दस्तक-विशेषराष्ट्रीय

‘‘कोटिक मिले असंत’’

जो व्यक्तित्व अपने को इन्द्रियों के भोग से ऊपर नहीं उठा सका है वह असल और नकल का भेद बहुत दिनों तक छुपा नहीं सकता। जो व्यक्तित्व इंद्रिय भोग से पृथक अपनी चेतना को नहीं ले जा सका है वह काम, क्रोध, मद, लोभ को कैसे नियंत्रित कर सकता है, और इसी का नतीजा है कि दांव-पेंच और आडंबर से बनाए गए आभामंडल जिसके ये नकली बाबा स्वयंभू बनकर झूठी लीलाओं से समाज को बरगलाते हैं और ताकत के नशे में कुछ ऐसे कृत्य कर बैठते हैं कि धर्म, समाज को तो बदनाम करते ही हैं और अपने जीवन को भी पथभ्रष्ट कर डालते हैं और जैसी करनी वैसी भरनी के परिणाम स्वरूप जेल की सलाखों के पीछे पहुंच जाते हैं।

-जितेन्द्र शुक्ल देवव्रत

भारत हमेशा से साधु-संतों के द्वारा मार्गदर्शित और धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत रहा है। संतों ने समय-समय पर राष्ट्र और समाज को सशक्त वैचारिक मार्गदर्शन दिया है। यहां तक कि गीता में श्रीकृष्ण का आश्वासन है कि भारत सदा धर्म से ही जाना गया है और धर्म से ही आगे भी जाना जाता रहेगा। साधु संप्रदाय और वेदांत दर्शन के अनुसार कोई भी व्यक्ति जब लौकिक संसार से अलग हटकर परालौकिक संसार की चेष्टा करता है और उसको जानने समझने की ओर अग्रसर होता है तो अधर्म से धर्म और धर्म से सत्य को खोजता हुआ अपने शारीरिक स्तर से ऊपर उठते हुए शरीर, इंद्रिय, मन, बुद्धि के स्तर से उठता हुआ आत्मा के स्तर पर अपनी साधना को केन्द्रित करता है तभी वह परालौकिक जगत की सूचनाओं और अनुभव को प्राप्त करता है किन्तु आज के भौतिक समाज में असली साधु-संतों की लोकप्रियता को देखते हुए कुछ लोभी और इंद्रिय भोगों तक सीमित लोगों ने इन संतों की बराबरी करने की कोशिश में झूठा चोला पहनकर बाबागिरी शुरू कर दी, किन्तु जो व्यक्तित्व अपने को इन्द्रियों के भोग से ऊपर नहीं उठा सका है वह असल और नकल का भेद बहुत दिनों तक छुपा नहीं सकता। जो व्यक्तित्व इंद्रिय भोग से पृथक अपनी चेतना को नहीं ले जा सका है वह काम, क्रोध, मद, लोभ को कैसे नियंत्रित कर सकता है, और इसी का नतीजा है कि दांव-पेंच और आडंबर से बनाए गए आभामंडल जिसके ये नकली बाबा स्वयंभू बनकर झूठी लीलाओं से समाज को बरगलाते हैं और पैसे की ताकत के नशे में कुछ ऐसे कृत्य कर बैठते हैं कि धर्म, समाज को तो बदनाम करते ही हैं और अपने जीवन को भी पथभ्रष्ट कर डालते हैं और जैसी करनी वैसी भरनी के परिणाम स्वरूप जेल की सलाखों के पीछे पहुंच जाते हैं।
सर्वकालिक आलोचक कबीर दास ने कई शताब्दी पहले लिखा था कि, ‘‘ संत न छोड़े संतई, कोटिक मिले असंत। चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।। ’’ हालांकि उनका आशय सद् विचारों वाले संतों से था। उनका कहना था कि जो व्यक्ति सद् विचारों से ओतप्रोत है और दृढ़ प्रतिज्ञ है वह अपने विचारों और मार्ग से कभी नहीं डिगता भले ही उसे करोड़ों की संख्या में दूषित सोच व मानसिकता वाले लोग क्यों न मिलें। ठीक उसी तरह जैसे चन्दन की लकड़ी में उससे लिपटे भयंकर विषधारी सर्पों का विष असर नहीं करता है। लेकिन शायद वह दौर और था तथा आज का समय कुछ और है। आज के दौर में साधु-संतों के भेष में नकली बाबाओं की भरमार है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि बीते एक दशक में जिस तरह से एक के बाद एक कथित रूप से अध्यात्म से जुड़े बाबाओं व संतों की करतूतें सामने आयी हैं, उससे यह तो साफ हो गया है कि अब इस सत्य मार्ग की नकल करने वाले कुछ कुमार्गी भी इसमें शामिल हो गए हैं। जीवन की आपाधापी में अंधविश्वास भी तेजी से अपने पंख फैला रहा है। यही एक वजह है कि तनाव और जीवन की समस्याओं से निजात पाने के लिए लोग किसी भी हद तक जाने को आतुर रहते हैं। बस इसी स्थिति का लाभ उठाकर ढोंगी और पाखंडी लोग बाबा एवं संत का चोला ओढ़कर लोगों की भावनाओं और आस्था से खेलने से नहीं चूकते हैं। इन ढोंगियों को जब राजनैतिक प्रश्रय मिलने लगता है तो यह दिन दूनी और रात चौगनी ‘तरक्की’ करते चले जाते हैं। और जहां तक राजनैतिक दलों की बात है तो उनके तराजू में सब कुछ वोट के बांट से तौला जाता है।
पिछले दिनों रूपहले पर्दे पर एक फिल्म आयी थी, ‘पीके’। इस फिल्म के जरिए फिल्मकार ने ऐसे ही ढोंगी व फर्जी संतों की कलई खोली थी। इससे पहले भी इसी विषय को लेकर कई फिल्में आयीं लेकिन सभी ने उसे सिर्फ मनोरंजन की दृष्टि से देखा और इसमें दी जा रही शिक्षा को नजरअंदाज किया। देश में जब आसाराम बापू कानून की गिरफ्त में आये तो इस पर बड़े पैमाने पर बहस शुरू हुई। लेकिन सिर्फ सतही बहस ही हुई। तभी तो आज भी कई ढोंगी बाबाओं की दुकानें न सिर्फ सजी हैं बल्कि चल रही हैं। फर्जी संतों ने कइयों की जिंदगी नरक की है, कइयों के घर उजाड़ दिए। सबसे ज्यादा नुकसान उन लोगों का हुआ है, जो धार्मिक आस्थाओं के प्रति अटूट विश्वास रखते थे, क्योंकि भारत की पहचान सदा से ही साधु-संतों से जुड़ी रही है। लेकिन पिछले एक-दो दशक से कुछ फर्जी बाबाओं ने अपनी काम वासना के वशीभूत होकर साधु-संतों की परंपरा को बदनाम करने का काम किया है। इन्हीं परिस्थितियों और गिरती साख को देख भारतीय हिंदू संतों की प्रमुख संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने कुल चौदह ढोंगी संतों की एक सूची मीडिया में जारी की है। सूची में जेल की हवा खा रहे बाबा रामपाल, गुरमीत राम रहीम सिंह इंसां, आसाराम, नारायण साईं व असीमानंद के अलावा निर्मल बाबा, राधे मां और कई ऐसे इच्छाधारी बाबा शामिल हैं, जो पिछले कुछ सालों में अपनी करनी के चलते विवादों में रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इन सभी बाबाओं के मजबूत राजनैतिक संबंध रहे हैं। राजनेताओं की ही छत्रछाया के चलते इनका इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा हुआ। हालांकि अखाड़ा परिषद द्वारा लिए गए फैसले का चहुं ओर स्वागत हो रहा है, लेकिन कुछ का यह भी कहना है कि सूची जारी करने में परिषद ने बहुत देर कर दी। परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का कहना है कि इन बाबाओं की वजह से सनातन धर्म को बहुत नुकसान हुआ है। सच भी है कि इन इच्छाधारी बाबाओं ने साधु-संतों की आस्था व विश्वास पर सीधी चोट मारी है। इनकी इन हरकतों से सच्चे संत और यह समाज आहत हैं। अखाड़े ने जारी की गई सूची केंद्र सरकार, सभी राज्य सरकारों, चारों पीठों के शंकराचार्य और 13 अखाड़ों के पीठाधीश्वरों को भी भेजी है और इनके बहिष्कार की मांग की है। इसके अलावा अखाड़ा परिषद कोशिश करेगी कि इन बाबाओं को कुंभ, अर्धकुंभ और दूसरे धार्मिक समागमों में प्रवेश न मिले, इसका भी इंतजाम किया है। परिषद का मानना है कि ऐसा करने से इन इच्छाधारी बाबाओं के हौसले पस्त होंगे।
भारत के लाखों लोगों की आस्था को तब करारा झटका लगा, जब संत आसाराम बापू के ऊपर रेप, छेड़खानी और हत्या का मुकदमा चला। पहले तो लोगों को इस पर विश्वास ही नहीं हुआ, लेकिन पुलिस के हाथ ऐसे सबूत आए कि लोगों की आस्था टूट गई। 2013 में आसाराम पर एक नाबालिग लड़की के रेप का आरोप लगा, जिसके बाद से वो जोधपुर जेल में ही बंद है। कई बार स्वास्थ्य कारणों का हवाला दे बाबा ने जमानत याचिका दायर की, लेकिन अभी तक उन्हें जमानत नहीं मिली है। आसाराम ने अपने धर्म की दुकान गुजरात के अहमदाबाद से शुरू की। धर्म का सहारा लेकर इन्होंने अरबों का साम्राज्य खड़ा किया है। इन पर आरोप है कि ये आशीर्वाद देने के नाम पर नाबालिग लड़कियों का यौन शोषण और बलात्कार करते थे। वहीं आसाराम के जेल जाने के बाद उसके बेटे साईं पर भी गंभीर इल्जाम लगे। दरअसल, 2008 में मोटेरा स्थित आसाराम गुरुकुल में दो छात्राओं की मौत हो गई थी। उस समय मामले को दबाने की काफी कोशिशें की गई थीं। 2009 में एक शख्स ने आरोप लगाया कि आश्रम में लड़कियों का शोषण होता है। साथ ही उन्हें मारने के लिए तंत्र-मंत्र का इस्तेमाल किया जाता था।
भारत के विवादित धर्मगुरुओं की लिस्ट में नित्यानंद स्वामी का नाम प्रमुखता से आता है। बाबा उस वक्त सुर्खियों में आ गए थे जब 2010 में एक एक्ट्रेस के साथ सेक्स करते हुए उनकी कथित सीडी एक टीवी चैनल पर प्रसारित की गई थी। पुलिस कार्रवाई में स्वामी के बंगलुरु के पास स्थित आश्रम से कंडोम और गांजा बरामद हुआ था। एक महिला ने टीवी चैनल पर आकर आरोप लगाया था कि स्वामी लंबे वक्त से उनका रेप कर रहा था। इसके बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने स्वामी की गिरफ्तारी के आदेश दिए थे। महिला ने आरोप लगाया था कि शिकायत करने पर उसे जान से मारने की धमकी भी मिली थी। इससे पहले उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के ढोंगी बाबा रामशंकर तिवारी को उनके भक्त परमानंद के नाम से भी जानते थे। इनके ऊपर बांझ महिलाओं के अश्लील वीडियो बनाने का इल्जाम है। इस पाखंडी का शिकार हुई महिलाओं के मुताबिक, बाबा सीसीटीवी कैमरा के सामने ही उन्हें गलत ढंग से छूता था। इस बाबा का भांडा तब फूटा, जब इसके ऑफिस का कम्प्यूटर खराब हो गया। उसके रिपेयरिंग के दौरान ये वीडियोज सामने आए। एक महिला ने बाबा पर धोखाधड़ी और मारपीट कर रेप करने का इल्जाम लगाया, जिसके बाद पुलिस ने ढोंगी बाबा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
उप्र के ही चित्रकूट में रहने वाले संत भीमानंद महाराज उर्फ शिव मूरत के कारनामे भी मीडिया की सुर्खियां बन चुके है। इस पाखंडी बाबा ने कुछ ही सालों में करोड़ों की सम्पत्ति बना ली। महाराज के प्रवचन सुनने लाखों लोग आते थे। 1998 से 2010 तक इस बाबा को कई सेक्स रैकेट चलाने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया। लेकिन हर बार उसे जमानत मिल गयी। इस बार दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने इसे सेक्स रैकेट चलाने के लिए गिरफ्तार किया है। स्थिति तो तब और विकराल हो गयी जब नोएडा और गाजियाबाद में रियल एस्टेट के साथ बीयर बार-पब जैसे कारोबार से जुड़े रहने वाले सचिन दत्ता उर्फ सच्चिदानंद अचानक से बाबा बन गया। इतना ही नहीं सच्चिदानंद धोखे से निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर बन गए। इनके दीक्षा दिलाने के अवसर पर हेलीकॉप्टर से फूल बरसाए गए थे, तत्कालीन सपा सरकार के कद्दावर मंत्री शिवपाल सिंह यादव इसके साक्षी बने थे। वहीं इसी दौरान खुद को देवी बताने वाली सुखविंदर कौर उर्फ राधे मां सुर्खियों में आयीं। राधे मां का विवादों से पुराना नाता है। ये भक्तों की गोद में बैठने तक के पैसे लेती हैं। चार अप्रैल 1965 में पंजाब के जिले गुरुदासपुर के दोरंगला गांव में जन्मीं सुखविंदर कौर पति की खराब आर्थिक हालत के चलते मुंबई में दूसरे के घरों में काम करती थीं। महज 10वीं तक पढ़ी राधे मां की 17 साल की उम्र में शादी हुई थी। कुछ साल पहले इन्होंने खुद को महंत घोषित कर दिया था। राधे मां पर खुदकुशी के लिए उकसाने जैसे गंभीर मामले चल रहे हैं। एक और बाबा जो कभी पेशे से ठेकेदार थे इन दिनों चर्चा में हैं। नाम है निर्मल बाबा। यूं तो यह लोगों से मंदिर में दर्शन करने, अमुक वस्तु का दान करने, गरीबों को भोजन कराने जैसे उपाय बताते हैं लेकिन उनकी कार्यर्शली भी विवादों में रही। बीते दिनों कुछ मामले प्रकाश में आने के बाद उनका आभा मण्डल कुछ कमतर हुआ था लेकिन एक बार फिर उनकी ‘दुकान’ चल पड़ी है। टीवी चैनलों पर निर्मल बाबा काफी लोकप्रिय हैं। ये आज भी ऊटपटांग उपाय बताकर लोगों की समस्याएं सुलझाने का दावा कर रहे हैं। झारखंड के वरिष्ठ राजनेता इंदर सिंह नामधारी निर्मल बाबा उनके रिश्तेदार हैं। निर्मल बाबा इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके हैं और इन पर आय से अधिक संपत्ति समेत कई मामले दर्ज हैं। इन दिनों हरियाणा प्रांत के सिरसा के डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम चर्चा में हैं। हाल ही में उन्हें रेप के मामले में सजा मिली है। 15 अगस्त 1967 को राजस्थान के श्रीगंगानगर में जन्मे राम रहीम 1990 में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख बने। ये खुद को रॉकस्टार बाबा के रूप में प्रस्तुत करते रहे। इन्होंने अपनी ही बनायी फिल्मों में अभिनय भी किया। गुरमीत राम रहीम पर रेप के अलावा पत्रकार और सेवादार की हत्या मामले में भी आरोप हैं। फिलहाल डेरा सच्चा सौदा गुरमीत राम रहीम रेप के मामले में रोहतक जेल में कैद हैं। इनके पास भी अकूत संपत्ति है और लगभग हर दल के छोटे-बड़े नेता इनके डेरे में हाथ बांधे खड़े देखे गए हैं। फर्जी बाबाओं का समर्थन करने को लेकर इस वक्त कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल चल रहा है। कांग्रेस कह रही है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छ भारत अभियान में योगदान के नाम पर राम रहीम की सराहना कर चुके हैं और भाजपा मंत्रियों ने डेरा को भारी भरकम दान-दक्षिणाएं दी हैं। लेकिन यह भी सच है कि कांग्रेस भी इस मामले में बराबर की दोषी है। वर्ष 2007 में डेरा सच्चा सौदा के मुखिया ने कांग्रेस का समर्थन किया था। जनवरी, 2012 को कैप्टन अमरिंदर सिंह राम रहीम से जाकर मिले थे और विधानसभा चुनाव के लिए समर्थन मांगा था। इस साल चुनाव से पहले वरिष्ठ कांग्रेसी नेता राजिंदर कौर भट्टल और कैप्टन अभिमन्यु भी डेरा गए थे। वास्तव में जब यह साफ हो गया कि राम रहीम का समर्थन भाजपा को रहेगा तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी राधा स्वामी सत्संग ब्यास डेरा पहुंचे थे, जिसके डेरा सच्चा सौदा से भी ज्यादा अनुयायी हैं (अजय माकन भी इनमें शामिल हैं)। लेकिन उनकी दाल यहां नहीं गली क्योंकि इस डेरा के मुखिया (जिन्हें बाबाजी कहते हैं) किसी भी तरह के राजनीतिक जुड़ाव के खिलाफ हैं और प्रचार-प्रसार से भी दूर ही रहते हैं। सच तो यह है कि तमाम राजनीतिक दल डेरा सच्चा सौदा से जुड़े मजहबी सिख (दलितों) और निम्न ओबीसी समर्थकों के वोट पाना चाहते हैं।
हरियाणा के ही स्वयं को भगवान बताने वाले रामपाल भी इन दिनों जेल में कैद हैं। हरियाणा के सोनीपत के गोहाना तहसील के धनाना गांव में पैदा हुए रामपाल हरियाणा सरकार के सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर थे। स्वामी रामदेवानंद महाराज के शिष्य बनने के बाद नौकरी छोड़ प्रवचन देना शुरू किया था। बाद के दिनों में कबीर पंथ को मानने लगे और अपने अनुयायी बनाने में जुट गए। रामपाल के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज है। 2006 में रामपाल पर हत्या का केस दर्ज हुआ था। साफ है कि बीते तीन दशकों में भक्ति की आड़ में अंधभक्ति खूब फली-फूली है। इंसान को कोई थोड़ा सा दुख होता है तो सीधे ढोंगी बाबाओं के शरण में पहुंच जाते हैं। इसी कमजोरी का ये बाबा फायदा उठाते हैं। अंधविश्वास में डूबे लोग ऐसे बाबाओं के अनुयायी होते हैं फिर चाहे वो कम पढ़े लिखे हों या फिर खूब पढ़े लिखे। यह भी एक तथ्य है कि जो लोग अंधविश्वसी नहीं होते हैं वो डर की वजह से धर्म के नाम पर फर्जी दुकान चलाने वालों को खुलकर विरोध नहीं कर पाते। आस्था के नाम पर पाखंड फैलाने वाले ढोंगी बाबाओं के आश्रम में कानून सिर्फ उन्हीं का चलता है। आश्रमों के अंदर की दुनिया, बाहरी दुनिया से कटी रहती है। जरूरत सिर्फ और सिर्फ समाज को जागरूक करने की है ताकि ऐसे ढोंगी बाबाओं की दुकानें सजने से पहले ही उजड़ जायें।

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