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नई दिल्ली। अगले वित्तीय वर्ष से रेलवे के लिए कोई अलग बजट पेश नहीं होगा। केंद्र सरकार ने वर्ष1924 से चली आ रही 92 साल पुरानी परंपरा को खत्म करने के फैसला किया है। केंद्र सरकार अगले वित्त वर्ष से रेल बजट को अलग से नहीं बल्कि आम बजट के साथ ही पेश करेगी।
ये भी कह सकते हैं कि यह अब आम बजट का ही हिस्सा होगा। टीओआई की खबर के अनुसार, वित्त मंत्रालय ने फैसले को अंजाम देने के लिए पांच सदस्यों की एक टीम बनाई है, जो दोनों बजटों के विलय के कदमों पर कार्य करेगी।
सरकार का यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि हालिया वर्षों के दौरान, खासकर 1996 के बाद बनी गठबंधन सरकारों ने रेल बजट का प्रयोग अपने राजनैतिक फायदे के लिए किया था। रेल मंत्रालय अक्सर क्षेत्रीय राजनेताओं के अधीन रहा है, इसलिए रेल बजट में रेल मंत्री अपने गृहराज्य या क्षेत्र को ज्यादा तवज्जो देते रहे हैं।
अपनी सादगी के लिए मशहूर सुरेश प्रभु की तत्परता से रेल बजट की परंपरा अब विराम लगेगा। अंग्रेजों के समय से चली आ रही रेल बजट की इस परंपरा पर विराम लगाने की चर्चा तब शुरू हुई थी, जब नीति आयोग के सदस्य बिवेक देबरॉय और किशोर देसाई ने इसे खत्म करने की सलाह दी थी।
सुरेश प्रभु ने भी मंगलवार को राज्य सभा में कहा था कि उन्होंने वित्त मंत्रालय और वित्त मंत्री अरुण जेटली से रेल बजट को खत्म करने को कहा है। प्रभु ने कहा था कि इससे आने वाले वक्त में देश को आर्थिक फायदा होगा।
अब वित्त मंत्रालय ही रेलवे को उसी प्रकार पैसे जारी करेगा जिस प्रकार अन्य मंत्रालयों को पैसा जारी किया जाता है। रेलवे द्वारा किए जा रहे खर्चे और कमाई पर भी वित्त मंत्रालय की नजर रहेगी।