कच्चा तेल और गिरता रुपया… मोदी सरकार के लिए बनेगा बड़ी मुसीबत
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और डॉलर के मुकाबले गिरता रुपया मोदी सरकार के लिए चुनौती खड़ा करेगा. रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के मुताबिक मोदी सरकार के सामने 5वें साल में इनके असर को नियंत्रण में रखने की सबसे बड़ी परीक्षा होगी. क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में कई चुनौतियां गिनाई हैं, जिनसे सरकार को अपने 5वें साल के कार्यकाल में जूझना पड़ेगा.
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने मोदी सरकार के चार साल पूरे होने के मौके पर एक रिपोर्ट जारी की है. इसमें उसने अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर मोदी सरकार के सामने खड़ी कई चुनौतियों को लेकर बात की है. क्रिसिल ने कहा है, ”5वें साल में रोजगार, विदेशी निवेश और मैन्युफैक्चरिंग के स्तर पर मोदी सरकार की परीक्षा होगी.”
रिपोर्ट में कहा गया है कि चार साल के दौरान मोदी सरकार के लिए महंगाई, जीडीपी और वित्तीय घाटे के मोर्चे पर ज्यादा चुनौतियां नहीं रहीं. इस दौरान नीति निर्धारकों ने ऐसे कदम उठाए, जिससे कि मध्य और लंबी अवधि में अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंच सके.
क्रिसिल ने कहा है, ”हालांकि रोजगार, ग्रामीण संकट, निवेश का बिगड़ता माहौल, कम क्रेडिट ग्रोथ और कम होते निर्यात की वजह से इकोनॉमी के सामने कई चुनौतियां खड़ी हुई हैं. इसके अलावा हाल ही के दिनों में जिस तेजी से कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है, उससे हालात और बिगड़े हैं.” क्रिसिल ने 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर कहा है कि इन हालात के बीच देखना होगा कि सरकार राजकोषीय स्तर पर कितनी समझदारी से काम करती है.
क्रिसिल का कहना है कि इन चार साल के दौरान सरकार को महंगाई के मोर्चे पर ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा. इस दौरान बेहतर मानसून और कच्चे तेल की कम कीमतों ने चीजें नियंत्रण में रखीं. लेकिन अब कच्चा तेल ही सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है. इसकी वजह से देश में लगातार पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ रही हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में महंगा हो रहा पेट्रोल और डीजल महंगाई बढ़ाने का काम कर सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक कच्चे तेल में प्रति बैरल 10 डॉलर की बढ़ोतरी से वित्तीय घाटा 0.08 फीसदी बढ़ जाएगा. इसके अलावा चालू खाता घाटा भी 0.40 फीसदी बढ़ेगा.
दूसरी तरफ, रुपया भी डॉलर के मुकाबले लगातार गिर रहा है. यह फिलहाल 1 डॉलर के मुकाबले 68 रुपये के स्तर पर बना हुआ है. इससे मोदी सरकार के सामने कई और चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं. ऐसे में इनसे निपटने के लिए सरकार को काफी ज्यादा मशक्कत करनी पड़ सकती है.