कौन है भीम आर्मी का रहनुमा
जातीय हिंसा ने जहां प्रशासन की नींद उड़ाई है, वहीं भाजपा और बसपा दोनों की चिंता भी बढ़ा दी है। सहारनपुर बसपा का गढ़ रहा है। मगर लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बसपा के दलित आधार में जबरदस्त सेंध लगायी, तो विधानसभा चुनाव में दलित और मुस्लिम दोनों ने ही बसपा का साथ नहीं दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि बसपा को सहारनपुर जिले में एक भी सीट नहीं मिली। अब दलित भाजपा से छिटका तो उसकी आगे की राह मुश्किल है। नतीजन राजनीतिक दलों ने इस इलाके को जातीय हिंसा की प्रयोगशाला बना डाला।
सहारनपुर जातीय हिंसा के बीच दलितों के नये संगठन भीम आर्मी का नाम उभर कर सामने आया है। इसका संस्थापक चंद्रशेखर है। चंद्रशेखर पिछले एक दशक से दलितों के बीच सक्रिय है। लेकिन पिछले दो साल में सोशल मीडिया पर इस संगठन के सदस्यों की जबरदस्त सक्रियता रही है। इसी माध्यम से चंद्रशेखर ने इस संगठन का फैलाव किया है। आज पश्चिम के सभी सत्रह जिलों में इसकी शाखायें है। जब दस मई को सहारनपुर में दलित कार्यकर्ताओं ने तोड़-फोड़ की, तो पुलिस उसकी तलाश में जुटी। मगर इसी बीच चंद्रशेखर ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर सैकड़ों दलितों के साथ प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में गुजरात के दलित नेता जिग्नेश ने भी भागीदारी की। इससे साफ है कि च्रद्रशेखर देश के अन्य हिस्सों के दलित नेताओं से संपर्क बनाये हुए है। बताते हैं कि वह भीम आर्मी को शिवसेना की तरह आक्रामक संगठन बनाना चाहता है। इसकी कार्य प्रणाली भी शिवसेना की तरह है। अगर कहीं दलितों का उत्पीड़न होता है तो भीम आर्मी के कार्यकर्ता फोन और सोशल मीडिया के जरिये अपने लोगों को सूचना देकर इकट्ठा कर लेते हैं। सहारनपुर के अलावा मुजफ्फरनगर और शामली में इसकी सदस्य संख्या ज्यादा है।
जातीय प्रयोगशाला बना दिया सहारनपुर को
पश्चिमी उत्तर प्रदेश को राजनैतिक दलों ने अपनी प्रयोगशाला बना दिया है। विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा मुसलमानों के खिलाफ दलितों का इस्तेमाल कर रही थी। पहले धार्मिक हिंसा से यह इलाका सुलग था, अब जातीय हिंसा से तनावग्रस्त है। अब अगर प्रशासन ने कड़ाई नहीं बरती तो सहारनपुर और मुजफ्फरनगर प्रदेश के अन्य हिस्सों में पनपने लगेंगे। इसलिए जरूरत वहां रोजगार सृजन और गांव-गांव भाईचारा कायम करने की है। सभी पार्टियां उस इलाके को अपनी प्रयोगशाला बनाने की बजाय आपसी भाईचारा की पवित्रशाला बनायें, तभी शांति कायम होगी।