केंद्रीय बैंकों से जरूरत से ज्यादा न रखे उम्मीद : रघुराम राजन
बासेल: भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि केंद्रीय बैंकों से जरूरत से ज्यादा उम्मीद नहीं रखनी चाहिए और न ही उन्हें हमेशा यह दावा करना चाहिए कि उनके पास हर समस्या से निपटने का कोई न कोई नुस्खा बचा रहता है। इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि उभरते बाजारों में परिस्थितियां ‘बहुत कठिन’ हैं।
यह परिचर्चा यहां अंतरराष्ट्रीय निपटान बैंक :बीआईएस: की सालाना आम बैठक में जैकबसन फाउंडेशन व्याख्यान के बाद हुई। यह व्याख्यान 26 जून को जेपी मोर्गन चेज इंटरनेशनल के चेयरमैन जैकब फ्रेंकेल ने दिया था। इसका ब्यौरा अब जारी किया गया। परिचर्चा में बैंक ऑफ मैक्सिको के गवर्नर अगुस्तुन कार्सटेंस व बैंक ऑफ फ्रांस के गवर्नर फ्रांस्वा लिवेराय दे गलहाउ ने भी भाग लिया।
राजन ने हाल ही में घोषणा कर चुके हैं कि वे रिजर्व बंक के गवर्नर पद पर दूसरा कार्यकाल नहीं लेंगे। उनका मौजूदा कार्यकाल चार सितंबर को समाप्त होगा। आईएमएफ के पूर्व अर्थशास्त्री राजन को वैश्विक वित्तीय संकट का अनुमान लगाने का श्रेय दिया जाता है। वे बीआईएस की सालाना आम बैठक में भाग लेने यहां आए थे।
राजन ने कहा कि इस समय संभ्रात लोगों व संभ्रात संस्थानों को लेकर लोगों के मन में बड़ा राजनीतिक संदेह है। हर देश में संदेह किया जाता है कि आपको वालस्ट्रीट (अमेरिकी शेयर बाजार) या अन्य देशो में इसी तरह के बाजारों के लिए बिठाया गया है और वेतन दिया जाता है।
उभरते बाजारों के बारे में रिजर्व बैंक गवर्नर ने कहा कि सबका पूरा ध्यान अपनी अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था पर होने के कारण ऐसे वातावरण में नीतियों के बाह्य प्रभाव और भी कठिन हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे वातावरण से निकलना और भी कठिन हो जाता है क्योंकि लोगों को ध्यान अपनी अपनी घरेलू नीतियों पर ही केंद्रित रहता है। ऐसे हालात में जो उससे सबसे पहले बाहर निकलने की कोशिश करता है उसे विनियम दर का तेज झटका सहना पड़ता है।
राजन ने इस स्थिति से बचने के लिए सबके समन्वय प्रयास व सहयोग पर जोर दिया पर कहा कि ‘मुझे नहीं लगता कि फिलहाल हमारे पास इसके लिए कोई उचित व्यवस्था है।’ उन्होंने कहा कि यह आप उभरते बाजार हैं तो आपकी हालात तूफानी समुद्र में घिरी छोटी कश्ती जैसी होती है और तूफान कहीं ओर से उठ रहा होता है. ऐसे में आप क्या करेंगे?
राजन ने कहा,‘ आप हमसे अपेक्षा करते हैं कि हम और अधिक परंपरावादी बने रहें। पर आप ऐसे समय हमें और अधिक परंपरावादी नीतियां अपनाने की सलाह दे रहे हैं जबकि इन परंपराओं को हवा में उड़ाया जा रहा है।’ राजन ने कहा,‘ऐसे में, श्रम बाजारों को लचीला बनाने, राजकोषीय घाटे को कम करने, मुद्रास्फीति को नीचे लाने की अच्छी अच्छी बातें करना और भी मुश्किल हो जाता है।’