कलियुग के ‘श्रवण’: 20 साल से मां को कांवड़ में बैठाकर करा रहे तीर्थ यात्रा
दरअसल, कैलाश गिरी पिछले 20 वर्षों से अपनी मां को कांवड़ के सहारे कंधों पर उठाकर तमाम तीर्थों की यात्रा करा चुके हैं. अब वे मां को लेकर वृंदावन यात्रा पर निकले हैं.
इस दौरान वे कुछ देर वृंदावन से पहले ग्वालियर शहर में रुके. जहां उन्हें देखने के लिए सैकड़ों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी. जहां लोग कलियुग के श्रवण कुमार और उनकी बुजुर्ग मां के श्रद्धा भाव से पैर छूने लगे.
1992 में शुरू हुआ सिलसिला
कैलाश ने बताया कि, वे सबसे पहले 2 फरवरी 1992 को मां कीर्तिदेवी को लेकर चारों धाम की यात्रा पर निकले थे. 92 वर्ष की मां को कांवड़ में बिठाकर उन्होंने चारों धामों के अलावा नर्मदा यात्रा, ज्योतिर्लिंग की परिक्रमा करा दी है. अब वे वृंदावन से लौटकर उनकी यात्रा पूरी होगी.
बेटा ईश्वर का वरदान
मां कीर्तिदेवी ने बताया कि, बचपन में कैलाश पेड़ से गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गया था. उस वक्त मैंने मुराद मांगी कि बेटे के ठीक होने पर चार धाम की तीर्थ यात्रा करूंगी. जिसके बाद ठीक हो गया. जब कैलाश को मांग की उस प्रतिज्ञा का पता चला, तो उन्हें वह खुद कंधे पर बिठाकर श्रवण कुमार की तरह तीर्थ कराने निकल पड़े. बुजुर्ग मां कैलाश को ईश्वर का वरदान मानती हैं.
जानिए, श्रवण कुमार की कहानी
कहा जाता है कि हजारों साल पहले श्रवण कूमार भी अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर चारों धाम की यात्रा पर निकले थे. रास्ते में जब उनके माता-पिता को प्यास लगी, तो वो पास की झील से पानी लाने गए. वहीं पर अयोध्या के राजा दशरथ का बाण लग गया और मौके पर उनकी मौत हो गई.
इस बात की खबर लगते ही श्रवण कुमार के माता-पिता को राजा दशरथ खुद पानी देने पहुंचे. वहीं, अपनी बड़ी गलती के लिए क्षमा मांगी, तो दोनों बुजुर्गों की ने श्राप दिया था कि, तुम्हारी भी मृत्यु अपने बेटे के वियोग में होगी. जैसा की हम सभी जानते हैं कि भगवान राम से 14 साल के लिए बिछड़ जाने के दुख में दशरथ के प्राण चले गए थे.