कांग्रेस की विरासत और राहुल गांधी
चुनौतियां लेकर आ सकते हैं आगामी लोकसभा चुनाव
भारत में लम्बे समय से अपने उत्थान के मार्ग को तलाश कर रही कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने से कुछ राहत महसूस कर रही होगी, लेकिन राहुल गांधी पर जिस प्रकार से कांग्रेस के पराभव का तमगा लगा हुआ है, वह उनके समक्ष चुनौतियों का पहाड़ स्थापित कर रहा है। अभी राहुल ने अपने सार्वजनिक जीवन में किसी भी राजनीतिक चुनौती को स्वीकार नहीं किया है और किया भी है तो उनको सफलता नहीं मिल सकी है। इसलिए कहा जा सकता है कि राहुल गांधी भले ही कांग्रेस के अध्यक्ष बनने वाले हों, लेकिन उनके समक्ष चुनौतियां कम नहीं होंगी, बल्कि अब और ज्यादा बढेंगी। राहुल गांधी इन चुनौतियों का सामना कैसे करेंगे, यह फिलहाल तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन राहुल के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती आगामी लोकसभा का चुनाव है।
देश की राजनीति में कई बार पराजय का सामना करने वाले राहुल गांधी को कांग्रेस का विरासती उत्तराधिकार मिलने वाला है। इससे कांग्रेसियों को यह लगने लगा है कि अब संभवत: कांग्रेस का डूबता हुआ जहाज किनारे लग सकता है, लेकिन सत्य यह भी है कि कई प्रकार के राजनीतिक मोर्चों पर नाकामी का पर्याय बन चुके राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने के बाद कांग्रेस का उत्थान संभव होगा, यह अभी भी संशय के घेरे में है। पिछले कई चुनावों में कांग्रेस की भूमिका का विश्लेषण किया जाए तो यह स्वाभाविक रुप से दिखाई देता है कि राहुल गांधी की मैराथनी सक्रियता के बाद भी कांग्रेस का ग्राफ लगातार अवनति की ओर ही जाता दिखाई दे रहा है। यह भी सही है कि अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रुप से जब से कांग्रेस की कमान राहुल गांधी ने संभाली है, तब से कांग्रेस आम जनता से बहुत दूर जाने की ओर प्रवृत हुई है। वास्तव में अभी तक राहुल गांधी के खाते में कोई सकारात्मक उपलब्धि नहीं आई है। पूरा देश जानता है कि राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे उनकी विरासती पृष्ठभूमि को ही आधार बनाया है। ऐसी पृष्ठभूमि हमें इतिहास में पढ़ने को ही मिलती हैं, जिसमें राजाओं के उत्तराधिकार उनके पुत्रों को और मुगल शासकों के राज अधिकार उनके वंशजों को ही देने की परम्परा रही है। राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने की प्रक्रिया वास्तव में वंश परम्परा को बनाए रखने जैसा ही है। इस परम्परा को समर्थन करने जैसा बयान कांग्रेस के कई नेताओं ने भी दिया है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने अभी हाल ही में जो कहा था उसका आशय यही था कि मुगलों के शासन में भी ऐसा ही होता आया है। अब सवाल यह आता है कि क्या कांगे्रस मुगलों और राजाओं की परम्परा का पालन कर रही है, अगर ऐसा सही है तो यह कदम कांग्रेस के लिए अत्यंत विनाशकारी कदम ही होगा। हम जानते हैं कि जो कांग्रेस स्वतंत्रता के बाद भले ही देश में शासन कर रही थी, लेकिन वंशवाद की परंपरा के चलते उसे सिमटना पड़ा है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पैदा हुई सहानुभूति लहर के चलते हुए चुनावों के परिणामों को छोड़ दिया जाए तो यही दृष्टव्य होता है कि कांगे्रस लगातार कमजोर होती गई है। राहुल गांधी के अप्रत्यक्ष नेतृत्व में कांगे्रस को बहुत बड़ी हार का सामना करना पड़ा है, जो क्रम अभी जारी है। ऐसे में कहा जाए तो यही दिखाई देता है कि कांग्रेस अपने पतन का मार्ग स्वयं ही तैयार कर रही है, राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाना भी कहीं न कहीं वंशवाद को बढ़ावा देना ही कहा जाएगा।