कांग्रेस के मुखपत्र में सरदार पटेल ‘हीरो’ और पंडित नेहरू ‘विलेन’
कोरबा. छत्तीसगढ़ कांग्रेस के मुखपत्र ‘कांग्रेस दर्शन’ में छपे ताजा लेख ने नया विवाद खड़ा कर दिया है. इसके मुताबिक, यदि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कश्मीर, चीन और तिब्बत पर सरदार वल्लभ भाई पटेल की सलाह मानी होती तो मौजूदा हालात कुछ और ही होते.
दिलचस्प बात यह है कि इस मुखपत्र के संपादक महाराष्ट्र कांग्रेस के दिग्गज नेता संजय निरूपम हैं. यह लेख 15 दिसंबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुण्यतिथि पर लिखा गया था.
‘इस्तीफे देने की आ गई थी नौबत’
मिड डे में छपी खबर के मुताबिक, इसमें लिखा गया है, ‘अंतरराष्ट्रीय मसलों पर नेहरू को पटेल की सलाह लेनी चाहिए थी. उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री होने के बाद भी पटेल के प्रधानमंत्री नेहरू के साथ तनावपूर्ण संबंध थे. एक वक्त तो ऐसा भी आया कि दोनों नेता अपने पद से इस्तीफा भी देना चाहते थे.’
मुखपत्र में लिखा है, ‘सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुननिर्माण का संकल्प लिया, जो पंडित नेहरू के तीव्र विरोध के पश्चात भी बना. जहां तक कश्मीर रियासत का प्रश्न है इसे पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था. परंतु यह सत्य है कि सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे.’
चीन के प्रति सचेत किया था पटेल ने
मुखपत्र के मुताबिक, ‘यद्यपि विदेश विभाग पंडित नेहरू का कार्यक्षेत्र था, परंतु कई बार उपप्रधानमंत्री होने के नाते कैबिनेट की विदेश विभाग समिति में पटेल का जाना होता था. उनकी दूरदर्शिता का लाभ यदि उस समय लिया जाता तो अनेक वर्तमान समस्याओं का जन्म न होता. 1950 में पंडित नेहरू को लिखे एक पत्र ने चीन तथा उसकी तिब्बत के प्रति नीति से सावधान किया था और चीन का रवैया कपटपूर्ण था. अपने पत्र में पटेल ने चीन को अपना दुश्मन उसके व्यवहार को अभद्रतापूर्ण और चीन के पत्रों की भाषा को किसी दोस्त की नहीं, भावी शत्रु की भाषा कहा था.’
तो पहले मिल जाती गोवा को आजादी
साल 1950 में लिखे पटेल के पत्र से भी नेहरू सहमत नहीं थे. 1950 में ही गोवा की स्वतंत्रता के संबंध में चली दो घंटे की बैबिनेट बैठक में लंबी वार्ता सुनने के बाद सरदार पटेल ने केवल इतना कहा, क्या हम गोवा जाएंगे. केवल दो घंटे की बात है. नेहरू इससे बड़े नाराज हुए थे. यदि पटेल की बात मानी गई होती तो 1961 तक गोवा की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा न करनी पड़ती.
‘मैं अपनी गलती स्वीकार करता हूं’
मुखपत्र में छपे लेख को लेकर जब संजय निरूपम से सवाल किया गया तो शुरुआत में उन्होंने तो पूरे मामले से पल्ला झाड़ लिया. हालांकि, बाद में उन्होंने कहा, ‘मैं अपनी गलती स्वीकार करता हूं. मैं नाममात्र का संपादक हूं. कांग्रेस दर्शन में गलती से लेख छप गया है. इस मामले में संपादकीय मंडल पर कार्रवाई की जाएगी.’