काकोरी स्टेशन पर लगा ऐतिहासिक घटनाक्रम, सुलगी थी अंग्रेजी हुकूमत से खुला मोर्चा लेने की चिंगारी
मुरादाबाद: रेलवे के मुरादाबाद मंडल में ट्रेनों के संचालन और वाणिज्यिक नजरिए से काकोरी स्टेशन का भले ही बहुत बड़ा दर्जा न हो लेकिन रेलवे ही नहीं पूरा देश काकोरी को दिल से सम्मान देता है। इसका कारण है नौ अगस्त 1925 में काकोरी स्टेशन पर हुआ वो वाकया, जिसने विश्वभर को हिलाने का माद्दा रखने वाले अंग्रेजों को हिला दिया था। भारतीय क्रांतिकारियों ने काकोरी में सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर से अंग्रेज हुकूमत का खजाना लूटा था।
अंग्रेजों की नजर में उस वक्त की यह घटनाक्रम हुकूमत से मोर्चा लेने का खुला एलान था। उस वक्त जब ब्रितानी शासकों और उनके संसाधनों तक सीधी पहुंच बनाना आसान नहीं था, तब अंग्रेजी शासकों की रेल को बिना स्टापेज वाले स्थान पर रोककर उसमें मौजूद कैश लूटना तत्कालीन शासकों के लिए बड़ी चुनौती थी।उस वक्त ट्रेनों का संचालन करने वाले अंग्रेजों ने भले ही इस घटना को काले अध्याय के तौर पर दर्ज किया था लेकिन इससे सुलगी चिंगारी के धीरे-धीरे शोला बनकर देश को आजाद कराने तक के सफर के बाद भारतीय रेलवे ने इन क्रांतिकारियों को भरपूर सम्मान दिया है। मुरादाबाद रेल मंडल प्रशासन द्वारा काकोरी स्टेशन पर इस घटनाक्रम का संक्षिप्त ब्योरा देता बोर्ड लगाया है, जबकि शाहजहांपुर स्टेशन पर क्रांतिकारियों की प्रतिमाएं।
शाहजहांपुर में हुई बैठक के दौरान राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजों का खजाना लूटने की योजना बनाई थी। तय योजना के अनुसार नौ अगस्त 1925 को सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर के काकोरी से छूटते ही उसमें सवार राजेंद्रनाथ लाहिड़ी ने चेन खींच कर ट्रेन रोक दी। इसके बाद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, चंद्रशेखर आजाद व छह अन्य ने गार्ड के केबिन पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना (4601 रुपये) लूट लिया था। उस वक्त यह रकम काफी बड़ी धनराशि मानी जाती थी।
ब्रिटिश रिकार्ड के मुताबिक काकोरी कांड में क्रांतिकारियों ने कुल 4601 रुपये की संपत्ति लूटी थी। हालांकि कुछ इतिहासकारों का कहना है कि लूट को अधिक बड़ा न दिखाने के लिए अंग्रेजों ने गलत तथ्य अदालत में प्रस्तुत किए थे। लूट में सिर्फ 10 क्रांतिकारी शामिल थे जबकि इस संबंध में 40 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
इस मामले की सुनवाई कर रहे सेशन जज हेमिल्टन ने कहा था कि ये सभी नौजवान देशभक्त हैं, भले ही इन्होंने अपने फायदे के लिए कुछ न किया हो लेकिन अगर ये अपने किए पश्चाताप करेंगे तो सजा में कुछ रियायत दी जा सकती है, लेकिन क्रांतिकारियों ने माफी से इनकार कर फांसी का रास्ता चुना। 17 दिसंबर 1927 को राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को गोंडा में, 19 दिसंबर को रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर में, अशफाक उल्ला खां को फैजाबाद, ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद की जेल में फांसी दे दी गई थी।