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कांग्रेस में कैश की किल्लत, चंदा नहीं दे रहे उद्योगपति

नई दिल्ली : मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को कैश की भारी किल्लत से जूझना पड़ रहा है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पार्टी ने विभिन्न राज्यों में मौजूद अपने कार्यालयों को चलाने के लिए खर्च भेजना बंद कर दिया है। साथ ही अपने सदस्यों से चंदा उगाने और अधिकारियों से खर्च में कटौती करने को कहा है। ऐसे में पार्टी को आगामी चुनावों में नरेंद्र मोदी – अमित शाह की अगुवाई वाली भाजपा से चुनावी मैदान में मुकाबला करने में मुश्किलें आ सकती हैं।ब्लूमबर्ग की इस रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस को उद्योगपतियों से मिलने वाला चंदा लगभग बंद हो गया है। हालात इतने खराब हो गए हैं कि कांग्रेस को चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी के लिए भी चंदा उगाना पड़ा है। कांग्रेस में सोशल मीडिया विभाग की प्रमुख दिव्या संपंदन ने माना है कि पार्टी के पास धन की कमी है। उनके मुताबिक, हमें इलेक्टोरल बॉण्ड के जरिए भाजपा की तुलना में बहुत कम चंदा मिल रहा है। यही कारण है कि पार्टी को ऑनलाइन क्राउड सॉर्सिंग का रुख करना पड़ सकता है। मालूम हो, नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी के नेतृत्व में भाजपा लगातार चुनाव जीत रही है। कर्नाटक में जरूर सरकार नहीं बन पाई, लेकिन यहां भी भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। 20 राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सरकार है। 2013 में 15 राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी, जो अब घटकर महज दो बड़े राज्यों में सिमट कर रह गई है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि चंदा उगाही के मामले में भाजपा के पास एडवांटेज है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की छवि बिजनेस-फ्रेंडली नहीं है। वहीँ भाकपा और माकपा को सबसे कम कॉर्पोरेट चंदा मिला। अगस्त 2017 में जारी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक, चार साल में भाजपा को सबसे ज्यादा 705 करोड़ रुपए का कॉर्पोरेट चंदा मिला था। वहीं दूसरे नंबर पर कांग्रेस रही, जिसे 198 करोड़ रुपए चंदे के रूप में मिले। एडीआर ने वित्त वर्ष 2012-13 से 2015-16 को लेकर यह रिपोर्ट जारी की है। इस दौरान कॉर्पोरेट एवं व्यापारिक घरानों ने पांच राष्ट्रीय पार्टियों को कुल 956.77 करोड़ का का चंदा दिया।

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