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केदारनाथ उपचुनाव : धामी के चुनावी कौशल से कांग्रेस हुई धराशाई

केदारनाथ सीट उपचुनाव को लेकर भाजपा ने तीन माह पहले से ही जबरदस्त तैयारी की थी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को खुद इस सीट को फिर से भाजपा की झोली में डालने के लिए पूरी कमान अपने हाथ में लेनी पड़ी। उन्होंने दो बार बाइक रैली समेत आधा दर्जन से अधिक जनसभाएं भी कीं। इसका फायदा भी भाजपा को मिला। इस सीट की जीत से कार्यकर्ताओं में जो जबरदस्त उत्साह बना, उससे पार्टी को आगामी निकाय व पंचायत चुनाव के लिए बूस्टर डोज मिला है।

रामकुमार सिंह

बदरीनाथ और मंगलौर विधानसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा की हार के बाद केदारनाथ सीट उपचुनाव को लेकर भाजपा की बड़ी चिंता थी। इसी कारण भाजपा ने तीन माह पहले से ही जबरदस्त तैयारी की थी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद इस सीट को फिर से भाजपा की झोली में डालने के लिए पूरी कमान अपने हाथ में ले ली और दो बार बाइक रैली समेत आधा दर्जन से अधिक जनसभाएं भी कीं। इसका फायदा भी भाजपा को मिला। भाजपा सरकार पर भले ही इस सीट की हार या जीत से फर्क न पड़े लेकिन कार्यकर्ताओं में जो जबरदस्त उत्साह बना, उससे पार्टी को आगामी निकाय व पंचायत चुनाव के लिए बूस्टर डोज मिला है। इस जीत के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं में उत्साह के कारण अब पार्टी को एक नया मंत्र भी मिल गया है कि कांग्रेस की घेराबंदी वाली सीटों को किस प्रकार से जीता जा सकता है। भारतीय जनता पार्टी ने केदारनाथ विधानसभा सीट पर अपना वर्चस्व बनाए रखा। सत्ताधारी दल भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस, दोनों के लिए यह उपचुनाव नाक का सवाल बन गया था। उपचुनाव के लिए बिछाई गई बिसात पर संगठन से लेकर सरकार के स्तर पर सधी चाल चलकर भाजपा ने विपक्ष की मजबूत घेराबंदी को ध्वस्त कर दिया। तीन महीने पहले बदरीनाथ सीट पर मिली सफलता से उत्साहित कांग्रेस ने इस उपचुनाव में भी पूरी शक्ति झोंकी, लेकिन गुटीय खींचतान की पुरानी समस्या भारी पड़ी और विजय पाने की कांग्रेस की आस अधूरी रह गई।

दूसरी ओर भाजपा को अब विपक्ष को अपने चक्रव्यूह में फंसाने के लिए एक नया मंत्र भी मिल गया है। यही कारण है कि भाजपा ने केदारनाथ चुनाव के परिणाम आने के तुरंत बाद ही अपनी आगे की रणनीति पर भी विचार-विमर्श शुरू कर दिया है। केदारनाथ उपचुनाव में जिस प्रकार से उसे सफलता मिली है, वह आगे भी इस टैंपो को बरकरार रखना चाहती है। इसके चलते भाजपा ने आगे की तैयारियां भी शुरू कर दी है। पार्टी को अब पहले निकायों के और उसके बाद पंचायत चुनाव में जाना है। इन दोनों चुनावों के बाद भाजपा के सामने 2027 के विधानसभा चुनाव की चुनौती होगी। निकायों के चुनाव में भाजपा केदारनाथ की जीत के उत्साह के साथ ही नहीं बल्कि उसके तरकश में चुनावी व्यूह रचना के वे सारे तीर हैं, जो केदारनाथ की बाजी पलटने में अचूक साबित हुए। आने वाले हर चुनाव में भाजपा की इसी व्यूहरचना के साथ उतरने की तैयारी है। केदारनाथ के चुनावी रणनीतिकारों का दावा है कि संगठन ने इसी व्यूह रचना के साथ भविष्य में चुनाव लड़ा तो विपक्षियों का शायद ही कोई दुर्ग सलामत रह पाएगा।

केदारनाथ की जीत ने भाजपा और उसके रणनीतिकारों को जोश और ऊर्जा से भर दिया है। उसके लिए यह जीत बदरीनाथ उपचुनाव की हार के घावों पर मरहम की तरह है। रणनीतिकारों की राय में इस जीत का श्रेय संगठन की त्रियामी रणनीति को जाता है। पहला संगठन की व्यूहरचना, दूसरा जमीनी पहचान और काम और तीसरा संगठन और सरकार के मध्य समन्वय। पार्टी ने चुनाव को प्रचार के आखिरी दिन तक फिसलने नहीं दिया। उनके मुताबिक, विपक्ष की रणनीति में उलझने के बजाय भाजपा ने केदारनाथ के कील-कांटों को हटाने और समस्याओं को सुलझाने पर ध्यान केंद्रित किया। देहरादून से केदारनाथ तक सीएम धामी, प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट और प्रदेश संगठन महामंत्री अजय कुमार चुनावी व्यूहरचना की लगातार नब्ज टटोलते रहे। संगठन ने समस्याओं की सूची रखी और जिसका तुरंत समाधान हुआ।

पार्टी के प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी कहते हैं कि केदारनाथ में अपनाई गई व्यूहरचना विपक्ष के किसी भी अजेय दुर्ग को भेदने में सक्षम है। इस व्यूहरचना से कांग्रेस के अभेद दुर्ग चकराता को भेदा जा सकता है। यानी पार्टी रणनीतिकार केदारनाथ के फार्मूले से चकराता के चक्रव्यूह को भेदने का ख्वाब देख रहे हैं। चार महीने पहले संगठन ने 56 अनुभवी पार्टी पदाधिकारियों की टीम को केदारनाथ में उतारा। प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी, विधायक भरत चौधरी और प्रभारी मंत्री सौरभ बहुगुणा के संयोजन में इस टीम ने सबसे पहले उन कारणों की पहचान की, जो चुनाव में भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर सकते थे। 50 प्रतिशत निष्क्रिय बूथों को बदल डाला। पांच मंडलों में आरक्षित वर्ग के मतदाताओं को साधने के लिए वहां पांच दलित नेताओं की टीम लगाई गई। प्रत्येक शक्ति केंद्र पर लगाए गए पूर्णकालिकों ने समस्याओं और विकास कार्यों की एक सूची तैयार कर मुख्यमंत्री को सौंपी। पूरे चुनाव के दौरान सीएम ने प्रत्येक बूथ अध्यक्ष से बात की। सूची के आधार पर केदारनाथ आपदा के 5821 प्रभावितों के खातों में 700 करोड़ की राहत राशि भेजी गई और अधूरी योजनाओं पर काम शुरू कराया गया, जिन पर करोड़ों खर्च हो चुके थे। ये सारे काम चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले भाजपा निपटा चुकी थी।

गौरतलब है कि भाजपा विधायक शैलारानी रावत की बीमारी के कारण हुए निधन से केदारनाथ सीट रिक्त हुई थी। यह सीट कई मायनों में भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का विषय रही है। विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का केदारनाथ धाम से विशेष लगाव रहा। केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण में मोदी स्वयं रुचि लेते रहे हैं। गत जून माह में लोकसभा चुनाव में भाजपा उत्तराखंड की सभी पांच सीटें जीतने में सफल रही, लेकिन एक महीने बाद ही हुए विधानसभा उपचुनाव में सत्ताधारी दल ने बदरीनाथ और मंगलौर की दो विधानसभा सीटें गंवा दीं। यद्यपि, बदरीनाथ सीट पहले कांग्रेस के पास ही थी, लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस विधायक राजेंद्र भंडारी के भाजपा का दामन थाम लिया था। इसलिए इस सीट पर भाजपा अपनी जीत की अधिक संभावनाएं आक रही थी। इस हार के पीछे दल-बदल को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं में असंतोष को भी बड़े कारण के रूप में देखा गया। भाजपा ने बदरीनाथ की हार से सबक लेकर केदारनाथ उपचुनाव में प्रत्याशी चयन में सतर्कता बरती। पूर्व विधायक और ग्रामीण क्षेत्र के मतदाताओं विशेषकर महिलाओं पर पकड़ रखने वाली आशा नौटियाल को प्रत्याशी बनाकर पार्टी ने कार्यकर्ताओं को भी संदेश दिया। उपचुनाव में महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में अधिक मतदान किया है। साथ ही सरकार और संगठन ने उपचुनाव के प्रबंधन से लेकर प्रचार में व्यवस्थित ढंग से हिस्सा लिया। प्रदेश सरकार के पांच मंत्रियों को पूरे विधानसभा क्षेत्र की कमान सौंपी गई। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्वयं मोर्चे पर डटे रहे।

उन्होंने ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में बैठक भी की। इसी के साथ छोटी-छोटी सभाओं, नुक्कड़ बैठकों और जनसंपर्क पर अधिक जोर देकर भाजपा ने अपनी जीत पक्की कर ली। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बहाने भाजपा र्के ंहदू मतों के ध्रुवीकरण को चुनौती देने के लिए कांग्रेस ने इस उपचुनाव के लिए विशेष रणनीति अपनाई। केदारनाथ मंदिर में सोने की परत की कथित चोरी, हक-हकूकधारियों की अनदेखी, गर्भगृह में फोटो खींचने से लेकर दिल्ली में केदारनाथ मंदिर को कांग्रेस ने बड़े मुद्दे बनाने का पूरा प्रयास किया। विपक्षी दल के दिग्गज नेता विधानसभा क्षेत्र में डेरा डाले रहे। भाजपा ने अपने चुनावी अभियान में इन सभी मुद्दों की हवा निकाल दी। प्रदेश में पार्टी के लगभग सभी क्षत्रपों को साथ लेकर मतदाताओं को लुभाने में कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस हाईकमान के निर्देश पर गठित प्रदेश कांग्रेस समन्वय समिति ने उपचुनाव की पूरी रणनीति तैयार की और उसे अंजाम भी दिया। यह अलग बात है कि प्रत्याशी के चयन को लेकर पार्टी और समन्वय समिति में उभरी रार अंदरखाने सुलगती रही और खींचतान पर विराम नहीं लग सका। उपचुनाव में मिली हार से पर्वतीय क्षेत्रों के मतदाताओं में पैठ मजबूत होने का संदेश देने की कांग्रेस की इच्छा अधूरी रह गई।

मोदी के केदारनाथ प्रेम को भाजपा ने भुनाया

विधानसभा की केदारनाथ सीट के उपचुनाव में मिली जीत ने भाजपा में नए उत्साह का संचार तो किया ही है, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का राजनीतिक कद भी बढ़ाया है। प्रतिष्ठा का प्रश्न बनी इस सीट के चुनाव अभियान की कमान मुख्यमंत्री स्वयं संभाल रहे थे। चंपावत माडल पर चलते हुए सरकार व भाजपा संगठन दोनों ने बेहतर समन्वय से चुनाव अभियान को आगे बढ़ाकर विपक्ष के हौसले को पस्त कर दिया। भाजपा विधायक शैलारानी रावत के निधन के कारण रिक्त हुई विधानसभा की केदारनाथ सीट को अपने पास बनाए रखने की भाजपा के सम्मुख चुनौती थी। इसे देखते हुए पार्टी उपचुनाव का कार्यक्रम घोषित होने से काफी पहले से मैदान में डट गई थी। मुख्यमंत्री धामी ने भी क्षेत्र में जाकर यह ऐलान किया कि जब तक उपचुनाव नहीं हो जाता, तब तक वह यहां के विधायक के रूप में काम करेंगे। परिणामस्वरूप केदारनाथ क्षेत्र के लिए सात सौ करोड़ की योजनाओं की घोषणाएं होने के साथ ही इनके शासनादेश भी जारी हुए।

उपचुनाव में भाजपा के प्रचार अभियान की अगुआई भी मुख्यमंत्री धामी स्वयं कर रहे थे। उन्होंने क्षेत्र में पांच जनसभाओं व दो बाइक रैलियों में हिस्सा लिया। मुख्यमंत्री ने केदारनाथ क्षेत्र के विकास कार्यों को रेखांकित किया तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के केदारनाथ धाम के प्रति विशेष अनुराग को भी आगे रखा। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सात बार की केदारनाथ यात्रा का उल्लेख भी उन्होंने हर भाषण में किया। भाजपा की प्रांतीय टीम के अलावा धामी सरकार के पांच मंत्रियों और कई विधायकों का उपचुनाव में बखूबी उपयोग किया गया। उपचुनाव के प्रचार अभियान के दौरान विपक्ष ने मुख्यमंत्री की घेराबंदी भी की, लेकिन परिणाम बता रहे हैं कि विपक्ष अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाया।

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