नई दिल्ली। कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल की इमरजेंसी विभाग में कार्यरत डॉक्टरों की तत्परता से कोमा में जा चुके 74 वर्षीय गंभीर डायबिटिक मरीज की जान बचाई जा सकी। मरीज का श्वसन तंत्र पूरी तरह काम करना बंद कर दिया था। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत रमेश को सुबह 7 बजे अस्पताल की इमरजेंसी में लाया गया था, उस समय उनकी हालत बेहद नाजुक थी। डॉक्टरों ने जांच में पाया कि कि उन्हें एक्यूट रेसिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) है। यह एक बेहद तेजी से गंभीर स्थिति में पहुंचने वाली बीमारी है, जिसमें फेफड़ों के भीतर तरल पदार्थ लीक हो जाता है जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है अथवा सांस लेना पूरी तरह से बंद हो जाता है। उनको डायबीटीज के साथ-साथ हाइपरटेंशन भी था। एआरडीएस सांस लेने में दिक्कत और खांसी, बुखार, दिल की धड़कने तेज होने और तेज-तेज सांस चलने जैसे लक्षणों के साथ सामने आता है और मरीज को सांस अंदर लेने के दौरान सीने में दर्द भी हो सकता है।
कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, गुडगांव के इंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. अभय अहलुवालिया ने कहा, “जब मरीज को हॉस्पिटल में लाया गया था तब उनका शुगर स्तर बढ़कर 500 हो गया था। चूंकि उनकी हालत ऐसी थी कि कुछ ही मिनटों के भीतर वह कंप्लीट रेस्पिरेटरी अरेस्ट की स्थिति में पहुंच सकते थे, ऐसे में उन्हें तुरंत आईसीयू में शिफ्ट करने के अलावा हमारे आस कोई विकल्प नहीं था। क्योंकि वह डायबिटिक कोमा में थे, जो कि डायबीटीज संबंधी एक जानलेवा स्थिति है, जिसमें मरीज मूर्छित हो जाता है, इसलिए डॉक्टरों ने उन्हें तुरंत वेंटिलेटर पर रखा।”
डायबिटिक कोमा एक मेडिकल इमरजेंसी होती है और अगर इसका इलाज न किया जाए तो यह स्थिति जानलेवा हो सकती है। रमेश को लगभग चार दिनों तक वेंटिलेटर पर रखा गया जिसके बाद उनकी हालत स्थिर हुई। 10 दिन तक अस्पताल में रहने के बाद वह पूरी तरह से ठीक हो गए तब उन्हे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। डॉ. अहलुवालिया ने कहा, “यह मामला उन लोगों के लिए एक चेतावनी है जो अपनी डायबीटीज को नजरअंदाज करते हैं, जिससे अनजाने में ही वह जानलेवा स्थिति में पहुंच सकते हैं। साथ ही यह मामला इस बात का भी नमूना है कि अगर आपातकालीन विभाग के डॉक्टर जानकार और चौकन्ने हों तो ऐसे मरीजों की जान बचाई जा सकती है जो गंभीर डायबिटिक होते हैं अथवा अन्य संबंधित जटिलताओं से पीड़ित होते हैं।”