नई दिल्ली : सत्ता हासिल करने लिए कृषि ऋण माफी राजनीतिक दलों के लिए एक औजार बन गई है। कुछ राज्यों में सत्ता में आई नई सरकारें कृषि ऋण माफी की घोषणा की तैयारी कर रही हैं, इस बात को जानते हुए कि पहले ऐसा कदम उठाने वाली सरकारों को इसे लागू करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। पिछले दिनों आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी साफ किया कि राजनीतिक पार्टियों को इस तरह के वादे करने से बाज आना होगा, क्योंकि अर्थव्यवस्था पर इसका प्रतिकूल प्रभाव देखा जा रहा है। राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में मुंह की खाने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले अपना खोया जनाधार पाने के लिए इससे जुड़ी एक नेशनल स्कीम पर विचार करने की बातें सामने आ रही है।
कृषि ऋण माफी जैसे लोक-लुभावन औजार के जरिये राजनीतिक दल आसानी से सत्ता पाने में कामयाब तो हो जाते हैं, लेकिन इसका खामियाजा पूरे सिस्टम को भुगतना पड़ता है। हम आपको कृषि ऋण माफी की हकीकत से रूबरू करा रहे हैं कि यह किसानों का संकट दूर करने में बिल्कुल भी कारगर साबित नहीं हुआ है, बल्कि इससे मुश्किलें और बढ़ी ही हैं। कृषि ऋण माफी की राज्य को भारी कीमत चुकानी पड़ती है। हर विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों की यह जैसे आदत सी बनती जा रही है कि कृषि ऋण माफी उनके चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा होना ही होना है। हर विधानसभा चुनाव में ऋण माफी की घोषणा की जा रही है। इसे इस ग्राफ से समझते हैं।