एसयूवी और जनरेटर चलाने वाले किसानो का हक मार रहे
नई दिल्ली ः डीजल सब्सिडी का एक तिहाई हिस्सा एसयूवी कार चलाने वाले अमीर लोग मार लेते हैं और रही सही कसर उद्योग जगत वाले पूरी कर देते हैं. खेतीबारी करने वाले किसान महज 13 फीसद डीजल ही इस्तेमाल कर पाते हैं. पेट्रोलियम मंत्रालय और शोध एजेंसी नील्सन के ताजा सर्वे से ये खुलासा हुआ है. एक अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान भी महंगी एसयूवी और जनरेटर चलाने वाले 28,000 करोड़ रुपये की डीजल सब्सिडी फूंक जाएंगे. पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली ने यह सर्वेक्षण डीजल सब्सिडी पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से करवाया है. सरकार के पास अब डीजल सब्सिडी को लेकर कठोर फैसले लेने के लिए पुख्ता आधार हैं लेकिन चुनावी माहौल को देखते हुए यह संभव नहीं है. ऐसे में चुनाव बाद केंद्र की नई सरकार इन आंकड़ों के आधार पर डीजल सब्सिडी को घटाने का फैसला कर सकती है. पहली बार देश में डीजल की खपत का क्षेत्रवार आंकड़ा तैयार हुआ है. इन आंकड़ों से एक तरह से यह बात साबित होता है कि जिस उद्देश्य से डीजल सब्सिडी दी जाती है वह पूरी नहीं हो पा रही. कुल डीजल खपत का 70 फीसद डीजल यातायात क्षेत्र में जाता है. खेती में महज 13 फीसद इस्तेमाल होता है. ऐसे में अगर डीजल कीमत बाजार पर छोड़ा भी जाए तो खाने-पीने की चीजों की कीमतों पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस समय तेल कंपनियों को डीजल पर 8.47 रुपये प्रति लीटर का घाटा हो रहा है. इस हिसाब से चालू वित्त वर्ष के दौरान डीजल पर कुल 82,800 करोड़ की सब्सिडी देनी पड़ सकती है. निजी व कॉमर्शियल डीजल कारों में 22 फीसद डीजल की खपत होती है तो इस हिसाब से 18,216 करोड़ रुपये की सब्सिडी इन्हें जाएगी. अगर इनके साथ उद्योग जगत को जोड़ दें तो 25,700 करोड़ रुपये की सब्सिडी समाज के उस वर्ग को जाएगी जो आर्थिक तौर पर काफी संपन्न हैं. ध्यान रहे कि जनवरी, 2013 में केंद्र सरकार ने डीजल कीमत में हर महीने 50 पैसे की वृद्धि करने का फैसला किया था.