उत्तर प्रदेशदस्तक-विशेष

कैसे मिले हर घर को बिजली

शैलेन्द्र दुबे

सामाजिक परिवेश के लिहाज से बिजली की उपलब्धता हर घर की बुनियादी जरूरत हो गयी है। आम आदमी के घर की छोटी जरूरतों से लेकर बड़े औद्योगिक और वाणिज्यिक संस्थानों के संचालन के लिए बिजली की जरूरत है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में नयी सरकार द्वारा 2018 के अंत तक हर घर को बिजली मुहैय्या कराने का संकल्प जितना लुभावना है, जमीनी सच्चाइयों को देखते हुए उतना ही चुनौतीपूर्ण है। केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण के 2016 के आंकड़ों के अनुसार उप्र के 71 प्रतिशत ग्रामीण घरों में और 19 प्रतिशत शहरी घरों में अभी भी बिजली कनेक्शन नहीं है। अलग-अलग स्तरों पर बिजली से जुड़ी अलग-अलग समस्यायें आज भी कमोबेश देश के हर प्रान्त में मौजूद हैं किन्तु उप्र इस मामले में कुछ खास ही बदनामी का शिकार रहा है। ऐसा नहीं है कि विगत डेढ़ दशक में उप्र में कुछ हुआ ही नहीं है। उत्पादन, पारेषण और वितरण के क्षेत्र में क्षमतावृद्घि हुई है और हो रही है किन्तु निजी घरानों पर अति निर्भरता और व्यापक पैमाने पर आउट सोर्सिंग के चलते जो बदलाव दिखना चाहिए था वह जमीनी स्तर पर आमजन को महसूस नहीं हो पाया।
ग्रामीण अंचलों के अलावा छोटे बड़े शहरों एवं महानगरों तक में बिजली की मांग और आपूर्ति के बीच बड़ा असंतुलन बिजली संकट को गहराता रहा है। ऐसे में सवाल यह है कि इस तरह की अस्थिरता व संकट का कारण क्या है? क्या हमारे पास बिजली की कमी है अथवा हम उतनी बिजली पैदा नहीं कर पा रहे हैं जितनी खपत है। भारत में बिजली उत्पादन की कुल अधिष्ठापित क्षमता 3,19,000 मेगावाट है जबकि अधिकतम मांग लगभग 1,50,000 मेगावाट है फिर भी देश के लगभग छह करोड़ घरों में आज भी बिजली कनेक्शन नहीं है तो यह व्यवस्था की विफलता का सबसे ज्वलन्त उदाहरण है। उप्र में ही लगभग एक करोड़ 84 लाख घरों में बिजली नहीं है और जहां है भी वहां बिजली के वोल्टेज और आने वाले घंटों पर प्रश्न चिन्ह लगा है। जो बिजली है भी वह निजी घरानों की मनमानी के चलते महंगी है।
बिजली उत्पादन और मांग
सामान्यतया बिजली उत्पादन के दो स्रोत हैं- पंरपरागत व अपरंपरागत। उप्र में अधिकांश बिजली उत्पादन परंपरागत कोयला आधारित है और मात्र 500 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन की क्षमता है। विगत डेढ़ दशक में उप्र में सरकारी क्षेत्र में मात्र 2000 मेगावाट उत्पादन क्षमता बढ़ी है जब कि निजी क्षेत्र में 6810 मेगावाट की नई क्षमता आई है। दर असल विगत सरकारों ने सरकारी क्षेत्र में बिजली घर लगाने के बजाय निजी क्षेत्र में 15000 मेगावाट से अधिक की बिजली परियोजनायें दे दी जिसमे केवल 6810 मेगावाट के नए बिजली घर बन सके। सरकारी क्षेत्र में उप्र राज्य विद्युत उत्पादन निगम की कुल स्थापित क्षमता लगभग 5993 मेगावाट है जिसमें 2993 मेगावाट क्षमता की इकाइयां 25 साल से 45 साल तक पुरानी हो चुकी हैं और उन्हें अब पूरी क्षमता पर चलाना सम्भव नहीं है।
गर्मियों में बढ़ेगी रिकार्ड मांग
उप्र में आने वाली गर्मियों में बिजली की मांग 19,000-20,000 मेगावाट से अधिक हो जाने की संभावना है। अभी ही मांग 17000 मेगावाट के पार जा चुकी है। दिन भर की कुल मांग 35 करोड़ यूनिट है जो मई-जून में और अगले महीनों में आगे 40 करोड़ यूनिट प्रतिदिन से अधिक होगी। बिजली की उपलब्धता की बात करें तो प्रदेश के सरकारी क्षेत्र से लगभग 4500 मेगावाट, प्रदेश के निजी क्षेत्र से लगभग 4500-5000 मेगावाट और केंद्र से लगभग 5000 मेगावाट बिजली मिलती है। इस तरह उपलब्धता लगभग 14500 मेगावाट है। शेष बिजली निजी घरानों से लंबी अवधि व अल्प अवधि के बिजली क्रय करारों से ली जाती है। समय-समय पर एनर्जी एक्सचेन्ज से भी उपलब्धता के आधार पर थोड़ी बहुत बिजली खरीद कर काम चलाया जाता है, लेकिन इसके बावजूद प्रचंड गर्मी में बिजली की कमी बनी ही रहती है जबकि निजी घरानों से काफी मंहगी कीमत रुपये 4़45 से रुपये 8़15 प्रति यूनिट चुका कर बिजली लेनी पड़ती है। उत्पादन के मामले में विगत सरकारों की निजी घरानों पर अति निर्भरता की गलत ऊर्जा नीति के चलते जहां एक ओर काफी महंगी बिजली मिलती है जिसका भार अन्तत: आम उपभोक्ता पर टैरिफ बढ़ाकर डाला जाता है वहीं निजी घरानों की बिजली घर संचालन की मनमानी के चलते कई बार बिजली संकट भी बढ़ जाता है। ध्यान रहे बिजली खरीद करार में ऐसे अनेक पैरा जुड़े हैं जिनके तहत बिजली घर बंद होने पर भी विद्युत वितरण कंपनियों को बिना बिजली खरीदे बिजली की प्रति यूनिट फिक्स कस्ट का भुगतान उन्हें करना पड़ता है जो भारी रकम होती है। प्रसंगवश प्रदेश के सरकारी क्षेत्र के जल विद्युत गृहों से 67 पैसे प्रति यूनिट ताप बिजली घरों से 3़80 रुपये प्रति यूनिट और केंद्र सरकार से 3़20 प्रति यूनिट की दर पर बिजली मिलती है जो निजी क्षेत्र से पांच रुपये से आठ रुपये प्रति यूनिट तक मिल रही है।
विद्युत् परिषद का विघटन – जल्दबाजी में उठाया गया कदम
14 जनवरी 2000 को उप्र राज्य विद्युत परिषद का विघटन कर चार ऊर्जा निगम बनाये गये, बाद में और छोटे-छोटे टुकड़े कर नौ निगम बना दिये गये। पांच निगम वितरण के, एक पारेषण का, दो अलग-अलग निगम ताप व जल विद्युत उत्पादन के और उप्र पावर कारपोरेशन इस तरह आज कुल नौ ऊर्जा निगम हैं प्रदेश में। विघटन के समय सबसे बड़ा तर्क घाटे का दिया गया था। वर्ष 1999-2000 में जो घाटा सालाना 453 करोड़ रुपये का था वह अब बढ़कर सालाना 12,000 करोड़ रुपये हो गयी है। वितरण कम्पनियों का सकल घाटा और कर्ज 60 हजार करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। परिणाम स्वरूप न बैंक कर्ज देने को तैयार है और न ही निजी घरानों से बिजली खरीदने के लिए पैसा है। दर असल सुधार के नाम पर किये गये सभी प्रयोगों की नीति तो गलत थी ही, नियत में भी खोट था। विघटन कर छोटे-छोटे कारपोरेशन बनाने की मंशा निजीकरण करने की थी जो सफल नहीं हो पायी। निजीकरण करना है इसीलिये कुशल तकनीकी कर्मियों और इंजीनियरों की भर्ती भी रोक दी गयी। वर्ष 2000 में विघटन के समय लगभग 60 लाख उपभोक्ता थे और एक लाख कर्मचारी। आज 1़79 करोड़ उपभोक्ता हैं और मात्र 20 हजार कर्मचारी। बिजली उपकेन्द्र ठेके पर चल रहे हैं। मीटर रीडिंग, बिलिंग और बिजली देने का कार्य ठेकेदार के संविदा कर्मचारी कर रहे हैं। मीटर बिजली का तराजू है। सोचिए यदि तराजू ठेके पर दे दिया जाये तो दुकान का दीवाला तो निकलना ही है। यही हो रहा है। निजी घरानों से मंहगी बिजली खरीद उस पर 30 प्रतिशत से अधिक हानियों (जिसमें कम से कम 15 प्रतिशत चोरी और फिजूल खर्ची है) उस पर आउट सोर्सिंग ने कुल मिलाकर उप्र के ऊर्जा निगमों को वित्तीय तौर पर कंगाल कर दिया है।
जरूरी है दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति
सरकार ने बिजली चोरी पर सख्त कदम उठाने का इरादा जताया है जो स्वागत योग्य है। गुजरात मॉडल हो या पटियाला मॉडल बिजली चोरी रोकने के लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति जरूरी है। पटियाला मॉडल के तहत अधिक बिजली चोरी के क्षेत्रों में उपभोक्ता के मीटर बाहर पोल पर लगा दिये जाते हैं जिससे नीचे कोई छेड़खानी हो भी तो वह मीटर में चढ़ती रहेगी। उपभोक्ता इसका विरोध करते हैं और समूह बनाकर बिजली कर्मियों के साथ मारपीट पर उतर आते हैं। स्वाभाविक है यह प्रयोग देखने में आसान लगता है किन्तु बिना सख्ती के इसका क्रियान्वयन आसान नहीं है। उप्र के अलावा कई प्रान्तों ने ऊपर खंभे पर मीटर लगाकर बिजली चोरी रोकने में कामयाबी हासिल की। यदि उप्र में अवैध बूचड़खाने बन्द हो सकते हैं तो बिजली चोरी क्यों नहीं रुक सकती। गुजरात मॉडल के तहत गुजरात में 46 डेडीकेटेड पुलिस स्टेशन और 172 डेडीकेटेड पुलिस स्क्वायड हैं जो केवल बिजली चोरी पकड़ते हैं, सभी थानों व स्क्वायड का साप्ताहिक और मासिक लक्ष्य तय किया जाता है और उन्हें अपनी रिपोर्ट देनी होती है। गुजरात की तुलना में उप्र की आबादी चार गुना अधिक है। इसी अनुपात में यहां लगभग 200 थाने और लगभग 800 पुलिस स्क्वायड बनाने होंगे। एक बार बिजली चोरी के विरोध में माहौल बनने की बात है फिर बातें अपने आप सुधरने लगेंगी।
यह कहने में हर्ज नहीं है कि बिजली के मामले में देश के राजनीतिक दलों की तरफ से घटिया सियासत होती रही है जो अब बंद होनी चाहिए। बिजली एक जटिल तकनीकी विषय है-इसे तकनीक से ही चलने दीजिए। इसके महत्व और उपयोगिता को गहराई से बिना समझे इस मुद्दे का राजनीतिक इस्तेमाल बन्द होना चाहिए। इसके अलावा विद्युत ऊर्जा के प्रति हमारे कुछ सामाजिक दायित्व भी हैं। बिजली होने की स्थिति में हम बिजली की बचत का ख्याल नहीं रखते। सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए हमें यह भी समझना होगा कि ऊर्जा के स्रोत सीमित हैं, लिहाजा हम असीमित ऊर्जा खर्च करने से बचें अन्यथा हमें ऊर्जा के अभिशाप का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। आज उप्र ही नहीं तो सारा देश बिजली के मोर्चे पर एक चुनौती का सामना कर रहा है जिसका समाधान समाज और सरकार दोनों के प्रयासों से ही सम्भव हो सकता है। बिजली के मोर्चे पर हमें जन लुभावन नारों से बचते हुए स्वविवेक से बिजली की फिजूल खर्ची रोकने की दिशा में प्रयासरत रहना चाहिए।

बिजली चोरी-तिजोरी से नगदी चोरी के समतुल्य
बिजली की चोरी सरकारी खजाने से नगदी चोरी के समतुल्य है और यदि सरकार बिजली चोरी रोकना चाहती है तो उसे कठोरतम कदम उठाने होंगे। प्रदेश में प्रतिदिन 35 करोड़ यूनिट बिजली की आपूर्ति होती है। यदि 15 प्रतिशत चोरी या फिजूल खर्ची मान कर चलें तो कम से कम 5 करोड़ यूनिट बिजली रोज चोरी हो रही है जिसकी कीमत 25 करोड़ रूपये से अधिक है। इस प्रकार लगभग 10 हजार करोड़ रुपये की बिजली हर साल चोरी या फिजूल खर्ची में चली जाती है। उप्र में लगभग पौने दो करोड़ घरों में बिजली नहीं है। सरकार की योजना के अनुसार अगले डेढ़ साल में कम से कम एक करोड़ 84 लाख नये कनेक्शन देने होंगे। यदि बिजली चोरी रोक ली जाए तो नये घरों में बिजली देने के लिए कम से कम पांच करोड़ यूनिट बिजली कम खरीदनी पड़ेगी जो चोरी हो रही है। इस प्रकार पैसा भी बचेगा और चोरी हो रही बिजली का राजस्व भी मिलने लगेगा।
(लेखक आल इंडिया पावर इन्जीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन हैं।)

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