नई दिल्ली: ‘नेशनल हेराल्ड’ अखबार मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी को कोर्ट ले जाने वाले सुब्रमण्यम स्वामी हमेशा से अलग-अलग कारणों से चर्चित रहे हैं। स्वामी को गणित और आर्थिक मामलों के साथ-साथ कानून का भी जानकार माना जाता है। वे कभी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी हुआ करते थे, तो समय-समय पर भाजपा के भी खास रहे हैं। हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी ने हमेशा उनसे दूरी रखने की कोशिश की, फिर भी भाजपा के कुछ बड़े नेताओं का उनसे जुड़ाव रहा। हम आपको स्वामी के अब तक के सफर के बारे में बताने जा रहे हैं :
- गणितज्ञ बनने का था सपना: सुब्रमण्यम स्वामी का सपना अपने पिता की तरह गणितज्ञ बनने का था। गौरतलब है कि उनके पिता सीताराम सुब्रमण्यम प्रसिद्ध गणितज्ञ थे। सुब्रमण्यम स्वामी ने हिंदू कॉलेज से गणित में स्नातक की डिग्री ली। इसके बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए भारतीय सांख्यिकी इंस्टीट्यूट कोलकाता चले गए।
- सांख्यिकी में शोध: स्वामी ने सांख्यिकी पर शोध भी किया है। उन्होंने 1963 में एक शोध पत्र लिखा। इसमें उन्होंने बताया कि महालानोबिस की सांख्यिकी गणना का तरीका मौलिक नहीं है, बल्कि यह पुराने तरीके पर ही आधारित है।
- ऐसे आए दिल्ली: सुब्रमण्यम स्वामी ने महज 24 साल की उम्र में ही हॉवर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल कर ली थी। इसके बाद 27 साल में उन्होंने हॉर्वर्ड में ही गणित की टींचिंग शुरू कर दी थी। बाद में अमर्त्य सेन ने 1968 में स्वामी को दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया और स्वामी दिल्ली आ गए। साल 1969 में वे आईआईटी दिल्ली से जुड़े।
- एक दिन के लिए वापस गए, फिर इस्तीफा दिया: स्वामी के अलग-अलग सेमीनारों में दिए गए आर्थिक सुधार संबंधी विपरीत बयानों से इंदिरा गांधी नाराज हो गईं। बाद में उन्हें दिसंबर, 1972 में आईआईटी दिल्ली की नौकरी से बाहर कर दिया गया। लगभग यहीं से स्वामी की अदालती लड़ाई का दौर शुरू हुआ। उन्होंने इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में अपील की। इतना ही नहीं साल 1991 में इसका फैसला भी उनके पक्ष में आया। स्वामी ने एक दिन के लिए आईआईटी ज्वाइन किया और फिर इस्तीफा दे दिया।
- 1974 में पहुंचे राज्यसभा: एक तरह से स्वामी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1974 में हुई, जब नानाजी देशमुख ने जनसंघ की ओर से उनको राज्यसभा में भेजा।
- जनता पार्टी की स्थापना: सुब्रमण्यम स्वामी 1977 में जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। साल 1990 के बाद जनता पार्टी के अध्यक्ष भी रहे।
- राजीव से नजदीकी: स्वामी एक समय राजीव गांधी के करीबी थे। उन्होंने बोफोर्स कांड के दौरान राजीव गांधी का समर्थन किया था। यहां तक कि उन्होंने सदन में सार्वजनिक तौर पर कहा था कि राजीव ने कोई पैसा नहीं लिया है।
- वाणिज्य एवं कानून मंत्री: स्वामी को प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार में वाणिज्य एवं कानून मंत्री बनाया गया था। नरसिम्हा राव सरकार के समय भी विपक्ष में होने के बावजूद उनको कैबिनेट रैंक का दर्जा मिला हुआ था।
- भाजपा से नरम-गरम रहा रिश्ता: सुब्रमण्यम स्वामी ने 1999 में भारतीय जनता पार्टी की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को खतरे में डाल दिया था। दरअसल इस गठबंधन सरकार की अहम सहयोगी जयललिता ने स्वामी को वित्त मंत्री बनाने की जिद पकड़ ली थी। स्वामी ने भी सरकार गिराने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने जयललिता और सोनिया गांधी को करीब लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके लिए स्वामी ने मार्च, 1999 में चाय-पार्टी आयोजित की, जिसमें उन्होंने सोनिया और जयललिता को आमंत्रित किया, जिससे दोनों करीब आ गईं। हालांकि वे सरकार गिराने की कोशिश में सफल नहीं हो पाए। लालकृष्ण आडवाणी हमेशा से स्वामी को पार्टी में वापस चाहते थे, हालांकि वाजपेयी के रहते वे भाजपा में पैर नहीं जमा पाए, लेकिन 11 अगस्त, 2013 को अपनी पार्टी का विलय भारतीय जनता पार्टी में कर दिया। बाद में 2014 के चुनावों से ठीक पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने स्वामी को वापस बीजेपी में शामिल करा लिया।
नेशनल हेराल्ड से पहले भी सोनिया गांधी के लिए स्वामी मुसीबतें खड़ी कर चुके हैं। उन्होंने उन पर पुरातत्व की चीजों की तस्करी का मामला दर्ज कराया था। इसके साथ ही वे उनकी शैक्षणिक योग्यता को भी चुनौती दे चुके हैं।