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ऐसे हालात से गुजरकर मज़दूरी करने कैरिबियाई मुल्क पहुंचे थे भारतीय

172 साल पहले आज ही के दिन भारतीय मजदूरों का पहला जत्था त्रिनिदाद के पोर्ट ऑफ स्पेन हार्बर पर पहुंचा था. इस जत्थे में 225 भारतीय मज़दूर थे, जिन्होंने ये सफ़र 103 दिनों में पूरा किया था.

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36 हज़ार किमी का सफ़र तय करके कैरिबियाई धरती पर पहुंचे मज़दूरों की समस्याएं सिर्फ यहां ख़त्म नहीं हुईं. प्रताड़ना, बीमारियां, रंगभेद और नशे जैसी कितनी ही समस्याएं थीं, जिन्हें लंबे अरसे तक उन भारतीय मज़दूरों ने झेला. त्रिनिदाद और टोबैगो सहित कई जगहों पर आज के दिन को इंडियन अराइवल डे के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन पढ़िए कैरिबियाई मूल के लेखक राजीव मोहाबीर के लेख के अंश, जो इस पूरे घटनाक्रम को एक अलग नज़रिए से देखते हैं.
घरेलू हिंसा के शिकार

राजीव मोहाबीर लिखते हैं कि अनुबंधित मज़दूरी ही तमाम समस्याओं की जड़ है. वो कहते हैं कि मैं कभी इंडियन अराइवल डे को नहीं मनाता हूं. उनके मुताबिक इस मज़दूरी के चलते न जाने कितनी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हुईं. ब्रिटिश अधिकारी जब भारतीय मज़दूरों को कैरिबियाई मुल्क लेकर गए तो उनमें पुरुषों के मुकाबले, महिलाओं की संख्या काफी कम थी.

वहां मौजूद अन्य पुरुष महिलाओं के प्रति आकर्षित होते थे. इनमें बागान के मालिक और मज़दूरों से काम कराने वाला प्रशासनिक अधिकारी भी था. इससे उन महिलाओं के पति बेवफाई के शक में उन पर अत्याचार और हिंसा करते थे. इस हिंसा के खिलाफ कैरिबियाई महिलाओं के अधिकारों की आवाज़ उठाने वाली जहाजी सिस्टर्स और सखी (साउथ एशियन वूमन) जैसे संगठन काम कर रहे हैं. अपने कार्यक्रमों के ज़रिए पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की आवाज़ बुलंद करती हैं.

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डायबिटीज़ की बीमारी
भारतीय मज़दूरों को जिन खास काम के लिए कैरिबियाई मुल्कों में लाया गया था, उनमें से प्रमुख था गन्ने की खेती. राजीव की उम्र 32 साल है और वो शुगर की बीमारी से गंभीर रूप से पीड़ित हैं.

राजीव के मुताबिक यही गन्ने की खेती उनके जैसे लाखों भारतीय मज़दूरों के लिए मुसीबत का सबब है, जो उन्हें अपने पूर्वज़ों से मिली है. जो भारतीय वहां दुनिया के लिए गन्ने से बने मीठे उत्पाद बनाते हैं, वो खुद उसका सेवन नहीं कर सकते. न्यूयॉर्क स्कूल ऑफ मेडिसन की रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशियाई निवासियों को अन्य लोगों की तुलना में सात गुना ज़्यादा शुगर टाइप 2 बीमारी होने का ख़तरा होता है. राजीव कहते हैं कि भारत छोड़ने के बाद उनके पूर्वज़ों का खानपान बदला जिसके कारण वो शुगर के शिकार हो गए.

रंगभेद के शिकार
राजीव के मुताबिक अंग्रेज़ों ने भारतीयों और मूल कैरिबियाई लोगों के बीच फूट डालने की कोशिश की. वो नहीं चाहते थे कि दोनों समुदायों के बीच में बेहतर संबंध बनें. वो एलिज़ाबेथ जयकरन के निबंधी द इंडो-कैरिबियन एक्सपीरियंस: नाउ एंड दैन का हवाला देते हुए कहते हैं कि अंग्रेंज़ों की रंगभेद नीति ही थी, जिनसे दो बड़े समुदायों को एक नहीं होने दिया.

जयकरन के लेख के मुताबिक अंग्रेज़ कैरिबियाई लोगों से कहते थे कि भारतीयों से बात मत करो, ये बीमारी लेकर चलते हैं. दूसरी तरफ यही बात वो अफ्रीकी लोगों के लिए भारतीयों से कहते थे.

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नशे की लत
राजीव कहते हैं कि ऐसा शायद ही कोई परिवार हो, जिसके घर रम के बगैर कोई कार्यक्रम पूरा होता हो. लेकिन रम और नशा उन परिवारों के जीवन का हिस्सा हो गया. अपनी थकान और मज़दूरी को भुलने के लिए वो नशे का सहारा लेने लगे.

जितना वो कमाते थे, उसको नशे में उड़ाने की लत उन मज़दूरों को लग गई. इसके चलते कई लोगों को अपनी ज़िंदगी भी गंवानी पड़ी. इनमें राजीव के एक करीबी रिश्तेदार भी शामिल थे.

172 साल बाद हालात
30 मई 1845 को भारतीय मज़दूरों का पहला जत्था त्रिनिदाद के पोर्ट ऑफ स्पेन हार्बर पहुंचा था. इस जत्थे में 225 भारतीय शामिल थे. 103 दिन की समुद्री यात्रा के दौरान उन्होंने 36 हज़ार किमी का सफ़र तय किया था.

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एक आंकड़े के मुताबिक 1845 से 1917 के बीच करीब 1.5 लाख भारतीयों को कैरिबियाई द्वीप समूह भेजा गया था. आज 172 सालों के बाद त्रिनिदाद में 35% भारतीय मूल की आबादी है, जो करीब 1.95 लाख से ज़्यादा हैं. जो मज़दूर इन मुल्कों में भेजे गए थे उनमें 89% हिंदू, 10% मुस्लिम और 0.04% ईसाई थे. आज भी सैकड़ों साल बाद ये लोग भारतीय त्योहारों को धूम-धाम से मनाते हैं.

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