राज्य

खजाने की मार, तंगहाली में सरकार

अभी तक दबे-छिपे ही राज्य पर मंडरा रहे वित्तीय संकट की किस्सागोई हवा में तैरती थीं, मगर रिजर्व बैंक की एक हिदायत ने वित्तीय संकट की गंभीरता को जगजाहिर कर दिया है। डेढ़ लाख करोड़ से ज्यादा के कर्ज में डूबी राज्य सरकार को भारतीय रिजर्व बैंक ने झटका दिया है। शीर्ष बैंक ने साफ कह दिया, अब और कर्ज चाहिए तो पहले अपनी माली हालत सुधारो और आमदनी बढ़ाओ। इस फरमान से सरकार सकते में है।

Captureसुबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान नवम्बर में लगातार दस साल मुख्यमंत्री रहने केदिग्विजय सिंह के रिकॉर्ड को तोड़ कर नया कीर्तिमान बनाने की तैयारी कर रहे हैं। भाजपा और खुद शिवराज इस उपलब्धि का जश्न बड़े पैमाने पर मनाने को उत्सुक हैं, मगर प्रदेश सरकार की लगातार बिगड़ती माली हालत’ रंग में भंग’ डाल रही है। अभी तक दबे-छिपे ही राज्य पर मंडरा रहे वित्तीय संकट की किस्सागोई हवा में तैरती थीं, मगर रिजर्व बैंक की एक हिदायत ने वित्तीय संकट की गंभीरता को जगजाहिर कर दिया है। डेढ़ लाख करोड़ से ज्यादा के कर्ज में डूबी राज्य सरकार को भारतीय रिजर्व बैंक ने झटका दिया है। शीर्ष बैंक ने साफ कह दिया, अब और कर्ज चाहिए तो पहले अपनी माली हालत सुधारो और आमदनी बढ़ाओ। इस फरमान से सरकार सकते में है। चालू वित्तीय वर्ष की पहली छह माही में अब तक सरकार छह हजार करोड़ का कर्ज ले चुकी है, जबकि अधिकतम सीमा 12 हजार करोड़ रुपये है। सितम्बर में तो पन्द्रह दिन के अंतराल के बाद दूसरी बार एक हजार करोड़ रुपये का कर्ज लेने की नौबत आ गई थी। आरबीआई ने माली हालत बिगड़ने के कारण गिनाने के साथ ही चेताया है कि समय रहते आय नहीं बढ़ाई, तो आने वाला वक्त मुश्किल होगा।
बहरहाल, शाहखर्ची के चलते उपजी आर्थिक तंगी के कारण सूबे की विकास योजनाओं पर बीते एक साल से ब्रेक सा लगा है। ’बीमारू राज्य’ का कलंक धो कर विकसित राज्य की सूची में ला खड़ा करने का ख्वाब टूटता दिखाई दे रहा है। पिछले साल भी नवम्बर आते-आते सूबे पर आर्थिक संकट के बादल मंडराने लगे थे। इस बार स्थिति उससे ज्यादा चिंताजनक है। हालात इतने बुरे हैं कि लोक कल्याणकारी योजनाओं तक के लिए पैसा नहीं निकल पा रहा है। समय-समय पर विभिन्न विभागों को धनराशि की निकासी पर प्रतिबंध आयद करना आम बात हो गई है। वैसे, भाजपा की सरकार के कार्यकाल में यह दूसरा मौका है जब रोजमर्रा के खर्च निकालने में भी सरकार को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। करीब दस साल तक बेहतरीन वित्तीय प्रबंधन के लिए ख्याति अर्जित करने वाले प्रदेश में ’आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपैया’ के दौर की, आमदनीकुछ ऐसी हुई है कि सरकारी खजाना खाली हो चला है। आर्थिक मोर्चे पर पूर्व वित्त मंत्री राघवजी भाई की सख्ती और कुशल प्रबंधन ने लगातर दस सालों तक ओवर ड्राफ्ट्र की नौबत नहीं आने दी।
“ठन-ठन गोपाल” हो चुकी सरकार कर्ज के मकड़जाल में बुरी तरह उलझ चुकी है। सूबे में समस्याओं का अम्बार लगा है और मुखिया निवेश जुटाने के बहाने से आये दिन आबोहवा बदलने के लिए कभी पश्चिम, तो कभी पूरब के देशों की शाही यात्राओं में व्यस्त हैं। पीला सोना कहलाने वाली सोयाबीन इस बार फ़िर किसानों को बुरी तरह धोखा दे गई। किंवटलों उपज देने वाला रकबा बोया हुआ लौटाने को भी राजी नहीं है। पूरे प्रदेश, खासकर मालवा, निमाड़, बुंदेलखंड, बघेलखंड के कर्ज के बोझ तले दबे किसान सरकारी बेरुखी से निराश होकर मौत को गले लगा रहे हैं। लगातार तीन बार कृषि कर्मण पुरस्कार पाने वाले प्रदेश में इस मर्तबा खेती की हालत बेहद खराब है। हालांकि मौके की नज़ाकत को समझते हुए कई जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर संभावित संकट से निपटने की रणनीति बनाने की कवायद शुरू कर दी गई है। सूबे के 51 में से सात जिलों में सामान्य से अधिक बारिश हुई, जबकि 21 जिलों में सामान्य और 23 में सामान्य से कम बरसात ने खेती के साथ ही पेयजल और बिजली संकट गहराने के संकेत दे दिए हैं। जाहिर बात है कि आने वाले वक्त में इन मदों में ज्यादा खर्च करना होगा।
मुख्यमंत्री की लगातार कोशिशों के बावजूद केन्द्र से मिलने वाली आर्थिक मदद नाकाफ़ी साबित हो रही है। ऐसे में प्रदेश सरकार कर्ज उतारने के लिए कर्ज ले रही है। साल 2015-16 का बजट पेश होने के बाद बड़े पैमाने पर कर्ज लेने पर सवाल उठे, तो राज्य सरकार की साख का हवाला देते हुए तर्क दिया गया कि कर्ज भी उन्हीं को मिलता है, जो चुकाने की ताकत रखते हों। बेहतरीन वित्तीय प्रबंधन की साख के बूते भले ही विभिन्न एजेंसियां और खुले बाजार से आसानी से कर्ज मिल रहा हो, मगर आज हालात बदल गए हैं। प्राकृतिक आपदाओं और बारिश की अनिश्चितता ने कृषि की विकास दर पर ब्रेक लगा दिया है। इसी तरह तमाम कोशिशों के बावजूद प्रदेश में निवेश का अपेक्षित माहौल नहीं बन पा रहा है।
विधानसभा और फ़िर लोकसभा चुनावों में मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए इस्तेमाल किया गया तर्क अब तक खोखला ही साबित हुआ है। उम्मीद की जा रही थी कि केन्द्र और राज्य में एक ही दल की सरकार होने से सामंजस्य से काम होगा और प्रदेश की तरक्की में इसका भरपूर लाभ मिल सकेगा, लेकिन यूपीए के शासनकाल में मनमाफ़िक और भरपूर आर्थिक मदद पाने वाले राज्य को अब मोदी सरकार के कड़े वित्तीय अनुशासन में बंधकर काम करना पड़ रहा है। इस पर तुर्रा ये कि केन्द्र पाई-पाई का हिसाब मांग रहा है। प्रदेश के कोटे से कई केंद्रीय मंत्री भी इस मोर्चे पर कोई मदद नहीं कर पा रहे हैं। केन्द्रीय मदद का पैसा नहीं मिलने की वजह से राज्य सरकार का आर्थिक संकट गहराता जा रहा है। कुल मिला कर चुनावों के पहले जिन राजनीतिक परिस्थितियों को प्रदेश के लिए अनुकूल बताया जा रहा था, आज वही अनुकूलता संदिग्ध दिखाई दे रही है। पिछले वित्तीय वर्ष में रुटीन के कामकाज जारी रखने के लिए राज्य शासन को अनुपूरक बजट का सहारा लेना पड़ा। अनुपूरक बजट आमतौर पर आपदा या विकास से जुड़े विशेष मामलों के लिए धन जुटाने का एक तरीका है, लेकिन रुटीन कार्यों के लिए जब इस बजट को सहारा बनाया जाए तो यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि प्रदेश आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा है। भारी भरकम कर्ज के बोझ तले दबी सरकार की इस स्थिति पर राज्य मंत्रिमंडल के सदस्य और विपक्ष एक सुर में प्रदेश की स्थिति पर श्वेत पत्र लाने की मांग उठा चुके हैं।
सरकार की सोच है कि प्रदेश की साख बढ़ी है और प्रदेश अब कर्ज पाने के मामले में ए ग्रेड की श्रेणी में आ गया है। इसके तहत प्रदेश की क्षमता और अधिक कर्ज ले पाने की है। इसी कर्ज के सहारे प्रदेश की माली हालत को दुरुस्त कर लिया जाएगा। सरकार की इसी सोच ने प्रदेश को डेढ़ लाख करोड़ रुपये से अधिक के कर्ज में डुबो दिया है। 12 साल में कर्ज का यह सबसे बड़ा आंकड़ा है। पिछले साल अप्रैल से नवम्बर तक सरकार ने दस साल के लिए अपनी सिक्योरिटी गिरवी रख कर बाजार से 6,500 करोड़ का कर्ज उठाया, जबकि साल 2013 में सितम्बर तक सरकार ने केवल 1500 करोड़ का कर्ज बाजार से लिया था। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि खर्चों में बेतहाशा बढ़ोतरी के चलते प्रदेश सरकार की माली हालात डगमगाने लगी है। कांग्रेस का आरोप है कि शिवराज सरकार ‘कर्ज लो और घी पियो’ की नीति पर चलती रही है। उनके कार्यकाल के हर वर्ष में कर्ज के आंकड़े में भारी इजाफा हुआ है। यह कर्ज ऊंची ब्याज दर पर बाजार से लिया गया है।
इधर रोजमर्रा के कामकाज के लिए भी धन का टोटा है, तो उधर सरकारी कर्मचारी सातवें वेतनमान की आस लगाए बैठे हैं। इस पर मंत्रालय की संधों से छन-छन कर आती खबरों ने सरकारी मुलाजिमों की बेचैनी बढ़ा दी है। दरअसल राज्य सरकार ने 1 लाख 50 हजार करोड़ का कर्ज ले रखा है। ऐसे में प्रदेश के साढ़े चार लाख से ज्यादा अधिकारियों और कर्मचारियों को सातवां वेतनमान जस का तस मिलने के आसार कम हैं। तंगहाली का आलम यह है कि दो महीने पहले तनख्वाह बांटने के लिए शासन ने 4,500 करोड़ का कर्ज लिया था, जिस पर आरबीआई ने आपत्ति ली थी। केंद्र सरकार एक जनवरी से सातवां वेतनमान देने की तैयारी कर चुकी है। अनुमान के मुताबिक सातवें वेतनमान में 40 फीसदी का इजाफा हो सकता है।
लगातार चार वर्षों से फसलों की बर्बादी झेल रहे किसानों के सब्र का बांध अब टूटने लगा है। इस बार भी खरीफ सीजन के दौरान खेतों में बोई गई सोयाबीन और उड़द की हजारों हेक्टेयर फसल अल्प वर्षा और प्राकृतिक प्रकोप के चलते बर्बाद हो गई। खरीफ फसल की बर्बादी के बाद सरकारी मदद नहीं मिलने से नाराज किसानों का आक्रोश संगठित होने जा रहा है। अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए किसानों ने किसान मंच नाम से नया संगठन भी तैयार कर लिया है। अब इस संगठन ने पीड़ित किसानों को विशेष पैकेज के तहत 10 हजार रुपये प्रति बीघा मुआवजा देने की मांग उठाई है। किसानों की इस मांग से प्रशासन सकते में है। प्रशासन की दिक्कत ये है कि भू-राजस्व संहिता के तहत अनियमित वर्षा से बर्बाद हुई खरीफ फसल में राहत बांटने का प्रावधान ही नहीं है। जिसके चलते सरकार और प्रशासन पीड़ित किसानों को फसल बीमा योजना के तहत मदद दिलाने की बात कह रहे हैं, लेकिन किसान विशेष पैकेज और फसल बीमा का लाभ दोनों की मांग कर रहे हैं। प्राकृतिक आपदा, किसानों और सरकारी मुलाजिमों की मा्रंगें, खस्ताहाल सड़कें, विकास योजनाएं और जन कल्याणकारी कार्यक्रम जारी रखने की चुनौती दिनोंदिन कड़ी होती जा रही है। तदर्थवाद के बजाय दूरगामी और ठोस नीति बनाये बिना प्रदेश के आर्थिक संकट पर काबू पाना मुश्किल लगता है। बड़े-बड़े दावों और चुनावी घोषणाओं से जागी जन आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। वरना खाली खजाने के साथ प्रदेश की जनता के अच्छे दिन आना तो दूर की बात है, शिवराज सिंह का निष्कंटक नेतृत्व का तिलिस्म भी कितने दिन बरकरार रह सकेगा, देखने वाली बात होगी।=

“ठन-ठन गोपाल” हो चुकी सरकार कर्ज के मकड़जाल में बुरी तरह उलझ चुकी है। सूबे में समस्याओं का अम्बार लगा है और मुखिया निवेश जुटाने के बहाने से आये दिन आबोहवा बदलने के लिए कभी पश्चिम, तो कभी पूरब के देशों की शाही यात्राओं में व्यस्त हैं।

करों का बोझ डाल रही सरकार

अपने खर्चों में कटौती के बजाय आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार को आम जनता पर करों का बोझ डालना सबसे आसान रास्ता लगता है। लिहाजा पंचायत से लेकर प्रदेश स्तर तक के तमाम छोटे-बड़े नेताओं की शाहखर्ची के लिए आम लोगों की जेब काटी जा रही है। दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में प्रदेश पर 27 हजार करोड़ का कर्ज था। यह वही भाजपा है, जिसने दिग्विजय सिंह को ’मिस्टर बंटाधार’ के खिताब से नवाज कर सत्ता से बेदखल किया था। गंभीर वित्तीय संकट व कर्ज से उबरने के पुख्ता उपाय खोजने की बजाय आम आदमी पर करों का बोझ बढ़ाने का रास्ता तलाशा जा रहा है। भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की पिछली रिपोर्ट कहती है कि आबकारी, खनिज, वाणिज्यिक कर और सरकारी अधिकारी, कर्मचारियों द्वारा लिए गए अग्रिम की वसूली आदि मदों में सरकार की करीब दस हजार करोड़ रुपये से अधिक की लेनदारी बकाया है। जाहिर है, लंबित राजस्व वसूली का यह आंकड़ा दिनों दिन बढ़ रहा है, लेकिन वसूली पर जोर देने की बजाय सरकार की निगाहें आम आदमी, बाजार के कर्ज और केन्द्रीय सहायता पर हैं। बीते साल राज्य शासन ने स्टाम्प शुल्क अधिनियम में गुपचुप तरीके से संशोधित अध्यादेश लाकर स्टाम्प शुल्क बढ़ा दिया। एक हजार के स्टाम्प पर पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी बंद कर दी गई। साथ ही लीज नियमों में भी फेरबदल कर दिया गया। शपथ पत्रों के लिए भी शुल्क बढ़ा कर दोगुना कर दिया गया। यही नहीं एक अन्य प्रावधान के तहत फसल या अपनी कोई पुरानी चीज बेचने पर भी टैक्स वसूलने का बिंदु शामिल कर दिया गया। इस अध्यादेश के लागू होने से प्रदेश के किसान भी इसकी लपेटे में आ गए। यही नहीं, पेट्रोलियम उत्पादों के दाम में आई कमी पर सरकार को इन उत्पादों पर वैट व अन्य कर बढ़ा दिया गया। जबकि मप्र एक मात्र ऐसा राज्य है, जो पहले ही इन उत्पादों पर सर्वाधिक टैक्स वसूल रहा है। देश में सबसे अधिक वैट टैक्स होने के बावजूद सरकार के पास योजनाओं के लिए पैसा नहीं है। रसोई गैस, डीजल, पेट्रोल भी पूरे देश में सबसे ज्यादा महंगा मध्यप्रदेश में ही है। अनुसूची 33 में छिपे कर तो पुरानी बात है। इसके चलते प्रदेश में दैनिक उपयोग की वस्तुएं अन्य राज्यों की तुलना में महंगी बिक रही हैं।

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