उत्तराखंड की तस्वीर भी इससे अलग नहीं है। राज्य गठन के समय कुल 7.84 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती होती थी, जो अब घटकर 6.98 लाख हेक्टेयर रह गई है। वहीं 2001 से 2011 के बीच 2.26 लाख लोगों ने खेती छोड़ी। विभिन्न आंकड़ों के अनुसार, दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में खेती छोड़ने वालों की संख्या सबसे अधिक रही। उत्तराखंड में किसानों के खेती छोड़ने के पीछे कई कारण हैं। कृषि विभाग के अधिकारियों और कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक पहाड़ में खेती करना खासा मुश्किल हो गया है। अधिक लागत, कम उत्पादन, बिखरी जोत, प्राकृतिक आपदाओं और जंगली जानवरों से होने वाले नुकसान, सिंचाई की व्यवस्था न होने, मार्केटिंग की कमी, बेहतर गुणवत्ता का बीज और खाद न मिल पाने जैसे कारणों के चलते लोग खेती छोड़ने को मजबूर हुए हैं।
नैनीताल-15075
चमोली-18535
अल्मोड़ा- 36401
बागेश्वर-10073
उत्तरकाशी-11710
रुद्रप्रयाग-10970
चंपावत-11281
पौड़ी-35654
पिथौरागढ़-22936
टिहरी-33689
औद्योगीकरण और शहरीकरण भी कारण
औद्योगीकरण और शहरीकरण बढ़ने से भी किसानों और खेती की जमीन में कमी आई है। जगह-जगह किसानों ने विकास के लिए जमीनें बेच दीं। वहीं उद्योग और शहर लगाने के लिए लोगों ने बड़े पैमाने पर खेती की जमीन छोड़ दी। इससे भी खेती करने वालों की संख्या में कमी आई है।
हमने राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर खेती छोड़ने के कारणों की पड़ताल की। कृषि को बढ़ावा देकर रोजगार के साधन के रूप में विकसित करने के लिए सरकार ने कोई ठोस प्रयास नहीं किए। बाकि पलायन, जंगली जानवरों का आतंक, हर साल प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान के चलते भी लोग खेती छोड़ रहे हैं।