नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में धारा 144 लागू होने के बावजूद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों को 2० एवं 21 जनवरी को धरना की अनुमति देने पर सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को दिल्ली पुलिस की खिंचाई की। दिल्ली के पुलिस आयुक्त को एक सप्ताह के भीतर शपथपत्र दायर करने का निर्देश देते हुए न्यायमूर्ति आर. एम. लोढ़ा और न्यायमूर्ति शिव कीर्ति सिंह ने उन्हें इस सवाल का भी जवाब देने के लिए कहा कि जब इलाके में निषेधाज्ञा लागू थी तब मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों को जमा होने और धरना देने की इजाजत क्यों दी गई। निषेधाज्ञा लागू होने के बावजूद मुख्यमंत्री को मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के साथ धरना देने पर सवाल उठाते हुए वकील एन. राजारमण ने अर्जी दायर की है जिस पर अदालत ने यह आदेश जारी किया है। उधर इसी मुद्दे पर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिका में मांग की गई है कि कोई मुख्यमंत्री जिससे कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है वह इसका उल्लंघन कर सकता है। शीर्ष अदालत ने गृह सचिव के माध्यम से केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को तब नोटिस जारी किया जब याची वकील एम.एल.शर्मा ने अदालत में संवैधानिक महत्व का सवाल उठाते हुए कहा कि ‘एक व्यक्ति एक ही साथ एक ही समय कानून बनाने वाला और कानून तोड़ने वाला नहीं हो सकता।’ इस पर न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा कि दोहरा चरित्र नहीं हो सकता। उल्लेखनीय है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस हफ्ते के आरंभ में दिल्ली पुलिस द्वारा उनके मंत्री का आदेश न मानने पर पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर धरना दिया था। दो पुलिसकर्मियों के छुप्ती पर भेजे जाने के बाद ही उनका धरना खत्म हुआ।
अदालत ने पुलिस आयुक्त से दो सवालों का जवाब मांगा है ‘‘अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के लागू होने के बावजूद कानून प्रवर्तन एजेंसी/पुलिस ने क्यों गैरकानूनी ढंग से पांच या उससे अधिक लोगों को एकत्र होने दिया।’’ न्यायालय ने यह भी पूछा है कि ‘क्या पुलिस ने गैरकानूनी ढंग से एकत्र भीड़ को धारा 129 (1) के तहत हटने के लिए कहा और बात नहीं मानने के बाद भीड़ को धारा 129 (2) के तहत बलपूर्वक हटाने का प्रयास किया या नहीं।’ जब अतिरिक्त सोलिसीटर जनरल सिद्धार्थ लूथरा ने दलील रखने की अनुमति मांगी तब न्यायमूर्ति लोढ़ा ने उनसे कहा ‘‘हमें यह बताएं कि जब निषेधाज्ञा लागू थी तब आखिर क्यों आपने उन्हें जमा होने दिया। पुलिस ने अपनी आंखें बंद रखीं और घटना घटने दिया और लोगों को जमा दिया।’’ न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा ‘‘भीड़ जमा होने ही क्यों दी गई?’’ उन्होंने कहा ‘‘विधि प्रवर्तन एजेंसियां की कुछ जिम्मेदारियां होती हैं। वे अपनी आंखों के सामने कानून तोड़ने की इजाजत नहीं दे सकतीं। आम तौर पर हम ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते लेकिन जब कानून टूटेगा तो हम हस्तक्षेप करेंगे।’’ संवैधानिक महत्व के प्रश्नों पर न्यायालय ने केंद्र और दिल्ली सरकार को जवाब देने के लिए छह सप्ताह का समय दिया है। लेकिन निषेधाज्ञा लागू करने के आदेशों से संबंधित दो सवालों का जवाब देने के लिए अदालत ने 31 जनवरी 21०4 तक का समय दिया है।