अन्तर्राष्ट्रीय

कलंदर की मजार पर आतंकी हमला और पाकिस्तानी रक्तबीज

”ओ लाल मेरी पत रखियो बला झूलेलाल,
सिदणी दा सेवण दा सखी शाहबाद कलंदर,
दमादम मस्त कलंदर…।“
हम इस सूफी भजन को सुनते हैं और उसकी दार्शनिक उच्चता तथा सांगीतिक गहराई में डूब जाते हैं। भारत और पाकिस्तान के अनेक नामी कलाकारों ने, जिनमें नूरजहां, नुसरत फतहअली खां, आबिदा परवीन, साबरी ब्रदर्स और वडीली ब्रदर्स शामिल हैं, सूफी संत के सम्मान में जिस गीत को अपनी आवाज से नवाजा है। पर यह भजन जिसकी अभ्यर्थना में गाया गया है, उसी की दरगाह पर उसके चाहने वालों पर आतंकी हमला किया गया।


लाल साईं, झूलेलाल और मस्त कलंदर के नामों से मशहूर सूफी संत लाल शाहबाज कलंदर की दरगाह पर 16 फरवरी को आतंकी हमला हुआ। 100 मरे 100 से ज्यादा घायल हुए। आईएस ने जिममेदारी ली। जिस समय हमला हुआ दरगाह के परिसर में सैंकड़ों की तादाद में लोग मौजूद थे और सूफी नृत्य धमाल चल रहा था। पाकिस्तान ने 15 फरवरी को ही ऐलान किया था, कि वह अपने देश से सभी आतंकवादियों को खत्म कर देगा। 

आइएस के एक आत्मघाती हमलावर ने पहले तो दरगाह के गोल्डन गेट से एक हथगोला अंदर फेका, पर वह फटा नहीं। ऐसा होने पर उसने अपनी कमर में बंधे हुए विस्फोटक को उड़ा दिया। यह हमला महिलाओं के लिये सुरक्षित क्षेत्र में किया गया था। यह जगह पाकिस्तानी हैदराबाद से कोई 130 किलोमीटर की दूरी पर और अलग-थलग से इलाके में है। यह दरगाह 1356 में बनी थी। ईरान के शाह अहमद रजा पहलवी ने इस दरगाह में सोने से जड़े हुए दरवाजे लगवाये थे। गुरुवार के दिन दरगाह में भारी भीड़ हुआ करती है। लोग इबादत और सूफी नाच धमाल में शामिल होने के लिये आते हैं। सूफी संत पाकिस्तान और अफगानिस्तान में बहुत लोकप्रिय हैं। भारत सहित कई और देशों में भी उनको मानने वालों की कमी नहीं है।

 सूफी दरगाहों पर आतंकवादी समूह तहरीक ए तालिबान हमला करता रहा है। सन् 2006 से लेकर अब तक के 10 साल के अरसे में 25 दरगाहों पर हमला किया जा चुका है। हमलों के प्रत्यक्ष कारण चाहे जो भी हों, पर इसका बीज पाकिस्तान के जन्म की सोच के साथ ही पड़ गया था। दोनों का नाभि-नाल संबंध है। भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन के दिनों में ही जिन्ना ने हिंदु और मुसलमानों को दो राष्ट्रीयताएं बताकर जिस सांप्रदायिक ज़हर का आगाज किया था, आज वह देश उसी की फसलें काट रहा है। इसे सऊदी अरब से आये वहाबी इस्लाम के अलक्बरदारों ने और भी भयानक बना दिया। उसकी सांप्रदायिक और दूसरे समुदायों को अपना शत्रु समझने की सोच को उसी ने जन्म दिया। वहाबी इस्लाम ने ऐसा विचार पाकिस्तान और पाकिस्तानियों को दे दिया, जिसमें हर वक्त़ एक ’दुश्मन समुदाय‘ की अवधारणा बनाये रखना, अनिवार्यता ही बन गया।

इस सोच के चलते ही पाकिस्तान के निर्माताओं ने पहले भारत के हिंदुओं को अपना शत्रु घोषित किया था। उनसे अपने को अलग कर लेने के बाद, पाकिस्तान में रहने वाले बचे-खुचे हिंदुओं और सिक्खों पर कहर बरपाया। उन्हें मिटाकर फुरसत पायी तो अपने ही मजहब में उन्हें अपने दुश्मन नज़र आने लगे। बंगाली मुसलमानों को उन्होंने अपनी हिकारत का निशाना बनाया। कहा कि वे काले, नाटे और बदसूरत हैं। पत्तलों में खाना खाने वाले जाहिल लोग हैं। नफरत इतनी बढ़ी कि आखिरकार एक अलग मुल्क बांग्लादेश का निर्माण हुआ। उनसे निजात पाने के बाद उनकी नज़र अहमदिया मुसलमानों पर पड़ी। कहा गया कि वे मुसलमान ही नहीं हैं और इसलिये उन्हें धरती पर रहने का हक भी नहीं है। उनकी मार-काट शुरु हुई।

आज भी पाकिस्तान एयरलाइंस में यात्रा करने के लिये प्रत्येक मुसलमान को यह लिखकर देना होता है कि वह अहमदिया मुसलमान नहीं है। अहमदियों को निबटाने के बाद वे शियाओं के दुश्मन हो गये। लश्कर ए झांगवी और सिपाह ए साहिबा नाम के संगठनों ने अपने को शियाओं की हत्या के काम में खपा दिया। फिर हजारा समुदाय को नेस्तनाबूत करने निकल पड़े। एक दिन में 100-100 लोगों की हत्याएं की गयीं। उनके बाद बलूचियों का नंबर आया। खुद प्रधानमंत्री भुट्टो ने बलूचियों पर वायुसेना से बम गिरवाये थे। बलूचिस्तान के सुई नामक इलाके में सुई गैस प्लांट है, जहां से सारे पाकिस्तान को गैस की आपूर्ति की जाती है, परंतु बलूचियों को गैस का एक औंस भी नहीं मिलता। इसके बाद सिंधियों का नंबर आया। मुहाजिरों यानी 1947 में बिहार और उप्र से गये मुसलमानों को भी नहीं बख्शा गया।

लगता है पाकिस्तान का वह खुंखार विचार जब सारी दुनिया से दूसरी कौमों को मिटा देगा, तो एक दुश्मन कौम की अनिवार्यता के सिद्धांत का पालन करने के लिये, अपनी ही छाया के खिलाफ भी जिहाद पर निकल पड़ेगा।

भारत ने अपनी स्वतंत्रता हासिल करने के बाद, अपने लिये धर्मनिरपेक्षता को चुना था। उसी का परिणाम है कि भारत में 20 करोड़ मुसलमानों सहित अनगिनत कौमें और समुदाय, धर्म और भाषाएं, जीवन शैलियां और संस्कृतियां पल-बढ़ रही हैं। भारत की मजारों और दरगाहों पर बम नहीं गिराये जा रहे हैं। पाकिस्तान ने इस्लामिक राज्य होना मंजूर किया। ऐसा करना उसकी मजबूरी भी थी, और ज़रूरत भी, क्योंकि भारत से अलग होने के लिये उसने मुसलमानों की सुरक्षा और तरक्की के साथ मजहबी आज़ादी का सवाल भी उठाया था।
इसका सबसे दुखद पहलु यह है कि जिन्ना के दिमाग में द्वि-राष्ट्रवाद का सिद्धांत भरने का काम, उन्हीं इकबाल साहब ने किया था, जिन्होंने “सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा“ जैसा कालजयी तराना रचा है।

जिन्ना तो राजनीति से मुंह मोड़कर इंग्लेंड में बस गये थे। रवींदनाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार मिलने से इकबाल खपा थे। उनका मानना था कि उनसे बड़ा दार्शनिक और कोई हिंदुस्तानी हो ही नहीं सकता। इकबाल इंग्लेंड गये थे और जिन्ना को अलग पाकिस्तान बनाने के लिये मजबूत किस्म के तर्क देकर उन्हें भारत वापस ले आये थे। यह एक कड़वा सत्य है कि वे अपनी ही पंक्ति भुला बैठे थे कि ’मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना। “

हिलेरी क्लिंटन ने कभी कहा था-“ अगर आप अपने आंगन में इसलिये सांप पालोगे, कि वह पड़ोसियों को जाकर काटेगा, तो आप भ्रम में हो, वह एक दिन आपको भी काटेगा।“ हिलेरी का कथन आज सच हो रहा है। उनके सांप उन्हीं पर हमला कर रहे हैं। बच्चों के स्कूल पर हमला वहीं हुआ। नन्हे-मुन्ने बच्चे खून से रंग दिये गये थे। तब भी वहां के एक रिटायर जनरल ने टीवी पर आकर पूरी बेशर्मी के साथ कहा था, कि जिन आतंकवादियों की लाशें बरामद हुई हैं, जांच से पता चला है कि उनका खतना नहीं हुआ है।

यानी कि वे गैर मुसलमान लोग हैं। इशारा भारत की ओर था। वे अब भी इस झूठ पर भरोसा करने वाले मासूम बने हुए हैं कि एक मुसलमान, दूसरे मुसलमान पर हमला नहीं कर सकता। उसे नहीं मार सकता। तो फिर आज सीरिया में कौन मर रहा है और कौन मार रहा है? सत्य तो यही है कि दोनों ही मुसलमान हैं। सिंध पर आतंकी हमले और उसके पीछे विदेशी हाथ होने का इल्जाम लगाने के अगले ही दिन पाकिस्तान ने अपने ही देश के 100 आतंकवादियों को मार गिराने का कारनाता किया है।

कैसा विरोधाभास है, कि हमला तो विदेशी आतंकवादियों ने किया है, पर मारे जा रहे देशी आतंकी। पाकिस्तान सच्चाई कबूल करने से इतना डरता क्यों है? पाकिस्तान ने रक्तबीज पैदा किये हैं। रक्तबीजों की नस्ल के निर्माता होने की कीमत भी वही चुका रहा है, पर इस सदी का सबसे भयानक सच यह है कि मानवता नष्ट हो रही है। (लेखक पूर्व सांसद और कानून विशेषज्ञ है)|

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