क्या प्रियंका चोपड़ा की कोशिशों से बदलेगी रोहिंग्या की किस्मत?
प्रियंका चोपड़ा उन कलाकारों में से हैं जो दर्शकों का मनोरंजन करने के अलावा सामाजिक और राजनैतिक मामलों पर अपनी राय खुलकर रखती हैं.
प्रियंका चोपड़ा यूनिसेफ की ग्लोबल गुडविल एंबेसडर हैं. प्रियंका कई मौकों पर जरूरतमंदों का दुख-दर्द बांटते देखी गई हैं. हाल ही में उन्होंने बांग्लादेश में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों के कुछ कैम्प का दौरा किया था.
प्रियंका ने बांग्लादेश के कोक्स बाजार का दौरा किया. दुनिया के सबसे ज्यादा रोहिंग्या रिफ्यूजी कैम्प इसी जगह हैं. कैम्प में प्रियंका कई रोहिंग्या बच्चों से मिलीं और सोशल मीडिया पर तस्वीर भी साझा की.
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रोहिंग्या समुदाय दुनिया के सबसे ज्यादा सताए गए समुदायों में से है. ये लोग भारत और बांग्लादेश के कई इलाकों में कैम्प बनाकर रह रहे हैं. अपना मुल्क छोड़कर आए इन लोगों की स्थिति बहुत दयनीय है.
प्रियंका ने रोहिंग्या बच्चों की हालत सोशल मीडिया पर लिखी. उन्होंने लिखा कि, इतना समय बीत जाने के बाद भी रोहिंग्या कैम्प में रह रहे बच्चों की हालत बहुत खराब है. इन बच्चों को तो ये भी नहीं पता होगा कि अगली बार इन्हें खाना कब मिलेगा. इनकी सुरक्षा, इनका भविष्य बिल्कुल अंधकार में दिख रहा है.
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प्रियंका ने एक बच्चे मंसूर अली के बारे में लिखा, ‘मंसूर जब पहले बलुखली कैम्प में आया था तो सिर्फ खून-खराबे और हिंसा की तस्वीरें बनाता था. जैसे एक तस्वीर उसने बनाई थी जिसमें वह अपने दोस्तों के साथ फुटबॉल खेल रहा होता है और ऊपर हेलीकॉप्टर से उनपर फायर किया जा रहा था. एक तस्वीर में उसने अपने घर को आग में जलते हुए दिखाया था. हालांकि अब वह काफी अच्छी तस्वीरें बनाता है.’
क्वांटिको स्टार प्रियंका आखिर में लिखती हैं कि, ‘बच्चे चाहे जहां के हो या जिसके भी हों, वे एक बेहतर भविष्य के हकदार हैं.’
रोहिंग्याओं पर हुए जुल्म को लेकर दुनिया भर से आवाजें उठी थीं, लेकिन आज तक इस मामले का कोई स्थायी हल नहीं निकल सका. कई रोहिंग्या शरणार्थी अपने करीबियों को खो चुके हैं और कैंपों में रह रहे हैं.
आपको बता दें कि म्यांमार में रहने वाले 2015 में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ वहां की सेना ने आक्रामक अभियान छेड़ दिया था. इसके बाद लाखों की संख्या में ये शरणार्थी बांग्लादेश आने लगे. इन हालात से घबराकर बांग्लादेश ने म्यांमार पर अपने देश को अस्थिर करने का आरोप लगाया था. भारत भी इन शरणार्थी कैंपों में राहत सामग्री देता है, लेकिन इस समस्या का कोई हल सामने नहीं आ सका है.