किसके सहारे उ. कोरिया कर रहा दबंगई
डॉ. रहीस सिंह
उत्तर कोरिया की तरफ से 15 फरवरी को और उपग्रह छोड़ने की घोषणा की गयी है जिसकी वजह से दक्षिण कोरिया, जापान और अमेरिका खासे चिंतित नजर आ रहे हैं। विशेष बात यह है कि उत्तर कोरिया फरवरी के पहले सप्ताह में ही रॉकेट दाग चुका है जिसे अमेरिका लम्बी दूरी वाली मिसाइल मान रहा है। ध्यान रहे,पिछले दिनों जापानी अखबार ‘टोक्यो शिंबुन’ ने खबर दी थी कि उत्तर कोरिया 8 फरवरी से 25 फरवरी के बीच तोंगचांग स्थित रॉकेट प्रक्षेपण स्थल से इसे प्रक्षेपित करेगा। उत्तर कोरिया के लगातार बम और मिसाइल कार्यक्रमों से एशिया प्रशांत क्षेत्र युुद्धोन्मादी वातावरण से ग्रस्त नजर आने लगा है। चूंकि यह 6 जनवरी को ही हाइड्रोजन बम का परीक्षण कर चुका है, इसलिए जापान और अमेरिका सहित एशिया प्रशांत शक्तियों में खलबली मचना स्वाभाविक है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर उत्तर कोरिया अपने लोगों को भूखों मारकर ऐसी दबंगई कैसे विकसित कर ले रहा है? एक सवाल यह भी उठता है कि क्या उत्तर कोरिया की यह स्वाभाविक ताकत का नतीजा है अथवा उसके पीछे कोई खड़ा है?
पिछले दिनों उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों की परवाह किए बिना और नए सैटेलाइट को लॉन्च करने की घोषणा की थी जिसके बाद तीव्र अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया हुई। 7 फरवरी को इसे लांच करने के बाद ऐसी ही प्रतिक्रिया हुयी क्योंकि पश्चिमी दुनिया इसे इंटरकांटिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल मान रहा है जिसकी जद में जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के साथ-साथ अमेरिका भी आ जाएगा। इसके बाद अमेरिका ने उत्तर कोरिया से सुरक्षा के लिए दक्षिण कोरिया में हाई एल्टीच्यूड एरिया डीफेंस सिस्टम (टीएचएएडी) लगाने की घोषणा की है। लेकिन इसे चीन अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मान रहा है। इसका मतलब क्या यह समझा जा सकता है कि असली खिलाड़ी तो अमेरिका और चीन ही हैं, दोनो कोरिया तो प्यादों की तरह हैं? चीन और रूस अब भी उक्त अमेरिकी मिसाइल सिस्टम का यह कहकर विरोध जता रहे हैं कि इससे उनके देश के दूर दराज के इलाके भी इसके रडार की जद में आ जाएंगे जो उनकी सुरक्षा के लिहाज से उचित नहीं है।
उपग्रह लांच से लगभग एक माह पूर्व यानि 6 जनवरी को उत्तर कोरिया के सरकारी टीवी चैनल ने खबर दी थी कि पहला हाइड्रोजन बम परीक्षण सुबह 10 बजे सफलतापूर्वक किया गया। उत्तर कोरिया के इस हाइड्रोजन बम परीक्षण को लेकर यहां दो पक्ष हैं। प्रथम यह कि क्या वास्तव में उत्तर कोरिया ने हाइड्रोजन बम बना लिया है या फिर वह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन (बैलेंस ऑफ पावर) बनाने के लिए ‘बम प्रोपोगैंडा’ का इस्तेमाल कर रहा है? द्वितीय यह कि यदि वास्तव में उत्तर कोरिया हाइड्रोजन बम बनाने में सफल हो गया है, तो फिर एशिया विशेषकर एशिया-प्रशांत क्षेत्र और दक्षिण एशिया को यह किस प्रकार प्रभावित करेगा? उल्लेखनीय है उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन ने प्योंगयांग में ऐतिहासिक सैन्य स्थल का मुआयना करते वक्त अपने बयान में कहा कि उनके दादाजी किम इल-सुंग ने उत्तर कोरिया को एक शक्तिशाली परमाणु हथियारों वाला देश बनाया था, जो अपनी सुरक्षा के लिए ए-बम और एच-बम का भी इस्तेमाल कर सकता है। सनद रहे कि परमाणु बम नाभिकीय विखंडन (न्यूक्लियर फिज़न) पर काम करता है यानि परमाणुओं के टूटने से ऊर्जा मुक्त करता है जबकि हाइड्रोजन बम नाभिकीय संलयन (न्यूक्लियर फ्यूज़न) पर जिसमें परमाणुओं के जुड़ने पर असीमित ऊर्जा मुक्त करता है। हालांकि उत्तर कोरिया के दावे पर दुनिया के भूकम्प विज्ञानियों और परमाणु विज्ञानियों ने संशय प्रकट किया है। अधिकतर विशेषज्ञों का मानना है कि प्योंगयांग एक थर्मोन्यूक्लियर विस्फोट विकसित करने से वर्षों दूर है क्योंकि किसी हाइड्रोजन या थर्मोन्यूक्लियर उपकरण श्रृंखला अभिक्रिया में संलयन (फ्यूजन) का प्रयोग होता है जिससे अकेले प्लूटोनियम या यूरेनियम से होने वाले विखंडन विस्फोट की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली विस्फोट होता है जबकि इस विस्फोट में कम तीव्रता थी।
जो भी हो, उत्तर कोरिया इससे पहले यानि वर्ष 2006, 2009 और 2013 में भी परमाणु धमाके कर चुका है, लेकिन वे धमाके उतने डरावने नहीं थे, जितना डरावना यह धमाका है। कारण यह कि यह कोई आम परमाणु बम नहीं है बल्कि छोटा हाइड्रोजन बम है, जो साधारण बमों के मुकाबले बहुत ज्यादा ताकतवर है। दूसरा इसलिए कि उत्तर कोरिया इस बम के जरिए दुनिया को अपनी ताकत का एहसास कराना चाहता है। ‘दबाव के लिए परमाणु ताकत’ की नीति बेहद घातक हो सकती है क्योंकि इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उत्तर कोरिया फिजिकल रेस्पांस यानि परमाणु हमले की जद तक भी जा सकता है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ ने उस पर कई बार पाबंदियां लगायीं लेकिन उसने संयमपूर्ण नैतिक आचरण की बजाय और अधिक उद्दंड बनकर सामने आया। उत्तर कोरिया का यह कदम दक्षिण कोरिया, जापान और संयुक्त राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है। लेकिन इससे भी बढ़कर राष्ट्रपति बराक ओबामा के लिए ज्यादा बड़ी चुनौती है जिन्होंने 2014 में दक्षिण कोरिया की अपनी यात्रा के दौरान उत्तर कोरिया को ‘अछूत देश’ करार दिया था और संकल्प लिया था कि यदि प्योंगयांग और परीक्षण करता है तो उसके खिलाफ और कड़े कदम उठाये जायेंगे। सवाल यह उठता है कि क्या संयुक्त राष्ट्र संघ या संयुक्त राज्य अमेरिका प्योंगयांग को रोक पाएगा?
पहले पहल यह अफवाह तो 2002 में ही उड़ गयी थी कि उत्तर कोरिया यूरेनियम और प्लूटोनियम, दोनों को ही रिप्रॉसेस करने वाली टैक्नोलॉजी विकसित कर रहा है। इसमें मूल भूमिका पाकिस्तानी मेटलरजिस्ट अब्दुल कादिर खान की थी जिन्होंने 2004 में यह स्वीकार भी कर लिया था कि उसने 1991-97 के बीच में उत्तर कोरिया को यूरेनियम की टैक्नोलॉजी बेची थी। समग्र नि:शस्त्रीकरण का डंका पता नहीं कब से पीटा जा रहा है, लेकिन अब तक हुआ क्या? उल्लेखनीय है कि परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) के अनुच्छेद 1 और 2 में इस प्रावधान के बावजूद, ‘कि प्रत्येक परमाणु हथियार सम्पन्न देश (एनडब्ल्यूएस) गैर परमाणु हथियार सम्पन्न देशों (एनएनडब्ल्यूएस) को परमाणु हथियार या अन्य न्यूक्लियर एक्सप्लोसिव डिवाइस न बेचेंगे, न इसे बनाने में मदद करेंगे, अमरीका ने बेल्जियम, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड और टर्की को लगभग 180 से 480 बी 61 परमाणु बम प्रदान किये, चीन ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में डा. कादिर खान को यूरेनियम संवद्र्धन में भरपूर सहयोग प्रदान किया और पाकिस्तान ने डा. कादिर की सहायता से उत्तर कोरिया को सेंट्रीफ्यूज एनरिचमेंट प्रौद्योगिकी उपलब्ध करायी। लेकिन वाशिंगटन और न्यूयॉर्क दोनों चुप रहे। आखिर क्यों?
यह बीजिंग और इस्लामाबाद ही है जिसने एशिया-प्रशांत, खाड़ी देशों से लेकर दक्षिण एशिया को बारूद के ढेर पर बैठा दिया लेकिन इन दोनों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी बल्कि इस्लामाबाद को लगातार अमेरिका पुरस्कृत करता रहा। आज भी आतंकवाद के खात्मे के नाम पर एक ऐसे देश को अमेरिका मजबूत कर रहा है जो आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। यही दोहरे मानदंड और महान शक्तियों के ग्रेट गेम उत्तर कोरिया को इस तरह की दबंगई की ताकत दे रहे हैं। =