नई दिल्ली: कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर में मानव तस्करों और देह व्यापार करने वाले लोगों के चंगुल से बचने वाले कमजोर वर्ग के लोग कर्ज के जाल में फंस गये और पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ तथा आंध्र प्रदेश में ऐसे 335 लोगों में से 60 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें खस्ता माली हालत से उबरने के लिए कर्ज लेना पड़ा था। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है।
मानव तस्करी विरोधी कार्यकर्ता, वकीलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा अन्य के संघ ‘तफ्तीश’ द्वारा कराये गये इस अध्ययन में इन 335 लोगों ने भाग लिया जिनमें से 201 को कर्ज लेना पड़ा था। 123 लोगों ने उच्च जोखिम वाला ऋण लिया जो उनकी देय क्षमता तथा पारिवारिक आय से काफी ज्यादा था।
अध्ययन के परिणामों के अनुसार, ”जिन प्रतिभागियों ने अध्ययन में भाग लिया उनकी औसत मासिक न्यूनतम आवश्यकता 6,300 रुपए है, वहीं 30 प्रतिशत से अधिक (या 102) परिवारों ने बताया कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान उनकी कोई आमदनी नहीं हुई।” अध्ययन में कोविड-19 की पहली और दूसरी लहरों के दौरान लिये गये ऋण का तुलनात्मक अध्ययन भी किया गया।
इस साल दूसरी लहर के दौरान जिन 335 लोगों से अध्ययन में बात की गयी, उनमें से लगभग 60 प्रतिशत ने 5,000 रुपये से लेकर 5.5 लाख रुपये तक का कर्ज अत्यधिक ब्याज दर पर लिया था। महामारी की पहली लहर के दौरान 2020 में 236 लोगों पर किए गए सर्वे के अनुसार 72 फीसदी लोगों ने कर्ज लिया था और इसकी सीमा एक हजार रुपये से लेकर 4.3लाख तक थी।
अध्ययन में कहा गया है कि इस बार का दौर अधिक मुश्किल भरा होने का कारण यह रहा कि इन लोगों को महामारी की पहली लहर की तरह नकद हस्तांतरण और राशन सहायता नहीं मिल सकी जिससे ये लोग भोजन पर अधिक खर्च करने को मजबूर हुए और इन्हें अधिक कर्ज का सहारा लेना पड़ा।