संपादकीय में कहा गया है कि, “दंगाइयों ने पुलिस पर भी हमला किया। यह पूर्व-नियोजित था और 15 मिनट के भीतर पेट्रोल बम का इस्तेमाल साफ तौर पर दिखाता है कि दंगों की तैयारी पहले की गई थी।”
इसमें यह भी दावा किया गया है कि सरकार ने एक महत्वपूर्ण शहर होने के बावजूद सरकार ने औरंगाबाद पुलिस आयुक्त को कई महीनों तक नियुक्त नहीं करने का फैसला किया। “यह फडणवीस के नेतृत्व वाले गृह विभाग की नाकामयाबी है कि इस तरह के एक बड़े और संवेदनशील शहर को पुलिस आयुक्त नहीं मिला। क्या फडणवीस ने पुलिस कमिश्नर नियुक्त नहीं करने का फैसला इसलिए किया जब तक उन्हें कोई भाजपा समर्थक न मिल जाए? पुलिस का कोई नेतृत्व नहीं है, यही कारण है कि यह दिशाहीन है।”
शिवसेना ने कहा, “राज्य में अपराध के अनुपात को देखते हुए ऐसा लगता है कि कानून और व्यवस्था को राज्य से दरबरदर कर दिया गया है। कोरेगांव-भीमा हिंसा के समय राज्य सरकार गहरी नींद में सोई हुई थी। पुलिस ने गोली नहीं चलाई। लेकिन औरंगाबाद में पुलिस ने पुलिस आयुक्त की गैरमौजूदगी में भी गोलीबारी की। यह भी एक रहस्य है।”
संपादकीय में कहा गया कि “मामूली मुद्दों” पर भड़काए गए दंगों से अरबों रुपये की सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान हुआ। इसमें आगे लिखा है, “यह एक सबूत है जो दिखाता है कि राज्य में कानून और व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। कोरेगांव-भीमा संघर्ष ने राज्य की छवि को नुकसान पहुंचाया है। मंत्रालय की दीवारों पर अहमदनगर में हुई हत्याओं के खून के धब्बे हैं और फडणवीस कहते हैं कि स्थिति नियंत्रण में है।” इसमें पूछताछ कमिटी और उच्च स्तरीय जांच को “बेमतलब” का बताया है।