केरल के वायनाड ही क्यों जाना चाहते हैं राहुल गांधी!
नई दिल्ली : अमेठी के अलावा केरल की वायनाड लोकसभा सीट से भी राहुल गांधी के चुनाव लड़ने की खबरों ने सियासी जगत में तूफान मचा दिया है। माना जा रहा है कि पहली बार कांग्रेस के रणनीतिकारों को लग रहा है कि इस बार अमेठी से राहुल गांधी हार सकते हैं। लिहाजा दूसरी सीट की तलाश करनी पड़ी। यह सवाल लोगों के मन में उठ रहा है कि वायनाड ही क्यों? राहुल गांधी दक्षिण भारत में किसी और सीट से भी चुनाव लड़ सकते थे, लेकिन इसके बजाय उन्हें केरल में वायनाड की सीट ही क्यों नज़र आई? अगर दक्षिण भारत में ही सीट की तलाश थी तो राहुल गांधी कर्नाटक के बेल्लारी से भी चुनाव लड़ सकते थे, जहां इससे पहले सोनिया गांधी चुनाव लड़कर जीत चुकी हैं। बेल्लारी में हाल ही में हुए लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस की जीत भी हुई थी। लेकिन राहुल गांधी ने आखिर केरल की इस अनजान सी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का फैसला क्यों किया? दरअसल इसके पीछे भी कांग्रेस की घनघोर हिंदू-विरोधी मानसिकता का हाथ माना जा रहा है। राहुल गांधी अब हिंदू बहुल इलाकों की सीटों को खुद के लिए सुरक्षित नहीं मान रहे हैं। वायनाड केरल एक ऐसा जिला है, जहां हिंदुओं की आबादी 50 फीसदी से कम है। ये मुस्लिम लीग का एक बड़ा गढ़ माना जाता है। मुस्लिम लीग कांग्रेस की सहयोगी पार्टी है। वायनाड जिले में कट्टरपंथी इस्लामी संगठन जैसे PFI, जमात-ए-इस्लामी से खुलकर मदद मिलने की उम्मीद है। यहां पर ये जिहादी संगठन हिंदू संस्थाओं के खिलाफ एक तरह की लड़ाई लड़ रहे हैं। वायनाड में नक्सलियों का भी काफी दबदबा है। राहुल गांधी को उम्मीद है कि वायनाड के मुसलमान, ईसाई और नक्सली मिलकर उन्हें वोट देंगे। जिससे वो यहां पर बहुत बड़ी जीत हासिल कर सकते हैं। आम तौर पर यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार जीतते रहे हैं और दूसरे नंबर पर वामपंथी दल रहते हैं। 2014 के चुनाव में बीजेपी यहां तीसरे नंबर पर रही थी। यानी कांग्रेस को लग रहा है कि यही वो सीट है जिस पर वामपंथी दलों की मदद से जीत पक्की होगी और बीजेपी का कोई खतरा नहीं रहेगा। कांग्रेस के एमएल शाहनवाज पिछले 2 चुनाव से यहां से जीतते रहे हैं। कुछ महीने पहले उनकी मौत के बाद से ये सीट खाली है। कांग्रेस यहां पिछला चुनाव मात्र 20 हजार वोट से जीती थी। लेकिन उसे पूरा भरोसा है कि दूसरे नंबर पर रहे वामपंथी दल राहुल की उम्मीदवारी की स्थिति में सहयोग करेंगे। क्योंकि वामपंथी दल भले ही केरल में कांग्रेस से टक्कर ले रहे हों, दिल्ली में उनके लिए भी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार राहुल गांधी ही हैं। दरअसल टिकटों के बंटवारे से पहले कांग्रेस पार्टी ने एक निजी सर्वे एजेंसी की मदद से अमेठी में वोटरों का मूड भांपने की कोशिश की थी। इस सर्वे के नतीजों से कांग्रेस बेहद डरी हुई है। सर्वे में अमेठी के 60 फीसदी लोगों का मानना था कि इस बार राहुल गांधी के लिए जीतना मुश्किल होगा। 64 फीसदी लोगों ने कहा कि राहुल गांधी तक पहुंचना मुश्किल होता है। सर्वे में 74 फीसदी लोग मानते थे कि लोगों में गांधी परिवार का क्रेज कम हुआ है। ज्यादातर लोगों ने यह भी माना कि बार-बार कांग्रेस को वोट देने के बावजूद इलाके के लोगों की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं हुआ है। इस सर्वे में लोगों ने बीते 5 साल में अमेठी में केंद्र सरकार की तरफ से कराए गए कामों पर भी खुशी जताई है। कांग्रेस की चिंता की दूसरी सबसे बड़ी वजह अमेठी में पड़ने वाली विधानसभा सीटों के नतीजे हैं। 2017 में बीजेपी ने यहां की सारी विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। जाहिर है कांग्रेस के रणनीतिकार समझ चुके हैं कि अमेठी में किसी हार की स्थिति में राहुल गांधी के हाथ में दूसरी सीट होनी चाहिए।