दस्तक टाइम्स/एजेंसी नई दिल्ली:
बरसों पहले उजड़े जयपुर रियासत के भानगढ़ का नाम आज भी भूतों की कहानियों से भरे रहस्य, रोमांच और जिज्ञासाओं के कारण मशहूर है। किवदंतियों के भंवर में डूबे इस कस्बे का नाम हर आदमी की जबान पर भूतों का भा
नगढ़ पड़ा हुआ है। सैकड़ों साल हो गए कोई भी आदमी शाम ढलने के बाद रात को खंडहरनुमा भानगढ़ में ठहरने की हिम्मत नहीं कर सका।
लोग कहते हैं एक अंग्रेज, वनकर्मी के साथ रात को गढ़ में रुका और सुबह दोनों मृत मिले। तब से सरकार ने सूचना पट्ट लगाकर भानगढ़ में रात को नहीं ठहरने की मुनादी करवा दी। जादू-टोने का बड़ा गढ़ मानते हुए लोग इसमें खजाना दबा होने की बात भी कहते हैं। जयपुर में किवदंती है कि गुरुवार की रात को जलमहल में लगने वाली भूतों की कचहरी में भानगढ़ और अजबगढ़ के भूत और जिन्न आते थे। वे मिठाई की दुकानों से रात को बरफी के थाल जलमहल ले जाते और बदले में चांदी के सिक्के रख जाते।
किवदंती यह भी है कि भानगढ़ के राजा माधोसिंह की रानी रत्नावती ने शृंगार सामग्री लेने दासी को बाजार भेजा। वहां एक तांत्रिक ने दासी की सामग्री में मायावी शक्ति फैला दी। इसका पता लगने पर महारानी ने उस सामग्री को दासी के साथ तांत्रिक के पास वापस भेज दिया। तांत्रिक ने सामग्री के जैसे ही हाथ लगाया वह तड़पने लगा। मृत्यु पूर्व तांत्रिक ने भानगढ़ के विनाश का शाप दे दिया।
भानगढ़ नष्ट होने की निश्चित जानकारी तो नहीं मिलती, लेकिन इतिहास खंगालने से पता चलता है कि सम्राट अकबर ने आमेर महाराजा भगवन्त दास के दूसरे बेटे माधोसिंह को भानगढ़ का राजा बनाया। हल्दीघाटी युद्ध में माधोसिंह ने अकबर की तरफ से भाग लिया और वह घायल भी हुआ। माधोसिंह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र छत्र सिंह भानगढ़ की गद्दी पर बैठा। बाद में मुगलों से हुए युद्ध में छत्रसिंह अपने दोनों बेटों भीम सिंह व आनन्द सिंह के साथ मारा गया। छत्रसिंह के बेटे अजब सिंह ने अजबगढ़ बसाया।
पर्यटन अधिकारी रहे गुलाब सिंह मीठड़ी ने बताया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने भी अपने अधीन भानगढ़ में शाम के बाद जाने पर पाबंदी लगा रखी है। 28 मई 1714 को आमेर रियासत के भानगढ़ की सालाना आमदनी 48 हजार 350 रुपए थी। 11 सौ वर्ष पुरानी नाथों की तपस्या स्थली रहे भानगढ़ में बाबा शंकरनाथ और बालकनाथ ने घोर तपस्या की थी।