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कृषिण ऋण माफी को चुनावी वादों का हिस्सा नहीं बनाना चाहिए: रघुराम राजन

नई दिल्ली: देश के 13 अर्थशास्त्रियों द्वारा तैयार एक रपट में कहा गया है कि ऋण माफी से बचा जाना चाहिए, क्योंकि इससे देश में निवेश के लिए आवश्यक संसाधन दूसरी तरफ चला जाता है। यह रपट शुक्रवार को जारी की गई। रपट के लेखकों में आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी शामिल हैं। ‘एन इकॉनॉमिक स्ट्रैटजी फॉर इंडिया’ नामक रपट को जारी करते हुए राजन ने कहा कि कृषिण ऋण माफी को चुनावी वादों का हिस्सा नहीं बनाना चाहिए और उन्होंने इसके लिए निर्वाचन आयोग को लिखा है कि इसपर प्रतिबंध लगाया जाए, क्योंकि यह कृषि क्षेत्र में निवेश को रोकता है और साथ ही संबंधित राज्यों की वित्तीय स्थिति पर दबाव भी डाल रहा है।

उन्होंने कहा, “मैंने हमेशा कहा है और निर्वाचन आयोग को एक पत्र भी लिखा है कि वे इस पर रोक लगाए। मैं मानता हूं कि कृषि क्षेत्र की समस्या के बारे में निश्चित रूप से विचार किया जाना चाहिए। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या ऋण माफ करना किसानों की मदद का सर्वश्रेष्ठ तरीका है, क्योंकि कुछ ही किसान ऐसे हैं, जो ऋण लेते हैं।” राजन ने कहा, “इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि कृषि में काफी समस्याएं हैं, जिसे हमने किसानों द्वारा रेखांकित करते देखा है, और राजनीतिक पार्टियां भी ऋण माफी जैसे उपायों के जरिए उसपर प्रतिक्रिया दे रही हैं।” उन्होंने कहा, “लिहाजा, इसका अक्सर लाभ उन किसानों को मिल पाता है, जो गरीब के बदले अच्छी तरह राजनीति से जुड़े हुए हैं। दूसरी बात यह कि ऋण माफ कर दिए जाने के बाद इससे राज्य के राजकोष के लिए ढेर सारी समस्या पैदा हो जाती है। और मुझे लगता है कि इससे वहां निवेश नहीं पाता, जहां निवेश की जरूरत होती है।”

उन्होंने कहा, “हमें ऐसा वातावरण बनाने की जरूरत है, जहां वे (किसान) एक जीवंत ताकत बन सकें और मैं कहूंगा कि इसके लिए निश्चित रूप से अधिक संसाधनों की जरूरत है। क्या ऋण माफी सर्वश्रेष्ठ उपाय है? मुझे लगता है कि यह बेहद संदिग्ध है।”राजन इस समय अमेरिका में पढ़ाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कृषि ऋण माफी से बचने पर सर्वदलीय सहमति राष्ट्रहित में होगा। राजन ने कहा कि यद्यपि देश की विकास दर सात प्रतिशत है, लेकिन अर्थव्यवस्था स्पष्ट तौर से पर्याप्त नौकरियां पैदा नहीं कर रही है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि रेलवे की 90,000 नौकरियों के लिए 2.50 करोड़ लोगों ने आवेदन किया था।उन्होंने कहा, “इतने अधिक आवेदक.. यानी प्रति नौकरी 250 आवेदक और यह नौकरियां भी अच्छे वेतन वाली नहीं हैं। ये बिल्कुल छोटी नौकरियां हैं। इससे समझा जा सकता है कि नौकरियों की कितनी मांग है।” राजन ने कहा कि विकास दर से सभी सेक्टरों और सभी लोगों को लाभ नहीं हो रहा, जबकि गैरबराबरी बढ़ रही है।

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