कहानी एक डॉन की
दिलीप कुमार
फिल्म डॉन का एक डायलाग याद आता है, जब अमिताभ बच्चन कहते हैं, डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। डॉन का खौफ कई देशों की पुलिस में था और वह उसकी तलाश में थी। अंत तक पुलिस पकड़ नहीं पाती है। लेकिन बिहार में एक डॉन शहाबुद्दीन की कहानी कुछ जुदा सी है। वह जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं, लेकिन रुतबे और गुंडई में कोई कमी नहीं है। जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए शहाबुद्दीन का नाम आज एक बार फिर लोगों की जुबान पर है। वह इसलिए क्योंकि इस बार उन पर एक पत्रकार की हत्या का आरोप लगा है। वह भी जेल में रहते हुए। देखा जाए तो डिप्टी एसपी संजीव कुमार की कॉलर पकड़ कर लात, घूसों से मारने वाले शहाबुद्दीन ने 21 साल के राजनीतिक कॅरियर में सिवान के कई एसी का स्वागत इसी तरह किया। उनके आतंक से तंग आकर 2001 में सिवान की पुलिस फोर्स ने उनके घर को चारों तरफ से घेर लिया था। तब सरकार लालू की थी और बाहुबली शहाबुद्दीन उनके चहेते सांसद थे। वे उनको बचाने में कामयाब हो गए। आज शहाबुद्दीन सात साल से जेल में सजा काट रहे हैं, लेकिन सिवान में आज भी उनकी सत्ता चलती है। उसकी इजाजत के बगैर पूरे जिले में एक गज जमीन भी खरीदने की किसी की हैसियत नहीं है। 1990 से लेकर 2001 तक बिहार विधानसभा में इस शातिर अपराधी के खिलाफ चुनाव लड़ने का साहस कोई नहीं जुटा पाता था। 2007 में हत्या और अपहरण के मामले में सजा होने पर शहाबुद्दीन के चुनाव लड़ने पर अदालत ने रोक लगा दी।
अपराध जगत में पहली बार 1980 में शहाबुद्दीन का नाम आया। इसके बाद उसने बीजेपी की रथयात्रा से मोर्चा लिया। 1986 में शहाबुद्दीन के खिलाफ पढ़ाई के दौरान उसके खिलाफ पहला मुकदमा दर्ज हुआ। सिवान के हुसैनगंज थाने का शहाबुद्दीन ए श्रेणी का हिस्ट्रीशीटर अपराधी है। बिहार से जुड़े अपराधियों की मानें तो जब मुकदमे बढ़े तो शहाबुद्दीन ने लालू से पनाह मांगी। लालू ने उसे युवा दल में शामिल करने के साथ चुनाव लड़ने के लिए टिकट भी दे दिया। वह पहली बार 1995 में ही चुनाव जीत गया। विधानसभा के बाद अगला चुनाव सांसद का शहाबुद्दीन ने लड़ा। उसे भी पहली बार में ही जीत लिया। लालू के बढ़ते वर्चस्व के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में शहाबुद्दीन का आतंक बढ़ गया। पुलिस डरने लगी। हत्याएं होती गईं और शहाबुद्दीन के खिलाफ दर्ज केस समाप्त होते गए। एक समय यह था कि इंस्पेक्टर तक शहाबुद्दीन के रहमोकरम पर वर्दी पहनते थे। शहाबुद्दीन खुलेआम पुलिस वालों की पिटाई तक करने से बाज नहीं आता था। एक बार तो उसने पुलिस पर फायरिंग भी कर दी। 16 मार्च 2001 में पुलिस शहाबुद्दीन के चेले मनोज कुमार पप्पू को वारंट के साथ गिरफ्तार करने पहुंची तो वहां आए डीएसपी संजीव कुमार को शहाबुद्दीन ने थप्पड़ जड़ दिया और उसे गिरफ्तार नहीं करने दिया।
इसके बाद पुलिस ने शहाबुद्दीन पर ही केस दर्ज कर दिया। पहली बार शहाबुद्दीन के खिलाफ बिहार की पुलिस बागी हुई। 2005 में सिवान के एसपी रतन संजय ने जब शहाबुद्दीन के प्रतापपुर घर पर छापा मारा तो उसके घर से एके 56 लेजर गाइडेड गन और नाइट विजन कई हथियार बरामद हुए। इन हथियारों पर पाकिस्तान की मुहर लगी थी। बिहार के डीजीपी ने केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट में इस बात से अवगत कराया कि शहाबुद्दीन के संबंध पाकिस्तान से हैं। इस मामले में शहाबुद्दीन के खिलाफ अलग-अलग मामलों में 8 मुकदमे बिहार पुलिस ने दर्ज किए। इत्तेफाक से शहाबुद्दीन का केंद्र में कांग्रेस की सरकार ने लालू यादव की वजह से सपोर्ट किया और शहाबुद्दीन आकर दिल्ली के उनके आवास में छिप गया। बताया जाता है कि तीन महीने तक दिल्ली पुलिस के पास शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी का वारंट होने के बाद भी वह हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। इसके बाद बिहार पुलिस ने बिना दिल्ली पुलिस की मदद से शहाबुद्दीन को गिरफ्तार कर लिया।
शहाबुद्दीन को क्यों हुई उम्रकैद!
2006 में जब बिहार में बीजेपी की सरकार बनी और नीतीश कुमार सीएम बने, तब उन्होंने ऐसे अपराधियों के लिए एक स्पेशल कोर्ट बना दी। बिहार के बढ़े माफिया सूरजभान प्रभुनाथ समेत शहाबुद्दीन पर 8 हत्या और 20 मुकदमे 307 के चल रहे थे। बताया जाता है कि साल 2006 में जिस अदालत में यह केस चल रहा था उसके जज बीबी गुप्ता को ही शहाबुद्दीन ने जान से मारने की धमकी दे डाली। बाद में हाईकोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा। मई 2007 में छोटेलाल के अपहरण में शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। तब से शहाबुद्दीन जेल में बंद है।
चार बार सांसद और दो बार विधायक
बाहुबली से नेता बनने का शहाबुद्दीन का सफर लम्बा है लेकिन दिलचस्प है। उसका जन्म 10 मई 1967 को सिवान जिले के प्रतापपुर गांव में हुआ था। सिवान के चार बार सांसद और दो बार विधायक रहे। कॉलेज के दौरान अपराध की दुनिया का दामन थाम लिया था। 1986 में सबसे पहला हत्या का मामला दर्ज हुआ। शहाबुद्दीन ने माकपा व भाकपा (माक्र्सवादी-लेनिनवादी) के खिलाफ जमकर लोहा लिया। भाकपा माले के साथ उनका तीखा टकराव रहा। सिवान में दो ही राजनीतिक धुरिया थीं तब एक शहाबुद्दीन व दूसरा भाकपा माले। 1993 से 2001 के बीच भाकपा माले के 18 समर्थक व कार्यकर्ताओं को अपनी जान गंवानी पड़ी। जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर व वरिष्ठ नेता श्यामनारायण भी इसमें शामिल थे। इनकी हत्या सिवान शहर में 31 मार्च 1997 को कर दी गई थी। इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है। शहाबुद्दीन पर 1986 में हुसैनगंज थाने में पहला आपराधिक केस दर्ज हुआ। फिर तो इसके बाद उनके खिलाफ लगातार मामले दर्ज होते चले गए। इस वजह से देश की क्रिमिनल हिस्ट्रीशीटरों की लिस्ट में वे शामिल हो गए। 1990 में निर्दलीय विधायक बनने के बाद शहाबुद्दीन लालू प्रसाद के नजदीक चले गए। फिर विधायक और सांसद भी बने। 1990 से लेकर 2005 तक राजद की सरकार में शहाबुद्दीन के रिश्ते लालू से बनते बिगड़ते रहे हैं। फिर भी शहाबुद्दीन ने कभी पार्टी नहीं छोड़ी। डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन पर मुन्ना चौधरी अपहरण कांड में गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। इस पर 13 अगस्त 2003 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की कोर्ट में शहाबुद्दीन को सरेंडर करना पड़ा था। उसी की मार शहाबुद्दीन आज भी झेल रहे हैं। इसे लेकर ही 2004 में लालू से शहाबुद्दीन नाराज भी हो गए थे। नतीजतन लालू को सिवान सदर अस्पताल में भर्ती के दौरान शहाबुद्दीन से मिलना पड़ा था। इसके बाद लालू ने कहा था कि सिवान का सांसद मेरा छोटा भाई है। शहाबुद्दीन को भाजपा भी अपनी पार्टी की सदस्यता दिलाना चाहती थी। लेकिन ऐसा न हो सका। 1996 में लोकसभा चुनाव के दिन ही एक बूथ पर गड़बड़ी फैलाने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार करने एसपी स्वयं पहुंचे थे। तब शहाबुद्दीन ने तत्कालीन एसपी एसके सिंघल पर गोली चला दी थी। इस मामले में शहाबुद्दीन को दस वर्ष की सजा हो चुकी है।
डीपी ओझा ने कसा था शिकंजा
2003 में डीपी ओझा ने डीजीपी बनने के बाद शहाबुद्दीन पर शिकंजा कसना शुरू किया। उसके खिलाफ सबूत इकट्ठे कर कई पुराने मामले फिर से खोल दिए थे। जांच का जिम्मा सीआईडी को सौंपा गया था और इसकी भी समीक्षा कराई गयी। माले कार्यकर्ता मुन्ना चौधरी के अपहरण व हत्या के मामले में शहाबुद्दीन के खिलाफ वारंट जारी हो गया। उसे अदालत में आत्मसर्पण करना पड़ा। शहाबुद्दीन के आत्मसमर्पण करते ही सूबे की सियासत गरमा गई थी। सरकार ने इसके बाद डीपी ओझा को पद से हटा दिया था।
12 वर्षों से जेल में बंद है शहाबुद्दीन
शहाबुद्दीन 12 साल से भी अधिक समय से जेल में बंद हैं। तीन दर्जन से अधिक मामले उन पर दर्ज हैं। ट्रायल कोर्ट के गठन के बाद 12 मामलों का फैसला आ चुका है जिसमें आठ मामलों में एक साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो चुकी है। चार मामलों में बरी भी हो चुके हैं। अब राजीव रौशन हत्या मामले को छोड़कर सभी मामलों में शहाबुद्दीन को जमानत मिल चुकी है। यदि 11 मामलों को छोड़ दें तो जेल के अंदर बने ट्रायल कोर्ट में अभी भी 37 मामले लंबित पड़े हैं।
इन मामलों में हुई है सजा
चर्चित तेजाबकांड (दो भाइयों की हत्या)- उम्रकैद
छोटेलाल अपहरण कांड- उम्रकैद
एसपी सिंघल पर गोली चलाने के मामले में-10 वर्ष
आम्र्स एक्ट के मामले में 10 वर्ष
जीरादेई थानेदार को धमकाने के मामले में 1 वर्ष
चोरी की मोटरसाइकिल बरामद में 3 वर्ष
माले कार्यालय पर गोली चलाने के मामले में 2 वर्ष
राजनारायण के मामले में 2 वर्ष
किसमें हुए बरी
दारोगा संदेश बैठा के साथ मारपीट के मामले
डीएवी कॉलेज में बमबारी
सूता फैक्ट्री के मामले
एक अन्य मामले में
चुनाव में हारने के बाद की थीं 9 हत्याएं
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2004 में होने वाले आम चुनाव से पहले शहाबुद्दीन ने सीपीआई के एक कार्यकर्ता का अपहरण किया था, उसका पता आज तक नहीं चला है। पकडे़ जाने पर शहाबुद्दीन अस्पताल में भर्ती हो गया। वहीं से उसने अपना चुनाव लड़ा। बताया जाता है कि उसके गुर्गों के आदेश पर सिवान के एक-एक दुकानदार ने अपनी दुकान में उसकी फोटो तक लगा डाली और चुनाव भी जीता। रिपोर्ट के मुताबिक, उधर 14 साल बाद जदयू के प्रत्याशी ओमप्रकाश यादव ने जब बिहार के डॉन की पत्नी को चुनाव हराकर दो लाख वोटों से जीते तो लोगों में एक उम्मीद की किरण जागी थी। शहाबुद्दीन अपनी पत्नी की हार बर्दाश्त नहीं कर सका। उसने अपने गुर्गों के जरिये जदयू नेता को समर्थन कर रही जनता की पिटाई शुरू कर दी। इतना ही नहीं, भाटापोखर गांव में रहने वाले पंचायत मुखिया हरिंदर कुशवाहा को सरकारी कार्यालय में ही गोलियों से छलनी कर हत्या कर दी। इसके बाद जदयू नेता ओम प्रकाश यादव के घर पर ताबड़तोड़ सैकड़ों राउंड फायरिंग कर पूरे घर पर गोलियों के ही निशान बना डाले। सिवान के इस डॉन पर 34 मुकदमे चल रहे है, जिसमें 302 और 307 के सबसे अधिक मामले हैं।
तेजाब से नहलाकर दो भाइयों की हत्या
16 अगस्त 2004 में दो भाइयों गिरीश कुमार व सतीश कुमार का अपहरण कर हत्या कर दी गई थी। दोनों को प्रतापपुर ले जाकर तेजाब से नहलाकर जान ली गई थी। इसमें चश्मदीद गवाह दोनों के भाई राजीव रौशन की भी 16 जून 2014 को गोली मारकर हत्या कर दी गई। तीनों बेटों की मां व व्यवसायी चन्दकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू की पत्नी कलावती देवी ने मुफस्सिल थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी। दो आरोपी व पांच अज्ञात थे। 2009 में सिवान के तत्कालीन एसपी अमित कुमार जैन के निर्देश पर केस के आइओ ने शहाबुद्दीन, असलम, आरिफ व राज कुमार साह को अभियुक्त बनाया था। शहाबुद्दीन को रिमांड पर लेने के लिए पुलिस ने कोर्ट में आवेदन दाखिल किया। पांच वर्षों से सुनवाई चल रही थी और छह माह से बहस। इसके बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया। तेजाब कांड में उम्रकैद की सजा मिलने के बाद हाईकोर्ट ने जमानत दे दी।