क्या पार्टियों के घोषणा पत्र झूठ का पुलिंदा होते हैं?
फिरोज बख्त अहमद : अभी हाल ही में एक व्हाट्सएप संदेश में विश्व हिंदू परिषद के धुरंधर नेता डा. प्रवीण तोगड़िया ने बड़े ही भद्दे अंदाज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कुछ इस प्रकार टिप्पणियां कीं कि जो किसी भी प्रकार से अभद्र और असंवेदनशील मानी जाएंगीं। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी का प्रार्थना पत्र झूट का पुलिंदा है, नरेंद्र भाई मोदी, वायदा खिलाफी के मुगल-ए-आजम हैं, राम मंदिर की स्थापना नहीं करी, तीन तलाक को कानून नहीं बनाया जीएसटी द्वारा व्यापारियों के धंधे को बट्टा लगाया, रोजगार के मामले में टांय-टांय फिस्स, किसानों से भी वायदा खिलाफी आदि। यह अवश्य है कि, बावजूद कोशिश के, कुछ वायदे पूरे नहीं हो पाए, मगर उसके लिए प्रधानमंत्री को कटघरे में खड़ा कर देना कहां का इंसाफ! हां, तोगड़िया ने सबसे बड़ा आरोप मोदी पर यह लगाया है कि पूर्ण बहुमत होते हुए भी उन्होंने दफा 370 और 35 ए नहीं हटाया। यह खेद का विशय है कि संघ परिवार के चहीते माने जाने वाले डा. प्रवीण तोगड़िया, इस समय, बजाय इसके कि प्रधानंमंत्री मोदी के हाथ मजबूत करें, उनके ऊपर भोंडे आरोप लगा रहे हैं। उनको इस बात का अंदाजा है ही नहीं कि एक प्रधानमंत्री की कितनी सारी जिम्मेदारियां होती हैं। वैसे भी तोगड़ियाजी का पुराना ट्रैक रिकाॅर्ड है कि उनके मुंह में जो आता है बक देते हैं और यह नहीं देखते कि आगे चलकर उसका प्रभाव क्या होगा। 1998 में जब लेखक ने दिल्ली में स्थित संकट मोचन मंदिर में उनका साक्षात्कार किया था तो तब भी उन्होंने कई बातें ऐसे कही थी कि जो असंवैधानिक थीं। लेखक को याद है कि उस समय किसी विवादास्पद विशय पर प्रष्न किया गया तो उन्होंने ‘‘जेएनयू’’ को ‘‘जेएनयू मदरसा’’ की उपाधि दी थी। लेखक को इस बात पर घोर आपत्ति थी क्योंकि मदरसा और जेएनयू में कहीं से कहीं तक तुलना का कोई विशय ही नहीं बनता। ठीक है जेएनयू को वह एक विवादास्पद षिक्षा स्थली समझते हैं, मगर इसका अर्थ यह नहीं है कि वे उस मदरसों से जोड़ दें। जहां तक, मोदी द्वारा किए गए वायदों को संबंध है, ठीक है उनमें से सारे, पूरो नहीं हुए, मगर भारत के 70 वर्षीय इतिहास में, कौन सी ऐसी पार्टी है कि जिसने अपने सभी या अधिकतर वायदे पूरे किए हों। यहां लेखक का तात्पर्य एक कमी को दूसरे बड़ी कमी से तुलना कर, उसको ठीक ठहराना नहीं है बल्कि पाठकों को यह बताना है कि बचपन से, अपनी पुरानी दिल्ली के चांदनी चैक संसदीय क्षेत्र में भी वह बचपन से यही देखता चला आया है कि सभी पार्टियों के घोशणा पत्र झूठ के पुलिंदे होते हैं। उदाहरण के तौर पर लेखक को याद है जब उनके बचपन में 1967 में, कांग्रेस घोषणा पत्र जारी हुआ था तो उसमें अनेकों वायदों के अलावा, ‘‘गरीबी हटाओ’’ और उर्दू को उसका अधिकार देने की बातें कहीं गई थीं। यह वह समय था कि जब कांग्रेस का चुनाव चिन्ह, ‘‘दो बैलों की जोड़ी’’ हुआ करता था। लेखक ने इस क्षेत्र में सरला जोषी, बलराज मधोक, राम गोपाल षालवाले, सिकंदर बख्त, भीखू राम जैन, जय प्रकाष अग्रवाल, विजय गोयल, और डा. हर्षवर्धन को बतौर सांसद देखा है मगर सिवाए चंद वायदे पूरे करने के किसी भी सांसद ने पूर्ण रूप से अपने वायदे नहीं निभाए क्योंकि स्कीमों को कार्यान्वित करने के लिए, बड़ा लम्बा समय दरकार है। कांग्रेस जीत गई और उसने गरीबी हटाने के बजाए, गरीबों को हटाना षुरू कर दिया।
रही बात उर्दू भाशा के उत्थान के, तो उर्दू को जितनी हानि कांग्रेस के दौर में हुई है और जिस प्रकार से इस भाशा के सांप्रदायिक व्यवहार कर इसे सार्वजनिक स्कूलों से दूर किया गया, उर्दू माध्यम स्कूलों का सफाया किया गया, आज हम देखते हैं कि उर्दू का कोई स्थान नहीं है। इसके बाद भी कांग्रेस ने बहुत से वायदे किए और वफा न हुए इस चक्कर में कुछ लोग कांग्रेस से कट गए और पार्टी का चिन्ह भी ‘‘दो बैलों की जोड़ी’’ से ‘‘गाय-बछड़ा’’ हो गया। प्रवीण तोगड़िया ही नहीं इस प्रकार के आरोप, और भी कई लोगों द्वारा, प्रधानमंत्री मोदी पर लगाए गए हैं। पाठक इस बात को समझ लें कि जो लोग स्वयं कुछ करते नहीं, आगे नहीं बढ़ते हैं दूसरों को भी आगे नहीं बढ़ने देना चाहते हैं और स्वयं झूठ के पुलिंदे से चिपटे रहते हैं, दूसरों को नीचा दिखाना अपने जीवन का ध्येय समझते हैं। यह ठीक है कि मोदी ने राम मंदिर निर्माण का प्रण लिया था और कहा था कि संविधान द्वारा, इसे बनाएंगे, अपने वायदे पर, आज भी वे कायम हैं और अब जबकि उच्चतम न्यायालय ने कह दिया है सभी की रजामंदी से राम मंदिर का निर्माण हो अब वास्तव में उन्हें संवैधानिक हरी झण्डी मिली है अपने 5 साला दौर में, मोदी ने कोई भी कार्य ऐसा नहीं किया जो असंवैधानिक हो। रही बात अदालत के आदेष पर आगे बढ़ने की, तो यहां अवष्य कुछ चूक मोदी से हुई है कि जब लगभग 2.5 वर्श पूर्व न्यायधीश के केहर सिंह ने आदेश दिया था कि समाज के विभिन्न तबकों द्वारा, आपसी सद्भावना से राम मंदिर का निर्माण करा लिया जाए तो यहां मोदी सरकार को थोड़ा प्रोएक्टिव होकर तुरंत ही मंदिर बनाने के लिए सभी गुटों को अपने साथ लेना चाहिए था और कोर्ट के आदेष एवं सरकारी मदद से न केवल एक अतिभव्य राम मंदिर का निर्माण कराना चाहिए था बल्कि 1992 में शहीद की गई बाबरी मस्जिद को भी बना देना चाहिए था। यदि ऐसा हो जाता तो विष्व में न केवल भारत की छवि एक अत्यंत षांति प्रिय देष की होती बल्कि, कोई अज नहीं कि उन्हें विष्व षांति का नोबेल पुरस्कार भी प्रदान किया जाता। षायद मोदी को राय, मष्वरा देने वाले लोगों ने, सही राय नहीं दी।
जहां तक बात अध्यादेश लाकर तीन तलाक की समस्या का निपटारा करना था, यह तो बाद में भी हो सकता है। हां, जब हम दफा 370 और 35 ए की बात करते हैं, तो अवष्य ही इस सरकार को, अध्यादेश लाकर इन दोनों प्रावधानों को टिाने का यत्न करना चाहिए था मगर इसके लिए अच्छा-खासा समय दरकार है। तोगड़ियाजी तो अपनी झोंक में सब कुछ कह गए, मगर उनसे पूछा जाए कि अगर मोदी के स्थान प रवह प्रधानमंत्री होते तो क्या मुंह से निकालते ही कार्य कर डालते? तोगड़िया जैसे लोगों को संवैधानिक रूप से राश्ट्र को चलाने का कोई अनुभव नहीं है और भारत जैसा विश्व का चौथा विशालकाय देश, इतनी आसानी से निर्देशित नहीं किया जा सकता। मोदी के बारे में नोटबंदी, बेरोजगारी और जीएसटी को लेकर बहुत कुछ कहा जा रहा है। ठीक है, नोटबंदी और जीएसटी से लोगों को और विशेष रूप से और व्यपारियों को कहीं न कहीं कष्ट झेलना पड़ा है और एहसास भी इस सरकार को है, मगर यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि मोदी ने नोटबंदी और जीएसटी के बारे में जो विजन देखा था उससे कोई इंकार नहीं कर सकता। लेखक ने मोदी से कहा था कि नोटबंदी में जितने लोगों के प्राण गए हैं, उन्हें एक-एक करोड या 50-50 लाख का हर्जाना दे देते तो इससे उनकी सरकार को लेकर एक अच्छा संदेष समाज में चला जाता। भले ही चाहे इससे कुछ छोटी रकम प्रति व्यक्ति अदा कर देते, मगर ऐसा हो जाता तो षायद आज इस प्रकार की बयानबाजी सुनने को नहीं मिलती। मात्र 4-5 वर्शन, रोजगार देना इतना आसा नहीं हैं, मगर यह अवष्य है कि अगर मोदी को एक अवसर तो इसकी भी भरपाई हो सकती है। जब कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों को 55-60 वर्ष, जनता ने दिए हैं तो उसका कर्तव्य यह है कि मोदी को भी कम से कम एक अवसर 2019 में और दें।
(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार एवं मौलाना आज़ाद के पौत्र हैं)
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