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कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए एचएएल के पास नहीं हैं पैसे

रक्षा का सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) पहली बार इस समय पैसों की कमी से जूझ रहा है। उसे अपने कर्मचारियों को तनख्वाह देने के लिए पैसे उधार लेने पर मजबूर होना पड़ा है। अप्रैल से कंपनी के काम में ठहराव आ गया है और उसके कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए एचएएल के पास नहीं हैं पैसेपास नई खरीद करने और यहां तक कि विक्रेताओं को भुगतान करने तक के लिए पैसे नहीं हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, एचएएल के पास केवल तीन महीनों तक अपने 29,000 कर्मचारियों को तनख्वाह देने के लिए 1,000 करोड़ रुपये थे। गुरुवार को एचएएल के सीएमडी आर माधवन ने कहा, ‘हमारे हाथ में मौजूद कैश की स्थिति खराब है, हमें लगभग 1,000 करोड़ रुपये ओवरड्राफ्ट (ओडी) के जरिए पैसा उधार लेने पर मजबूर होना पड़ा। 31 मार्च तक हम 6,000 करोड़ के घाटे में चले जाएंगे जो अस्थिर कर देगा। हमें रोजाना के काम के लिए पैसे लेने पड़ते हैं लेकिन परियोजना खरीद के लिए नहीं।’

एचएएल अपनी ओडी सीमा को वर्तमान की 1,950 करोड़ रुपये से बढ़ाने पर काम कर रहा है। भारतीय वायुसेना पर एचएएल के करोड़ों रुपये बकाया है जिसकी वजह से उसकी स्थिति डावांडोल हो गई है। वायुसेना ने कंपनी को सितंबर 2017 से अभी तक भुगतान नहीं किया है। वायुसेना पर अक्तूबर तक की बकाया राशि 10,000 करोड़ रुपये है। 31 दिसंबर तक यह राशि बढ़कर 15,700 करोड़ रुपये हो चुकी है।

माधवन का कहना है कि 31 मार्च तक यह राशि 20,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगी। रक्षा मंत्रालय ने साल 2017-18 के बजट में 13,700 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। वहीं 2018-19 के दौरान ही 33,715 करोड़ रुपये के संशोधित बजट को मंजूरी दी गई। उन्होंने कहा, ‘इसमें से 20,287 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की जा चुकी है जबकि 16,420 करोड़ रुपये की राशि बकाया है। आज तक बकाया राशि 15,700 करोड़ रुपये हो चुकी है। इनमें से कोई भी राशि हमें एडवांस में नहीं चाहिए। यह उन उत्पादों और सेवा का बकाया है जिनकी हम पहले ही डिलीवरी कर चुके हैं।’

15,700 करोड़ रुपये में से 14,500 करोड़ रुपये भारतीय वायुसेना पर बकाया हैं। बाकी की बकाया राशि का भुगतान भारतीय सेना, नौसेना और तटरक्षक बल को करना है। सितंबर 2017 से भारतीय वायुसेना ने केवल 2,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया है। वर्तमान में यह बकाया राशि 14.500 करोड़ रुपये पर पहुंच गई है। एचएएल का व्यापार पूरी तरह से रक्षा मंत्रालय पर निर्भर करता है जो सशस्त्र बलों को बजट आवंटित करती है और वह बदले में एचएएल को पैसा देते हैं।

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