केंद्रीय सांख्यिकी विभाग (सीएसओ) द्वारा जारी किए विकास दर के आंकड़ो के मुताबिक बिहार के विकास दर में इस साल भारी गिरावट देखने को मिल रही है. ताजा आंकड़े से बिहार में राजनीति भी तेज हो गई है. जेडीयू इसे फर्जी आकड़े बता रहा है तो विपक्ष सरकार की नीतियों को इसके लिए जिम्मेदार बता रहा है. हांलाकि ये अभी फाइनल आंकड़ा नहीं है.
6 फीसदी तक आई गिरावट
पिछले कई सालों से सीएसओ द्वारा जारी विकास दर के आकड़ों में बिहार अव्वल दर्जे पर था, लेकिन पिछले वर्ष बिहार के विकास दर में गिरावट आई है. वित्तीय वर्ष 2014-15 में सीएसओ द्वारा जारी आंकड़ों में बिहार की विकास दर 13.02 फीसदी थी, जो 2015-16 में घटकर 7.14 फीसदी हो गई. मतलब पिछले साल की तुलना में इसमें 5.88 फीसदी की गिरावट आई है. यह गिरावट स्थिर दर और वर्तमान दर दोनों पर हुआ है.
सीएसओ द्वारा जारी विकास दर के आंकड़ों को लेकर बिहार में राजनीति गर्म हो गई है. सत्तारुढ़ दल का आरोप है कि विकास दर के ये आकड़े पूरी तरह फर्जी हैं और राजनीतिक आधार पर तैयार किए गए हैं. सत्ता पक्ष जहां इसको लेकर केंद्र सरकार पर हमला करने से बाज नहीं आ रहा, वहीं बीजेपी राज्य सरकार को इस पर घेर रही है.
फर्जीवाड़े का पर्दाफाश किया जाएगा: JDU
सीएसओ द्वारा जारी प्रारंभिक आंकड़ों पर जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने विकास दर को पूरी तरह से फर्जी बताते हुए कहा कि जो आंकड़े जारी किए गए हैं, उसका भी सरकार अवलोकन करा रही है. उन्होंने कहा कि जारी आंकड़े में कृषि के विकास की कोई चर्चा ही नहीं है. जेडीयू प्रवक्ता ने कहा कि सीएसओ द्वारा जो आंकड़े जारी किए जाते हैं, उसकी एक सामान्य प्रक्रिया होती है, क्या उन प्रक्रियाओं का अनुपालन किया गया. उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट को जारी कर बिहार की छवि को बदनाम करने की कोशिश की गई. उन्होंने कहा कि केंद्र द्वारा किए जा रहे फर्जीवाड़े को सरकार वास्तविक आंकड़ों को संग्रह करने के बाद उजागर करेगी. बिहार के विकास दर को केंद्र ने जिस तरह फर्जी तरीके से चुनौती दी है, उसको सरकार स्वीकार करती है और आने वाले दिनों में इस फर्जीवाड़े का पर्दाफाश किया जाएगा.
बीजेपी ने किया जमकर हमला
वहीं बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने सत्ता पक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि पहले जब बिहार की विकास दर 13 फीसदी थी, तब भी आकड़ा सीएसओ ही जारी करती थी और अब भी आंकड़ा जारी करने का सोर्स भी वही है. मोदी ने कहा कि जब विकास दर ज्यादा आ रहा था, तब राज्य सरकार अपनी पीठ थपथपा रही थी, लेकिन जब विकास दर औंधे मुंह गिरी है तो केंद्र पर आरोप लगा रही है बिहार सरकार. सुशील कुमार मोदी ने कहा कि सूबे के मुखिया की रुचि राज्य के शासन प्रशासन में समाप्त हो गई है, यही कारण है कि विकास दर आधे पर पहुंच गई है. यह बहुत ही चिंता का विषय है कि जो बिहार कभी विकास दर के मामले में पहले स्थान पर था वही बिहार आज विकास दर के मामले में काफी पीछे चला गया है.
मांझी ने भी उठाए सवाल
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि बिहार सरकार को सीएसओ द्वारा आंकड़ों को स्वीकार करते हुए उस पर त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि बिहार का विकास दर आगे बढ़ सके. लेकिन बिहार के वर्तमान सरकार को विकास तो करना नहीं है. उन्होंने कहा कि जिस तरह बिहार सरकार इस आंकड़ों को फर्जी कह रही है तो सरकार को बताना चाहिए कि सही आंकडा क्या है. इस तरह से जनता को दिग्भ्रमित करने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए.
ये हैं कारण…
बिहार का विकास दर कई कारणों से कम दिख रहा है. सीएसओ पहली बार निर्माण और औद्योगिक क्षेत्र से संबंधित आंकड़े के लिए बिहार सरकार के आंकड़ों की जगह दूसरी एजेंसी के आंकड़ों के आधार पर विकास दर की गणना की. इस आंकड़ों के अनुसार पिछले दो-तीन साल में बिहार में निर्माण के क्षेत्र में गिरावट आई है. योजना विभाग की मानें तो दूसरी एजेंसी के आंकड़ों के कारण 67 हजार करोड़ रुपये का अंतर आया है. बिहार का जीडीपी अभी 6,86,000 करोड़ का है, जबकि सीएसओ ने विकास दर की गणना 6,19,000 करोड़ पर की है. विकास दर की गणना में आधार वर्ष को भी बदला गया है. पहले आधार वर्ष 2004-05 था जिसे बदलकर 2011-12 कर दिया गया है.