, इस पर पूर्णा का जवाब है लड़कियां कमजोर होती ही नहीं। बस पुरूष उन्हें जबरन कमजोर समझते हैं। मैं तो कह कर नहीं बल्कि काम कर यह साबित कर दिया है। आगे पूर्णा आईपीएस अधिकारी बनना चाहती हैं। इसके पीछे उनका तर्क है कि उनके पास बहुत ताकत होती है। इनकी बातें सब सुनते हैं और ये सबकी मदद करते हैं। दरअसल चढ़ाई अभियान के तैयारी के दौरान उनका सामना कई बार आईपीएस अधिकारियों से हुआ और वे उनसे प्रभावित होकर पूर्णा ने उन जैसा ही बनना ठान लिया। उन्हें यकीन है कि जिससे एवरेस्ट की चोटी को उन्होंने पाया, यह मंजिल भी वे पाएंगी। अपनी फिल्म को लेकर वे उत्साहित है लेकिन कहती हैं- ज्यादा गुमान नहीं करना। अभी बहुत आगे बढ़ना है।
(प्रस्तुति – पूजा कुमार : संकलन – प्रदीप कुमार सिंह)