जीवनशैली

केला दर्जन में क्यों? सेब, सन्तरे और आम क्यों नहीं, जाने पूरी कहानी…

संख्याओं के साथ समस्या यह है कि वे आपकी विशिष्टता से मुंह फेर लेती हैं। गुणधर्म यों तो गणित की इकाइयों के भी होते हैं, लेकिन उन गुणधर्मों की मार्फ़त इंसान हर समय सोचा नहीं करते। आम आदमी के लिए गणित का अर्थ संख्याएं हैं और संख्याओं का काम आर्थिक लेन-देन से अधिक और उच्चतर कुछ भी नहीं। सो गणितीयता की गुणधर्मिता होती होगी तो हुआ करे, वह गणितज्ञों के काम की ठहरी। रस-रंग, गन्ध-रूप और स्पर्श जैसी इन्द्रियों की शब्दावली के साथ संख्याओं को मानवता न बैठा सकी है और शायद कभी बैठा भी न सकेगी।
केला दर्जन में क्यों? सेब, सन्तरे और आम क्यों नहीं, जाने पूरी कहानी...
केला बड़ा पोषक फल है। ढेर सारे कार्बोहाइड्रेट ( मांड़-शर्करा ), खनिजों और विटामिनों से भरपूर।
बच्चा अब भी वहीं है। केले दर्ज़न में क्यों? सेब क्यों नहीं? सन्तरे क्यों नहीं? आम क्यों नहीं?
मैं कई प्रश्नों के उत्तर देने से बचता हूं। विशेषकर बच्चों के या जो बच्चों की तरह मुझपर विश्वास करना चाहते हैं। मैं उनकी विश्वासभंजिता को जिलाये रखना चाहता हूं। उत्तरों पर श्रद्धा लाने के अनेक ढंग-ढर्रे हैं। हर जवाब पर एक-सा भरोसा न लाइए। लेकिन यह कर पाना ज़्यादातर लोगों के सम्भव नहीं। बच्चों के लिए तो सचमुच बहुत मुश्किल है। वह मेरी बात पर आंख-मूंद भरोसा करेगा, इसलिए आंखें मुंदना जहां निश्चित हो, वहां यथासम्भव तार्किक उत्तर देना मुझे सुहाता है। इससे उत्तर की दीर्घजीविता बनी रहती है और उत्तरदायी की भी। सो मैं यही करता हूँ: केलों और किलो के बीच न बन सके रहे सम्बन्ध को उसे समझाने की कोशिश करता हूं।
केला एक एक सुपरफूड है जो मीठा होने के बाद भी रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ने नहीं देता।
कहानी केले की 
केला एक बड़ा पोषक फल है। ढेर सारे कार्बोहाइड्रेट ( मांड़-शर्करा ), खनिजों और विटामिनों से भरपूर। एक सुपरफूड। मीठा होने के बाद भी रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ने नहीं देता। पेट भी साफ़ रखता है। लेकिन इन सब बातों के बावजूद संसार-भर के केलों में एक विशिष्ट बात साझी है। दुनिया-भर में बिकने वाले लगभग आधे केले कैवेंडिश सबग्रुप के सदस्य हैं। और ये सभी दिखने में आकार-आकृति में लगभग एक-से नज़र आते हैं।

फिर इन सब केलों की पैदावार वैसे नहीं होती, जैसे अन्य पौधों या जीवजन्तुओं की होती है। यौनकर्म इनके जन्म में भूमिका नहीं निभाता। केलों के इन पौधों में परागण के बाद निषेचन नहीं होता: इनकी पैदावार होती है अलैंगिक ढंग से। केले के पौधे के ऑफशूट काटकर उन्हें मिट्टी में लगाया जाता है ताकि फसल ली जा सके। इस तरह से ढेर सारे पौधे एक ही मूल पौधे की सन्तान सिद्ध होते हैं और वह भी एक-जैसे फल पैदा करते हैं।

केेले में जितनी एकरूपता होती है उतनी किसी भी फल-सब्जी में नहीं।
केले की एकरूपता 
आप बाज़ार में दो केलों को उठाकर देखें; उनमें जितनी एकरूपता पाएंगे, उतनी आपको कई फलों-सब्ज़ियों में कदाचित् न मिले। कारण कि विश्व का आधा केला-भण्डार एक ही ‘प्रजाति’ यानी सबग्रुप का है। साथ ही यह कि उसे लैंगिक प्रजनन से पैदा नहीं किया जा रहा। सो केले का जन्म यौनहीन पादप-उद्भव की कथा है। अब यौनिक बनाम अयौनिक वंश-वृद्धि के अपने लाभ हैं और अपनी हानियां भी।

विविधता और उस विविधता से होने वाली रोग और शत्रुओं से रक्षा लैंगिक प्रजनन के कारण सम्भव हो सकी है। सेक्स के कारण जीव भिन्नता पाते हैं और इस क्रिया का जाति-विकास में बड़ा योगदान रहता है। लेकिन जब आप बाज़ार में भोजन के लिए फल-सब्ज़ी चुनने जाते हैं, तब बहुरूपता आपको आकर्षित करती है ? उत्तर ‘न’ है।

रंग-रूप में अलग दिखने वाले फल अमूमन खाने के लिए नहीं चुने जाते; उन्हें त्याग दिया जाता है। वैविध्य से भोज्य पदार्थों की स्वीकृति बढ़ती नहीं , घट जाती है। हम वही खाते हैं, जो हमें पहले से पसन्द होता है। आहार में प्रयोगधर्मिता से संसार के अधिकांश लोग बचते हैं। कारण स्पष्ट है। जब बात स्वाद और पोषण की आती है, तो हम नया कुछ चखना-खाना नहीं चाहते। पंगत-पांत में हम लक़ीर-के-फ़क़ीर बनकर ही जीमते हैं।

केला कैवेंडिश सबग्रुप का फल है।
कैवेंडिश सबग्रुप के केले 
केले अब भी ठेले पर सजे हैं। एक-जैसे। एक ही कैवेंडिश सबग्रुप के ज़्यादातर। मानों खेती ने एक ही शक़्ल के इंसान एक-साथ बिठा दिये हों। विविधता ख़त्म। खरीददार को सब एक-से दिखें। कोई अलग न जान पड़े। किसी के बिकने की सम्भावना घटे नहीं। इसलिए सब्जेक्टिविटी समाप्त ! ऑल हेल टू द बनाना-ऑब्जेक्टिविटी !

मैं अपनी बात बच्चे के सामने समाप्त करता हूं। संसार के पचास प्रतिशत केलों में आनुवंशिक विविधता नहीं है। वे एक-ही शख़्स की कॉपी हैं। और जब एक-से हो जाते हैं, तो हम एकदम संख्या हो जाते हैं। न हमारा रूप होता है, न रंग। न गन्ध होती है, न लम्बाई-छोटाई। इतनी एकरूपता कि हम तौले भी नहीं जा सकते, हम केवल गिने जा सकते हैं।

बच्चा मेरी बात शायद नहीं समझ रहा। न समझे। समझ को केले की तरह उगाया नहीं जा सकता एकरूपिता के साथ। मैं उसे इक़बाल का शेर सुनाता हूं और हम एक दर्ज़न खरीदकर घर चल पड़ते हैं:

इस राज़ को इक मर्द-ए-फ़िरंगी ने किया फ़ाश
हर चंद कि दाना उसे खोला नहीं करते ,
जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिसमें
बंदों को गिना करते हैं, तोला नहीं करते।

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