आदि शक्ति मां दुर्गा की उपासना का नौ दिवसीय पर्व नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। नौ दिनों मां दुर्गा के अलग-अलग नौ रूपों की पूजा की जाती है। लेकिन इसके साथ ही अष्टमी को कन्या पूजन का विशेष विधान है। माना जाता है कि जो लोग व्रत रखते हैं उन्हें कन्या पूजन अवश्य करना चाहिए। इस बार नवरात्रि अष्टमी या दुर्गा अष्टमी 17 अक्टूबर को है।
लखनऊ: शारदीय नवरात्रि की अष्टमी 17 अक्टूबर और नवमीं 18 अक्टूबर को मनाई जाएगी। 10 अक्टूबर से हुए शुरू नवरात्रि के आखिरी दो दिनों में कन्या पूजन की परपंरा होती है। कन्या पूजन के लिए सभी घरों में काफी दिनों पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं। अष्टमी और नवमीं वाले दिन कन्याओं को हलवा, पूरी और चने का भोग लगाने के साथ-साथ उन्हें तोहफे और लाल चुनरी उड़ाना भी शुभ माना जाता है। लेकिन यह काम शुभ मुहूर्त पर हो तब क्योंकि कलश स्थापना या फिर पूजा विधि की ही तरह कन्या पूजन का एक सही समय होता है और हर बाद अष्टमी और नवमीं दोनों दिन कन्याओं के पूजन का समय अलग होता है। देवीभागवत पुराण के अनुसार, नवरात्रि के अंत में अष्टमी या नवमी को कन्या पूजन जरूर करना चाहिए। खासकर उन लोगों को जो नौ दिन तक व्रत रखते हैं उन्हें निश्चित तौर पर कन्या पूजन करना चाहिए। मान्यता है कन्या पूजन करने से व्रत का पूरा पुण्य मिलता है। कन्या पूजन के लिए 10 वर्ष से कम उम्र की कन्याओं का पूजन श्रेष्ठ माना जाता है। कन्याओं की संख्या नौ होनी चाहिए जिससे कि देवी के नौ स्वरूपों के तौर पर उनकी पूजा कर सकें।
अष्टमी को दो शुभ मुहूर्त
सुबह 6 बजकर 28 मिनट से 9 बजकर 20 मिनट तक।
सुबह 10 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 12 मिनट तक।
नवमी को दो शुभ मुहूर्त
सुबह 6 बजकर 29 मिनट से 7 बजकर 54 मिनट तक।
सुबह 10 बजकर 46 मिनट से दोपहर 3 बजकर 3 मिनट तक।
कन्या पूजन का सही तरीका :
कन्या पूजन के दिन सुबह स्नान कर विभिन्न प्रकार के पकवान (जैसे- हलवा, पूरी, खीर, चने आदि) तैयार कर लेना चाहिए। सभी कन्याओं को भोजन कराने से पहले मां दुर्गा का हवन करना चाहिए और उन्हें भोग लगाना चाहिए। कन्याभोज करने से एक दिन पूर्व कन्याओं को आमंत्रित करें और फिर अष्टमी के दिन कन्या भोज का प्रसाद तैयार होने के बाद कन्याओं को भोजन के लिए बुलाएं। कन्या भोज के लिए पांच, नौ, 11 या 21 कन्याओं को बुलाएं कन्याओं की संख्या अपनी सुविधा के अनुसार (घटा या बढ़ा सकते हैं)। उनके पैर पखारने(धुलने) के बाद साफ आसन पर बिठाएं। अब कन्याओं को विधिवत भोजन कराएं। भोजन कराने के बाद उनके माथे पर टीका लगाएं और उन्हें प्रणाम करें। कन्याओं को विदा करने से पहले उन्हें दक्षिणा में कुछ रुपए, कपड़े या अन्न का दान करें। बहुत से जगहों पर कन्याभोज में कन्याओं के साथ एक लड़के को भी लंगूर के रूप में भोजन कराने की परंपरा है। सुबह उठकर नहाने के बाद सबसे पहले भगवान गणेश का पूजा करें, जैसे कि हर शुभ काम से पहले करते हैं। उसके बाद अष्टमी के दिन महागौरी और नवमीं के दिन सिद्धिदात्री की पूजा करें। महागौरी की पूजा करते वक्त गुलाबी रंग पहनें और सिद्धिदात्री की पूजा करते वक्त बैंगनी रंग पहनें। कन्या पूजन के लिए सिर्फ 2 से 10 साल तक की कन्याओं को ही बुलाएं क्योंकि दो साल तक की कन्याओं को पूजने से घर में दुख और दरिद्रता दूर होती है। तीन साल की कन्या को पूजने से घर में धन की वृद्धि होती है और घर खुशियां आती हैं। चार साल की कन्या को पूजने से परिवार का कल्याण होता है और पांच साल की कन्या की पूजा करने से घर में रोग से मुक्ति होती है। छह साल की कन्या घर में विद्या लाती है, सात साल की कन्या को पूजने से ऐश्वर्य मिलता है, आठ साल की कन्या को पूजने से किसी भी वाद-विवाद में वियज की प्राप्ति होती है। नौ वर्ष की कन्या को पूजने से शत्रुओं का नाश होता है और दस साल की कन्या की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कन्याओं को कभी भी जबरदस्ती या क्रोध में या फिर जल्दबाज़ी में ना बुलाएं बल्कि एक दिन पहले कन्याओं को उनके घर जाकर आमंत्रित करें। अगर कोई कन्या ना हो तो सुबह प्यार से हाथ जोड़कर उन्हें घर में प्रवेश कराएं। कन्या को बुलाने से पहले ही घर की अच्छे से साफ-सफाई कर लें। गंदे घर में कन्याओं का पूजन नहीं किया जाता। कन्याओं को घर में जयकारे के साथ बुलाने के बाद साफ आसन बिछाएं और फिर कन्याओं के पैर धोएं। उनके माथे पर रोली, कुमकुम और अक्षत का टीका लगाएं। कन्याओं के हाथों में मौली बांधे। सभी कन्याओं की घी के दीपक दिखाकर आरती उतारें। आरती के बाद कन्याओं को पूरी, हलवा और चने का बना प्रसाद खिलाएं। कन्याएं जब तक और जितना खाएं उन्हें टोके नहीं। भोग के बाद कन्याओं को भेंट और उपहार दें। आखिर में उनके पैर छूकर घर के बाहर तक विदा करें। अगर आप अष्टमी या नवमीं वाले दिन कन्या पूजन ना कर पाएं तो नवरात्रि के हर दिन एक दिन एक-एक कन्या को पूज सकते हैं। साथ ही अगर अष्टमी या नवमीं वाले दिन कन्याओं की संख्या नौ या उससे कम या फिर ज्यादा हो जाएं तो कोई फर्क नहीं पड़ता। साथ ही याद रखें कि कन्याओं को सिर्फ अष्टमी या नवमीं वाले दिन ही नहीं बल्कि साल के हरेक दिन उनका सम्मान करें।