क्या आप अपने बच्चों के बीच करते हैं भेदभाव ? उनके दिमाग पर पड़ सकता है ये गंभीर प्रभाव
छोटा-बड़ा, जात-पात, ऊंच-नीच जैसी कई चीजें हैं जिससे समाज में भेदभाव पहले से ही फैला हुआ है। हमारे समाज में लैंगिक भेदभाव भी गंभीर मुद्दा है जिसकी वजह से पुरुष और महिलाओं के बीच की खाई पाटना आज भी मुश्किल है। सबसे दुखद तो ये है कि इसका बुरा असर बच्चों पर पड़ रहा है। हम आज भी अपने लड़कों को यही सिखाते हैं कि, ‘लड़के रोते नहीं है वो बहादुर और मजबूत होते हैं।’ वहीं लड़कियों को सिखाया जाता है कि, ‘उनकी ताकत बुद्धि नहीं बल्कि रूप संवारने में है।’ ऐसे करना कितना सही है? कहीं आप भी तो उन मां-बाप में शामिल नहीं जो अपने बच्चों के बीच लैंगिक भेदभाव करते हैं।
क्या आप जानते हैं बच्चों पर लैंगिक भेदभाव का कितना बुरा असर पड़ता है और बड़े होकर उनकी ज्यादातर आदतें इन बातों पर भी निर्भर करती हैं। लड़कियों के लिए खूबसूरती की जो अपेक्षाएं पेश की जा रही हैं, उससे चिंता, हीनभावना, स्वाभिमान को ठेस पहुंचती है और शारीरिक छवि के मुद्दे जन्म ले रहे हैं। लड़कों को लगातार अपनी भावनाएं जाहिर न करने की सलाह दी जाती है। उन्हें दिया जाने वाला ‘मजबूत बनो’ का मंत्र बड़े जोखिम लेने से जुड़ा होता है। जिसका उनकी सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है। शराब पीने से लेकर ड्रग्स लेने, शारीरिक हिंसा से लेकर जोखिम भरी ड्राइविंग के द्वारा उन पर खुद को मर्द साबित करने का दबाव बनता जा रहा है।
कई रिपोर्टों के अनुसार भारत सहित 15 देशों में 10 से 15 साल के बच्चों पर एक अध्ययन किया गया। इसके मुताबिक जेंडर स्टीरियोटाइप 10 साल की उम्र तक गहराई से समा जाते हैं। इससे साफ है कि हमें बच्चों के शुरुआती उम्र में ही लड़का और लड़की में भेद करने वाले रवैये को छोड़ना होगा।
शोधकर्ताओं का कहना है, इससे बच्चों की सोच प्रभावित होती है कि उनके जेंडर के लिए क्या उपयुक्त है। शोधकर्ताओं की अपील है कि माता-पिता और उत्पाद निर्माता ‘जेंडर-लेबलिंग’ वाले खिलौनों से दूरी बनाएं। साथ ही लड़कों और लड़कियों के लिए रंगों का विभाजन भी खत्म किया जाए। लैंगिक रूढ़ीवादिता हमारे बच्चों के लिए अच्छी नहीं है। यह हमारे समाज के लिए भी घातक है।