कुछ ही दिनों में होगी झमाझम बारिश! हो जाइए भीगने को तैयार
वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रायद्वीपों और सागरों के बीच तापमान में भारी अंतर होना अच्छे मानसून का सूचक है। प्रायद्वीपों की गर्म हवाएं ऊपर जाकर संघनन करती हैं, जिससे मानसून बनने लगता है।
पिछले दो सालों से अलनिनो इफेक्ट के साथ कई और वजहों ने मौसम को झटका दिया। पिछले वर्षों में 2014 में औसत बारिश 886 एमएम से 130 एमएम कम हुई, जबकि 2015 में मात्र 40 फीसदी के आसपास बारिश हुई है। यह मात्र 414 एमएम रिकार्ड की गई। दो साल से लगातार औसत से कम बारिश होने से सूखा पड़ गया है।
दो साल पहले सन 2013 में भी अप्रैल में तापमान ने नए रिकार्ड बनाए थे। तापमान 45.9 डिग्री सेल्सियस तक चला गया था। इससे प्री मानसून जैसे हालात बने और मई के दूसरे पखवारे से ही बारिश शुरू हो गई। इस समय भी 2013 के जैसे ही हालात बने हुए हैं। तापमान के लगातार ऊंचे बने रहने से हिंद महासागर के ऊपर गर्म हवाओं का संघनन तेजी से हो रहा है।
उधर, पश्चिमी हवाओं ने भी दबाव बनाना शुरू कर दिया है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मौसम एवं सामुद्रिक विज्ञान विभाग के मौसम विज्ञानी डॉ. सुनीत द्विवेदी कहते हैं कि ऐसी स्थिति होने से दक्षिण पश्चिमी मानसून का बनना शुरू हो गया है। संभावना है कि मई के पहले पखवारे के अंतिम या दूसरे पखवारे के शुरूआती दिनों में बारिश हो जाए।