कोहिनूर का इतिहास किसी परी कथा से कम नहीं
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नयी दिल्ली। भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद कीथ वाज ने अपनी सरकार से कोहिनूर हीरे को भारत को लौटाने का आग्रह करके ब्रिटेन की महारानी के मुकुट में सुशोभित अनमोल हीरे को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है ।
इस हीरे को मध्यकाल में आंध्र प्रदेश के गुंटुर जिले में कोल्लूर खान से निकाला गया था और एक समय इसे दुनिया का सबसे बड़ा हीरा माना जाता था। मूल रूप से इस पर काकतीय राजवंश का मालिकाना हक रहा और उसने इसे एक मंदिर में देवी की आंख के तौर पर स्थापित किया था। इसके बाद यह कई आक्रमणकारियों के हाथों गुजरते हुए आखिरकार ब्रिटेन पहुंचा।
कोहिनूर की वर्तमान कीमत लगभग 15० हजार करोड़ रुपये है। 1०5 कैरेट (लगभग 21.6०० ग्राम) का यह हीरा महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के ताज का हिस्सा है। कोहिनूर को फ़ारसी में ‘कूह-ए-नूर’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है- कुदरत की विशाल आभा या रोशनी का पर्वत। भारत में अंग्रेज़ी राज के दौरान ब्रितानी प्रधानमंत्री बेंजामिन डिजराएली ने इसे महारानी विक्टोरिया को तब भेंट किया, जब सन 1877 में उन्हें भारत की भी सम्राज्ञी घोषित किया गया था। कोहिनूर का उद्गम और शुरुआती इतिहास स्पष्ट नहीं है। इसकी कहानी भी परी कथाओं से कम रोमांचक नहीं है। इसके खनन से जुड़ी दक्षिण भारत में हीरों की कई कहानियाँ रहीं हैं, परंतु कौन-सी कोहिनूर से सम्बन्धित है, यह कहना कठिन है। चौदहवीं शताब्दी से पूर्व इस हीरे का इतिहास ठीक ज्ञात नहीं है।
दिल्ली सल्तनत में ़खलिजी वंश का अंत 132० में होने के बाद ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने गद्दी संभाली। उसने अपने पुत्र उलूग ़खाँ को 1323 में काकतीय वंश के राजा प्रताप रुद्रदेव के खिलाफ युद्ध के लिए भेजा। वारंगल के युद्ध में राजा प्रताप रुद्रदेव की हार हुई और कोहिनूर उलूग खां की सेना के हाथ लग गया। यहीं से यह हीरा‘दिल्ली सल्तनत’के उत्तराधिकारियों के हाथों से गुजरकर 1526 में मुग़ल सम्राट बाबर के पास पहुंचा ।
बाबर ने अपने संस्मरण में आगरा की विजय में एक बृहत् उत्तम हीरा मिलने का उल्लेख किया है। संभवत: वह कोहिनूर ही था, क्योंकि उस हीरे का भार आठ मिस्कल (32० रत्ती) बताया गया है। तराशे जाने के पूर्व कोहिनूर का भार इतना ही था। बाबर ने अपने‘बाबरनामा’में लिखा है कि यह हीरा सन 1294 में मालवा के एक राजा का था। बाबर ने इसका मूल्य आंकते हुए कहा कि यह हीरा पूरे संसार का दो दिनों तक पेट भर सकता है।
कोहिनूर मुगलों के पास 1739 तक रहा। उसी साल ईरानी शासक नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण कर आगरा और दिल्ली में भीषण लूटपाट की। वह‘मयूर्र ंसहासन’सहित कोहिनूर भी लूटकर ले गया। इस हीरे को पाने पर ही नादिरशाह के मुंह से अचानक निकल पड़ा वाह! कोह-ए-नूर।
कोहिनूर का असली मूल्यांकन नादिरशाह की एक कथा से मिलता है। उसकी रानी ने कहा था कि ‘यदि कोई शक्तिशाली मानव, पांच पत्थरों को चारों दिशाओं और ऊपर की ओर, पूरी शक्ति सहित फेंके और उनके बीच का ़खाली स्थान यदि सुवर्ण और रत्नों मात्र से ही भरा जाए, तो उनके बराबर इसकी कीमत होगी।’