दस्तक-विशेषराष्ट्रीय

केंद्र एवं राज्य सरकार के लिए चुनौतियों से परिपूर्ण नव वर्ष 2018

डॉ हिदायत अहमद खान

एक समय ऐसा आता है जबकि आपके कार्यों का अवलोकन करना जनता के लिए अनिवार्य हो जाता है। ऐसा ही समय केंद्र और राज्य सरकार के लिए वर्ष 2018 के तौर पर आ गया है। दरअसल यह वह समय है जबकि केंद्र की मोदी सरकार और मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार के कार्यों का अवलोकन आमजन के स्तर पर होना है। बहरहाल इस मूल्यांकन से पहले हम महान से महानतम होने वालों के कार्यों और छवि के बारे में संक्षेप में बात करेंगे। जैसे कि संसार में कुछ ही ऐसे लोग अवतरित होते हैं जो कि अपने निर्णयों और कार्यों से एहसास करा देते हैं कि ‘युगसृष्टा’ कैसे होते हैं। इनके किए गए कार्य और बताए गए मार्ग व दिशा-निर्देशों के साथ ही साथ उनका जिंदगी जीने का तरीका आने वाली पीढ़ी के लिए किसी पाठशाला से कम नहीं होता है। ऐसी महान हस्तियों को स्वयं से या किसी और के द्वारा महिमामंडन करने या कराने की आवश्यक्ता नहीं होती है, बल्कि उनके पदचिन्हं ही उनके महान होने के सबूत देते हैं। ऐसी महान हस्तियों के नाम से युग की पहचान होती है। ऐसी ही महान विभूतियों के व्यक्तित्व को चरितार्थ करते हुए संभवत्: यह दोहा रचा गया है, यथा- ‘लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूरि। चींटी ले शक्कर चली, हाथी के सिर धूरि॥’ राजनीति के क्षेत्र में ऐसे नाम कमाने वाले देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के प्रधानमंत्रित्वकाल में ही एक और महान विभूति के तौर पर लालबहादुर शास्त्री का नाम लिया जाता है। एक निर्धन शिक्षक मुंशी शारदा प्रसाद के घर में जन्में शास्त्री जी को महान कर्मयोगी के रुप में याद किया जाता है।

दरअसल शास्त्री जी जब नेहरूजी के प्रधानमंत्रित्व काल में रेलमंत्री थे, तब एक रेल दुर्घटना हुई और उन्होंने उसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से तुरंत त्याग पत्र दे दिया। यह शास्त्रीजी की नैतिकता और संवेदनशीलता का सबूत था। आज इसकी महती आवश्यकता है। दरअसल हम जिस दौर से गुजर रहे हैं वहां आए दिन रेल दुर्घटनाओं से लेकर सरकार के फैसलों से कदाचित देश के विकास को होने वाले गतिरोध की भी जिम्मेदारी लेने का आभाव साफ नजर आता है। ऐसे में महान विभूतियों की याद आना स्वभाविक है। वैसे इनकी याद इन नेताओं और सरकार में बैठे मंत्रियों और संत्रियों को भी आती है, लेकिन वह समय महज चुनाव का ही होता है। इसलिए कहा जा रहा है कि यह नव वर्ष मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार के लिए तो चुनौतियों से भरा होगा ही साथ ही साथ केंद्र की मोदी सरकार के लिए भी चुनौतियां लेकर आया है।

दरअसल 2018 जहां मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव वर्ष है तो वहीं 2019 में आम चुनाव होने हैं। ऐसे में मतदाताओं को साधने के लिए अपने कार्यों की समीक्षा करने और उपलब्धियों को आमजन तक ले जाने का काम भी सरकारों को प्रमुखता से करना होगा। अब जबकि केंद्र सरकार द्वारा की गई नोटबंदी, जीएसटी, आधार कार्ड की अनिवार्यता जैसे फैसले और उनके परिणाम लोगों को मथेंगे तो वहीं मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार के पिछले तीन सत्रों के काम और दावों को भी जनता अपने तराजू में तौलने का काम जरुर ही करेगी। ऐसे में प्रदेश सरकार को बताना होगा कि उसके कृषि को लाभ का धंधा बनाने में कितनी कामयाबी हासिल हुई है, जबकि प्रदेश के किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याएं और फसलों के नुक्सान का मुआबजा भी आंकड़ों के साथ सभी के सामने आएगा ही आएगा। इसी प्रकार प्रदेश की शिक्षा नीति और उच्च शिक्षा जगत में लगातार हुए घपले-घोटाले समेत आरोपियों को जेल तक पहुंचाने में सरकार और उसका तंत्र कितना कामयाब रहा और व्यापमं के तौर पर कितनी बदनामी प्रदेश को देश-विदेश में सहना पड़ी है, इसका भी मूल्यांकन कहीं न कहीं उच्च से निम्न स्तर तक किया ही जाएगा। वहीं बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराने में सरकार की सफलता या असफलता का भी आंकलन सामने होगा। सरकार और उसके नुमाइंदों से लोग पूछेंगे ही पूछेंगे कि आखिर जिन वादों के तहत उन्हें सत्ता सौंपी गई थी उस पर वो खरे कितने उतरे हैं और यदि कहीं कोई कमी दिखाई भी देती है तो क्यों?

इनके जवाब देने के लिए शिवराज सरकार को तैयार रहना होगा। वैसे शिवराज सरकार की लोकहितकारी योजनाएं और उनके क्रियांवयन को यदि सही तरीके से प्रचारित और प्रसारित इस वर्ष में किया गया और जरुरतमंदों को उनका हक दिलवा दिया गया तो कोई ऐसा कारण नहीं बचता कि शिवराज की उज्जवल छवि के साथ उनके महत्वपूर्ण कार्यों का मूल्यांकन करने वालों को तारीफ करने के लिए वाध्य न कर सके। वैसे भी कहा भी यही जाता है कि महान विभूतियाँ अपने जीवन काल में कदाचित ही यश, सफलता, सहयोग पाती हैं क्योंकि उस समय तो लोग उनका उपहास, तिरस्कार करते और उनके मार्ग में वाधा उत्पन्न करने को ही अपना धर्म मान लेते हैं। इसलिए प्रदेश की शिवराज सरकार के लिए खामोशी के साथ जिस नव वर्ष ने पदार्पण किया है वह चुनौतियों से भरा हुआ है और इससे यदि पार पा लिया गया तो मतदाताओं को साधना आसान हो जाएगा। इसी प्रकार मोदी सरकार के पास भी पर्याप्त समय लेकर यह वर्ष आया है, वो चाहे तो इसका सदुप्योग करते हुए जनहित के कार्यों में अपना सर्वस्व लगा सकती है और चाहे तो हवा-हवाई बातें करते हुए अपने कार्यकाल के व्यतीत होने का इंतजार। अंतत: यह नव वर्ष चुनौतियां जरुर लाया है लेकिन इसमें संभावित खुशियां भी हैं, जिन्हें प्राप्त करने के लिए सभी को कर्मयागी बनना ही होगा।

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए लेखक के निजी विचार हैं। दस्तक टाइम्स उसके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।)

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