उत्तराखंड

करोड़ों का पैकेज छोड़ मन की सुनी तो करोड़ों दिल पर किया राज

book-566106dc19f43_exlstदेहरादून के इस युवा ने कंपनी निदेशक पद पर करोड़ों रुपए का पैकेज छोड़कर हाथ में कलम थाम ली, कुछ दिन मन लगाकर लिखा और आज अरविंद पाराशर सबके लिए मिसाल बन गए हैं।

अरविंद की पहली ही पुस्तक ‘कबीरा नॉट अंटिल आई डाई’ ने देशभर में युवाओं के बीच धमाल मचा दिया। पहली पुस्तक को शानदार कामयाबी मिलने से उत्साहित अरविंद दो नई पुस्तकें लिख रहे हैं। जल्द दोनों पुस्तकें पाठकों के हाथ में होंगी।

विजय पार्क निवासी स्व. बीएल शर्मा के बेटे अरविंद की प्राथमिक शिक्षा मार्शल स्कूल से हुई। इसके बाद उन्होंने डीएवी पीजी कॉलेज से बीएससी किया। कंप्यूटर कोर्स करने के बाद कई कंपनियों में जॉब की।

आखिरी जॉब एक इंडो अमेरिकन कंपनी में बतौर डायरेक्टर की मिली, जिसमें एक करोड़ रुपए से अधिक पैकेज था। लेकिन अरविंद का दिल तो कलम में बसता था।

बचपन के दोस्त भी उनकी लेखनी के कायल थे। आखिरकार अरविंद ने जॉब छोड़कर लेखन में किस्मत अजमाने का कठिन फैसला लिया। लव, एडवेंचर और थ्रिल से भरपूर उनकी पहली पुस्तक ‘कबीरा नॉट अंटिल आई डाई’ की लांचिंग अक्तूबर 2014 में हुई। देखते ही देखते यह किताब युवाओं की पसंद बन गई।

क्रॉसवर्ड की शीर्ष 20 में अरविंद की पुस्तक देश में 12वें स्थान पर आ चुकी है। अमेजन वेबसाइट पर दो बार सेलिंग में शीर्ष पर पहुंच चुकी है। अरविंद ने बताया कि अमेजन पर उनकी बुक के 42 रिव्यू हैं, जिनमें 4.9 की रेटिंग मिली हुई है। इसकी सफलता के बाद अब अरविंद दो और पुस्तकें लिख रहे हैं। जल्द ही यह भी लांच की जाएंगी।

अरविंद का कहना है कि अक्सर मां बाप अपने बच्चों पर नौकरी करने का दबाव बनाते हैं। कई बार युवा घर की जिम्मेदारियों के दबाव में नौकरी करते हैं और अपने मन की सोच को दबा देते हैं।

अरविंद के दोस्त कोमल सिंह का कहना है कि वह बचपन से ही उन्हें लिखने को प्रेरित करते थे, लेकिन जिम्मेदारियों की वजह से अरविंद पहले लाइफ में कुछ करना चाहते थे।

आखिरकार उन्होंने अपने मन की सुनी और उनको बड़ी कामयाबी मिल गई। ऐसे तमाम उदाहरण देखने को मिलेंगे, जब किसी ने मन का किया और कामयाब हुए।

अरविंद की यह पुस्तक 70 के दशक की एक कहानी पर आधारित है, जब भारत के युवा रूस में अध्ययन के लिए जाते थे। ऐसा ही एक लड़का जब रूस में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करता है तो उसे लगता है कि उसे पत्रकार बनना चाहिए।

पत्रकारिता का कोर्स करते वक्त उसे एक अफगानी लड़की से प्यार हो जाता है। बाद में एक प्रोफेसर पात्र कबीर को जासूस बनाकर अफगानिस्तान भेजता है। इस बीच कबीर को अहसास होता है कि वह जो कर रहा है गलत है, लेकिन तब तक बात बिगड़ चुकी थी।

उसे अपराध बोध होता है कि उसकी जासूसी की वजह से हजारों लोग लड़ाई में मारे जा रहे हैं। उसकी प्रेमिका नूश उसे इंडिया वापस जाने को कहती है, लेकिन वह लड़ाई की हानि कम होने तक वापस नहीं जाने की बात कहता है।

मजबूरी में नूश इंडिया आ जाती है, लेकिन वह लड़ाई रुकवाने के प्रयास में 10 साल जेल में रहता है। कबीर को यह आभास होता है कि नूश जिंदा है, जबकि नूश को यह अहसास होता है कि कबीर अब इस दुनिया में नहीं है। आखिर 10 साल बाद दोनों मिलते हैं और उनकी प्रेम कहानी पूरी होती है।

 

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