किसान मंडी भवन में लगी आग, अरबों की योजनाओं से जुड़ी फाइलें राख
अधिकारियों और कर्मचारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) से संबंधित फाइलें भी नहीं बचीं। विभागीय अधिकारी शॉर्ट सर्किट की वजह से आग लगने की आशंका जता रहे हैं, लेकिन मौके पर हालात किसी बड़ी साजिश की तरफ इशारा कर रहे हैं। कई अफसरों व कर्मचारी नेताओं ने भी दबी जुबान से साजिश की बात कही।
आग इतनी भीषण थी कि इसे बुझाने में दमकल गाड़ियों को करीब 8 घंटे लगे। तब तक मंडी भवन के पांचवें तल पर स्थित लेखा व विपणन अनुभाग और अधिष्ठान के चरित्र पंजिका पटल की फाइलें राख हो गईं।
छठे तल पर निर्माण और विकास योजनाओं से जुड़ी फाइलें भी स्वाहा हो गईं। इन दोनों तलों पर स्थित वित्त नियंत्रक और मुख्य अभियंताओं के दफ्तरों में भी कुछ नहीं बचा।
साजिश की आशंका इसलिए
मंडी शुल्क वसूली में करोड़ों रुपये के घपले की जांच शुरू हुई थी। आग से अधिकांश फाइलें नष्ट हो गईं। कई नियार्त फर्मों को लाइसेंस में दी गई छूट वाली फाइलें भी राख हो गईं। यानी इनमें गड़बड़ियों की जांच नहीं हो पाएगी। केंद्र से बुंदेलखंड पैकेज के रूप में मिली रकम को खर्च करने में हुई गड़बड़ी की जांच संबंधी फाइलें भी आग की भेंट चढ़ गईं।
उच्चस्तरीय कमेटी करेगी जांच
कृषि उत्पादन आयुक्त (एपीसी) प्रवीर कुमार ने अग्निकांड की जांच के लिए विशेष सचिव (कृषि एवं विपणन) मार्कण्डेय शाही की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। उसे एक हफ्ते में रिपोर्ट सौंपनी है। एपीसी प्रवीर ने कहा कि आग से कई महत्वपूर्ण अनुभागों में कुछ बचा ही नहीं है।
विभागीय सूत्रों के मुताबिक, कुछ समय पहले मंडी शुल्क वसूली में करोड़ों रुपये के घपले की जांच शुरू हुई थी। इस अग्निकांड के बाद इससे जुड़ी अधिकतर फाइलें नहीं बची हैं। नोएडा की एक फर्म के खिलाफ ही एक करोड़ रुपये से ज्यादा के घपले की जांच चल रही थी, उसकी फाइल भी जल गई।
कुछ समय पहले मंडी शुल्क में समाधान योजना लाई गई थी, उसमें भी करोड़ों का घपला हुआ था। इस मामले से संबंधित फाइलें भी नष्ट हो गईं। मसालों पर लगने वाले मंडी शुल्क के लिए लाई गई समाधान योजना में भी कुछ वर्ष पहले बड़ा घपला सामने आया था, उससे संबंधित फाइलों को दुबारा तैयार कर पाना अब नामुमकिन होगा, क्योंकि मुख्यालय स्तर की फाइलों में तमाम ऐसी नोटिंग थी, जो और कहीं नहीं मिल सकती।
फर्म्स को दिए गए एडवांस का रिकॉर्ड भी नष्ट
तमाम कामों के लिए विभिन्न फर्म्स को दिए गए एडवांस से संबंधित रिकॉर्ड भी आग की भेंट चढ़ गए। मंडी परिषद में और भी तमाम घोटाले हैं, जो भविष्य में सामने आ सकते थे, लेकिन इस अग्निकांड की वजह से उसकी गुंजाइश ही खत्म हो गई।
नियमानुसार रात के वक्त हर फ्लोर पर एक इंचार्ज होना चाहिए, ताकि इमरजेंसी में उच्च अधिकारियों को सूचना देकर फौरन ही मदद ली जा सके। किसान मंडी भवन में आग लगने पर ग्राउंड फ्लोर पर तैनात सिक्योरिटी गार्डों ने फ्लोर इंचार्ज से संपर्क करना चाहा, मगर वे वहां नजर नहीं आए। तब तक महत्वपूर्ण फाइलें और फॉल्स सीलिंग में आग पकड़ चुकी थी।
अगर फ्लोर इंचार्ज होते तो तत्काल ही फायर ब्रिगेड को सूचना देकर आग को पांचवें फ्लोर से ऊपर बढ़ने से रोका जा सकता था। यही नहीं, पांचवें फ्लोर पर भी आग से उतना अधिक नुकसान नहीं होता। लंबे समय से मेंटेनेंस न होने के कारण मंडी भवन परिसर में स्थित हाइड्रेंट खराब हो चुके थे।
अगर दमकल गाड़ियों को इन हाइड्रेंट से पानी मिल गया होता तो आग पर कम समय में काबू पाया जा सकता था। बिल्डिंग में लगे अधिकतर फायर एक्सटिंग्यूशर भी काम नहीं कर रहे थे। इस बारे में डिप्टी डायरेक्टर मेंटेनेंस सत्य प्रकाश श्रीवास्तव से बात करनी चाही तो उन्होंने अन्य अधिकारियों से बात करने को कहते हुए मामला टाल दिया।
किसान मंडी भवन में सभी फ्लोर पर यूपी सैनिक कल्याण निगम के सुरक्षा गार्डों की ड्यूटी रहती है। इसके अलावा मंडी भवन की अपनी फायर यूनिट है, जिसके कर्मचारी 24 घंटे मुस्तैद रहते हैं। बताया जा रहा है कि आग रविवार रात लगभग सवा बारह बजे लगी।
सिक्योरिटी गार्ड लाल बहादुर ने इसकी सूचना मंडी भवन की फायर यूनिट को दी। उन्होंने पहले खुद ही आग बुझाने की कोशिश की। जब रिकॉर्ड रूम पूरी तरह से आग की चपेट में आ गया और खिड़कियों से भीषण लपटें निकलने लगीं तो इसकी सूचना अग्निशमन विभाग और पुलिस को दी गई। इसके बाद फायर ब्रिगेड बुलाई गई।
चीफ फायर ऑफिसर अभयभान पांडेय ने बताया कि रविवार रात लगभग 1.43 बजे कंट्रोल रूम को सूचना मिलने के तत्काल बाद इंदिरानगर, गोमतीनगर और हजरतगंज से चार दमकल गाड़ियों को रवाना किया गया। ऊंचाई अधिक होने और मंडी भवन में लगे अग्निशमन उपकरणों के बेकार पड़े होने के चलने अग्निशमन कर्मियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
इसे देखते हुए हजरतगंज, बीकेटी, चौक फायर स्टेशन से भी छह अतिरिक्त दमकल वाहनों के साथ ही हाइड्रोलिक प्लेटफार्म मंगाया गया। 10 दमकल गाड़ियों और 50 से अधिक अग्निशमन कर्मियों ने सोमवार सुबह लगभग 10 बजे आग पर काबू पाया।
इस दौरान मंडी भवन के पांचवें और छठे तल पर रिकॉर्ड रूम, कंप्यूटर सिस्टम, लकड़ी के फर्नीचर, चीफ इंजीनियर निर्माण के दफ्तर समेत सब कुछ राख हो गया।
मधुमक्खियों ने बढ़ाई मुसीबत
अग्निशमन कर्मचारियों ने पहले हॉल के बीच से पाइप लगाकर पानी डालने की कोशिश की, लेकिन ऊंचाई अधिक होने और धुएं की वजह से दिक्कत आ रही थी। इस पर उन्होंने बिल्डिंग के बाहरी हिस्से से खिड़की तोड़कर आग बुझाने की कोशिश की, लेकिन हर खिड़की पर मधुमक्खी का बड़ा छत्ता होने से मुसीबत और बढ़ गई। इसके बावजूद वे आग बुझाने में जुटे रहे।
अग्निशमन विभाग भेजेगा खामियों की रिपोर्ट
चीफ फायर ऑफिसर अभयभान पांडेय ने बताया कि किसान मंडी भवन में अग्नि से सुरक्षा को लेकर जो खामियां सामने आई हैं, उसकी रिपोर्ट मंडी परिषद को भेजी जाएगी। उन्होंने बताया कि पिछले कई साल से किसान मंडी भवन का सर्वे नहीं हुआ है, जबकि वहां कई महत्वपूर्ण दफ्तर हैं।
राजधानी के सरकारी दफ्तरों में छुट्टी के दिन या दफ्तर बंद होने के बाद ही आग लगने की घटनाएं होती हैं और महत्वपूर्ण फाइलें इनकी भेंट चढ़ जाती हैं। जानकारों के अनुसार दफ्तर बंद होने से बिजली का लोड कम होता है। ऐसे में शॉर्ट सर्किट की संभावनाएं काफी कम हो जाती हैं। इसके बावजूद आग लगने की घटनाएं सवाल पैदा करती हैं।
पिछले दिनों स्वास्थ्य भवन में लगी आग की जांच में एसटीएफ ने फाइलों को जान-बूझकर जलाए जाने का खुलासा भी किया था। इसके बावजूद हर बार अधिकारी चुप्पी साधकर बैठ जाते हैं।
सरकारी दफ्तरों में पिछले साल लगी आग
तारीख–दिन–दफ्तर
10 मई–रविवार–इंदिराभवन स्थित बाल पुष्टाहार विभाग कार्यालय।
14 जून–रविवार–स्वास्थ्य भवन की तीसरी मंजिल पर स्थित लेखा अनुभाग।
5 अगस्त–बुधवार (दफ्तर बंद होने के बाद)–स्वास्थ्य भवन में डीजी हेल्थ कार्यालय।
6 सितंबर–रविवार–मिड डे मील प्राधिकरण दफ्तर।
18 अक्तूबर–रविवार–शक्तिभवन विस्तार का कॉरर्पोरेट सेक्शन।
1 दिसंबर–मंगलवार–(दफ्तर बंद होने के बाद) जिला नगरीय विकास अभिकरण का रिकॉर्ड रूम।