पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार चुकी पार्टी को उबारने के लिए केंद्र सरकार अब किसानों को लुभाने की तरकीबें सोच रही है। प्रधानमंत्री आवास पर बुधवार शाम तमाम उपायों पर कई घंटे मशक्कत भी की गई। कर्ज माफी को अपनाकर विपक्ष के हाथों मुद्दा सौंपने की बजाय तेलंगाना मॉडल को लाने पर गहन विमर्श किया है। माना जा रहा है कि राज्य के मॉडल को केंद्र नए रूप में लागू करने की घोषणा जल्द कर सकती है।
तेलंगाना मॉडल में फसलों की बुवाई से पहले प्रति एकड़ तय राशि सीधे खाते में भेजकर (डीबीटी) किसानों को लाभ मुहैया कराया जाता है। कर्जमाफी की तुलना में सरकार इसे बेहतर उपाय मान रही है, क्योंकि कर्जमाफी का फायदा किसानों को एक बार ही मिलता है। जबकि राज्य के मॉडल से हर परिस्थिति व हर फसल में किसानों को फायदा मिलता है। सूत्र बताते हैं कि प्रधानमंत्री आवास पर कृषि मंत्री राधामोहन सिंह को 26 दिसंबर को कर्जमाफी के विकल्प पर विचार करने को बुलाया गया था।
सूत्र कहते हैं कि इस दौरान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मौजूद थे। सूत्रों का कहना है कि बैठक के दौरान पट्टे पर खेती करने वाले किसानों को नया कर्ज और बीमा का पूर्ण लाभ मुहैया कराने पर भी विचार किया गया। जबकि जिन छोटे या मझोले किसानों के पास जमीन है, उन्हें तेलंगाना मॉडल लाभ या सहायता मुहैया कराने पर लंबी चर्चा हुई।
ऐसी व्यवस्था जो किसानों को सबल बनाए
सूत्र बताते हैं कि कृषि मंत्री से विभिन्न योजनाओं की प्रगति पर बैठक में रिपोर्ट भी ली गई है। इस दौरान कर्जमाफी की घोषणा के जोखिम का भी जिक्र हुआ। दरअसल पांच राज्यों के चुनाव के दौरान तीन राज्यों में सरकार बनाने वाली कांग्रेस ने छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में किसानों के कर्ज माफी की घोषणा की। जबकि इससे पहले कर्नाटक और पंजाब में भी सरकार बनाकर यह कदम उठाया।
इस दौरान कर्जमाफी को लेकर केंद्र सरकार लगातार इंकार करती रही। ऐसे में अब कर्जमाफी की घोषणा करना विपक्ष को राजनीतिक हथियार सौंपना होगा। सूत्रों की माने तो इसी कारण सरकार कर्जमाफी के विकल्प की दिशा में आगे बढ़ रही है। साथ ही बटाई और पट्टे पर खेती करने वाले किसानों को भी लाभ देने के लिए योजनाओं में बदलाव कर सकती है।
सूत्रों का कहना है कि सरकार अगर तेलंगाना मॉडल को किसानों के लिए लागू करने पर करीब एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का वार्षिक खर्च आने का अनुमान है। जबकि एक लाख रुपये तक का कृषि ऋण अगर माफ किया जाता है तो यह खर्च तिगुने से भी ज्यादा का होगा। और कुछ साल बाद फिर से समान स्थिति पैदा होने का अनुमान है। ऐसे में सरकार उस व्यवस्था को लागू करने पर विचार कर रही है जो किसानों को सबल बनाए।