क्या आप भी दिन के इन आठों पहर से अंजान है ?
सप्ताह में सात दिन होते हैं और दिन मे आठ पहर होते हैं, जिसमें से हर पहर का अपना अलग महत्व होता है। आज हम आपसे इन्ही आठ पहर के बारे में चर्चा करने वाले हैं, यहां पर हम जानेंगे कि आखिर किस प्रकार से आठ पहर मानव जीवन के लिए उपयोगी है। तो चलिए जानते हैं इन आठ पहर के बारे में…
प्रथम पहर- यह पहर संध्याकाल 6 से 9 बजे तक होता है। इसको रात का प्रथम पहर भी कहा जाता है। इस पहर को सतोगुणी पहर भी कहते हैं। इस पहर में पूजा उपासना का विशेष महत्व होता है। इस पहर में भोजन करना और सोना वर्जित है। इस पहर में जन्म लेने वालों को आमतौर पर आंखों और हड्डियों की समस्या होती है। इस समय घर में पूजा के स्थान पर घी या तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
द्वितीय पहर – यह पहर रात 9 से 12 बजे तक होता है। ये पहर तामसिक और राजसिक होता है। यानि पूरी तरह से नकारात्मक नहीं होता है। इस पहर में नई चीजें नहीं खरीदनी चाहिए। ना ही फूल-पत्ते तोड़ने चाहिए। इस पहर में जन्म लेने वालों के अंदर कलात्मक क्षमता काफी होती है। लेकिन उनकी शिक्षा में बाधा के योग बनते हैं। इस पहर में घर में बने खाने का कुछ हिस्सा किसी पशु को खिलाना चाहिए। ऐसा करने से आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है।
तृतीय पहर – यह पहर रात 12 से 3 बजे के बीच होता है। इसे मध्यरात्रि भी कहा जाता है। ये पहर शुद्ध रूप से तामसिक है लेकिन इस पहर का कुछ विशेष लाभ भी है। इस पहर में स्नान बिल्कुल ना करें और आवश्यक ना हो तो भोजन भी ना करें। इस पहर में जन्म लेने वाले अपने घर से दूर जाकर सफलता पाते हैं और इनके परिवार से संबंध अच्छे नहीं होते हैं। इस पहर में या तो विश्वास करें या ईश्वर की प्रार्थना करें, इस समय में की गई प्रार्थना जरूर पूरी होती है।
चतुर्थ पहर – यह पहर रात 3 से 6 के बीच होता है। इसको रात का अंतिम पहर भी कहते हैं। ये पहर शुद्ध रूप से सात्विक होता है, आध्यात्मिक कामों के लिए अच्छा होता है। इस पहर में खाने-पीने से बचें, अगर सोकर में उठ सकें तो अच्छा होगा। इस पहर में जन्म लेने वाले बच्चे आमतौर पर तेजस्वी और आध्यात्मिक होते हैं। इस पहर में शिवलिंग पर नियम से जल चढ़ाया जाए तो जीवन में सारी समस्याएं दूर हो जाती है।
पंचम पहर – पंचम पहर सुबह 6 से 9 बजे तक का होता है, इसको दिन का पहला पहर भी कहते हैं। ये पहर आंशिक सात्विक और आंशिक राजसिक होता है, नकरात्मक बिल्कुल नहीं होता है। इस पहर में सोना नहीं चाहिए। क्रोध नहीं करना चाहिए और घर में गंदगी बिल्कुल नहीं रखनी चाहिए। इस पहर में जन्म लेने वाले बच्चे जीवन में खूब उन्नति करते हैं लेकिन सेहत शुरू में खराब रहती है। इस पहर में घर के हर कोने में चंदन या गुलाब की सुंगध वाली अगरबत्ती जलाएं, ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
छठा पहर – इस पहर की शुरुआत सुबह 9 से दोपहर 12 बजे तक होती है। इस दिन का दूसरा पहर कहते हैं। इसमें कार्य शक्ति बढ़ जाती है, इस पहर में मांगलिक काम करने से बचना चाहिए। इसके साथ ही पेड़-पौधे नहीं लगाने चाहिए। इस पहर में जन्म लेने वाले बच्चे राजनीति या प्रशासनिक सेवा में जाते हैं, खूब नाम-यश कमाते हैं। इस पहर में अगर हनुमान जी को लाल फूल चढ़ाएं तो संपत्ति का लाभ मिलता है। कर्जे से राहत मिलती है।
सप्तम पहर – ये पहर दिन के 12 से 3 तक होता है। इसको दिन का तीसरा पहर भी कहते हैं, ये तमोगुणी पहर होता है। इसमें कार्यक्षमता कम होती है। इस पहर में भोजन करना उत्तम माना जाता है लेकिन इस दौरान सोना नहीं चाहिए। साथ ही स्नान करने से बचना चाहिए। इस पहर में जन्म लेने वाले बच्चों को शुरुआत में शिक्षा में बाधा आती है साथ ही उनका स्वभाव जिद्दी होता है। इस पहर में नए काम की शुरुआत कर सकते हैं। इस समय में भगवान कृष्ण की पूजा से संतान उत्पत्ति की समस्या दूर हो सकती है।
अष्टम पहर – ये पहर दोपहर 3 से शाम 6 बजे तक होता है। ये दिन का चौथा पहर होता है। ये पहर सात्विक है, पर इसमें तमोगुण की प्रधानता होती है। इस पहर में विश्राम कर सकते हैं लेकिन भोजन नहीं करना चाहिए। इस पहर के दौरान नए कार्य शुरू करना अशुभ माना जाता है। इस समय में जन्म लेने वाले बच्चे फिल्म, मीडिया और गलैमर के क्षेत्र में नाम-यश कमाते हैं, प्रेम विवाह की संभावना ज्यादा होती है।