विधानसभा चुनाव-2017
देहरादून(ईएमएस)। तो क्या उत्तराखंड में एक बार फिर खंडित जनादेश मिलने जा रहा है। त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में एक बार फिर कांग्रेस के सामने सरकार बनाने का प्रबल मौका होगा। कुछ ज्योतिषियों ने तो यह भविष्यवाणी तक कर दी है कि उत्तराखंड में फिर से कांग्रेसनीत सरकार गठित होने जा रही है, जिसके मुखिया दोबारा से हरीश रावत होंगे। देश के शीर्ष ज्योतिषाचार्यों से लेकर स्थानीय ज्योतिषियों का साफ कहना है कि सूबे में फिर हरीश रावत के नेतृत्व में सरकार बनने जा रही है। अब यह देखने वाली बात होगी कि ज्योतिषियों के अनुमान कितने सटीक होते हैं।
वैसे मतदान के दौरान जो रूख वोटरों का देखने को मिला, उससे भी यह अनुमान लगाना कठिन हो गया था कि आखिर कौन सी पार्टी या प्रत्याशी के पक्ष में हवा चल रही है। राष्ट्रीय पार्टियों द्वारा जरूर इस बात को फैलाने की चेष्टा की जा रही थी कि उनकी पार्टी के पक्ष में लहर है, जो 11 मार्च 2017 को ईवीएम द्वारा उगले जाने वाले परिणामों के बाद ही अफवाह या सत्य साबित होने वाली है। वैसे भी सियासी दलों का तो काम ही अपनी मूंछे उपर रखकर दूसरे दलों को नीचा दिखाना है। तभी तो जनता के बीच उनके दल या नेता चर्चा में बने रहेंगे। इस कैटेगरी से हटकर निर्दलीय जरूर लाभ की स्थिति में रहते हैं कि जीतने पर या तो वे ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ में अपनी कीमत भी वसूल लेते हैं और सत्ता पक्ष के करीब आने का मौका मिल जाता है। या वे अपनी हार-जीत पूरी तरह उपरवाले के हवाले कर देतें है। इसके विपरीत पार्टियों के अधिकृत प्रत्याशियों के सामने जीत का दबाव परिणाम आने तक बना रहता है। इसलिए वे ज्योतिषियों, मंदिरों, मस्जिदों व मठ आदि के फेर में अधिक देखे जा सकते हैं।
ऐसे में कोई माना हुआ ज्योतिष या भविष्यवक्ता उनके पक्ष में सकारात्मक भविष्यवाणी कर दे तो उनके सियासी कैरियर के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं होती। इस बार भी वही स्थिति है, जहां पार्टियों के प्रत्याशी मंदिर, मस्जिद व ज्योतिष के फेर में शीश नवाते घूम रहे हैं, वहीं आज महाशिवरात्रि का पर्व भी उनके लिए विशेष महत्व का हो गया है। आज देवभूमि के तमाम शिवालयों में विधानसभा चुनाव में सफलता की कामना लिए पार्टियों व निर्दलियों ने भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना की। स्थानीय टपकेश्वर महादेव मंदिर के वीआईपी प्रवेशद्वार पर भी सुबह से ही नेताओं का आना जाना लगा रहा।
अगर कोई नेता विधानसभा चुनाव जीतने में सफल रहा तो उसकी पांच साल की नौकरी पक्की समझो अन्यथा उसे फिर से पांच साल तक इंतजार ही करना पड़ेगा। जीत के लिए भगवान का आशीर्वाद जरूरी है। लेकिन तमाम बुद्धिजीवी और चुनावी पर्यवेक्षक आज तक यह नहीं समझ पाए हैं कि जनसेवा का क्रत लेकर राजनीति में उतरे लोगों के लिए तो निर्धन नरनारायण की सेवा ही सबसे बड़ा आशीर्वाद है, फिर विशेष पूजा-क्रत की क्या आवश्यकता। ईश्वर में आस्था रखना गलत नहीं है, लेकिन स्वार्थप्रेरित पूजा अर्चन को क्या कहा जाएगा। जिसका चलन निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। आगामी माह मार्च में तो स्पष्ट हो जाएगा कि कौन से दल की अगुवाई में सरकार गठित होने जा रही है। जहां कांग्रेस को भरोसा है कि उसकी पार्टी से टूटकर भाजपा में शामिल विधायक व नेता ही भाजपा के लिए महंगे साबित होंगे तो भाजपा को भी केंद्र में बैठी मोदी सरकार के विकासात्मक कार्यों के सहारे अपनी नैया पार लगती दिख रही है।