जलवायु परिवर्तन आज पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर समस्या बन चुकी है। मंगलवार को जारी रिपोर्ट से जलवायु परिवर्तन पर सख्त कदम उठाने की आवश्यकता का पता चलता है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि खराब मौसम से होने वाली घटनाओं ने बीते 20 सालों में दुनिया के 5.2 लाख लोगों की जान ले ली है। म्यांमार के बाद इन देशों में सबसे ऊपर भारत का नाम है। जहां इससे सबसे अधिक मौत हुई हैं।
आंकड़ों के अनुसार भारत में साल 2017 में खराब मौसम के कारण आई बाढ़, भारी बारिश और तूफान ने 2,736 लोगों की जान ले ली। 2017 के आंकड़ों में भारत पहले स्थान पर है। यह रिपोर्ट जर्मनवॉच ने जारी की है। यह एक स्वतंत्र विकास संगठन है। साल 2017 के आंकड़े के मुताबिक प्यूर्टो रिको पहले नंबर पर है। जहां सितंबर, 2017 में आए मारिया तूफान ने 2,978 लोगों की जान ले ली।
20 सालों का ये आंकड़ा साल 1998 से 2017 तक का है। इसके अनुसार खराब मौसम की घटनाओं से भारत में हर साल औसतन 3,660 लोगों की मौत होती है। इस समय अवधि में कुल 73,212 लोगों की जान गई है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि भारत में हाल ही में कई दुर्घटनाएं हुई हैं। जैसे ओडिशा में चक्रवात आना, कई अन्य तूफान आना, बाढ़ और भूस्खलन आना, भारी बारिश होना और अधिक गर्मी पड़ना।
रिपोर्ट में शामिल आंकड़ों में प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, सुनामी और ज्वालामुखी के कारण हुई मौतों को शामिल नहीं किया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह सब जलवायु परिवर्तन के कारण नहीं होता है। खराब मौसम से हुई घटनाओं से धन की भी काफी हानि होती है। बीते दो दशकों में भारत को 67.2 बिलियन डॉलर की हानि हुई है। वहीं वैश्विक तौर पर 3.47 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।
इस रिपोर्ट ने भारत को जलवायु परिवर्तन के कारण अधिकतम जोखिम वाले देशों की सूची में 14वें स्थान पर ला दिया है। इसके अलावा प्यूर्टो रिको, हौण्डुरस और म्यांमार में सबसे ज्यादा चक्रवात आदि आए हैं, जिससे काफी लोगों की जान भी गई। इससे पूरी जनसंख्या को ही जोखिम वाले स्थान पर रहने वाला बताया गया है।
तीन साल पहले इसपर बनी थी सहमति
साल 2015 में ऐतिहासिक पैरिस समझौते के तहत तापमान में बढ़त को दो डिग्री तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित करने पर सहमति बनी थी। लेकिन इस लक्ष्य में अधिक सफलता नहीं मिल पाई है। कहा जा रहा है कि कई देश इस समझौते में बताए नियमों की अवहेलना कर रहे हैं।
बजट भी बढ़ा
विश्व बैंक ने साल 2021-25 के लिए जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए फंडिंग को दोगुना कर दिया है। फंड को दोगुना कर 200 अरब डॉलर कर दिया गया है। इस बात का ऐलान जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के समिट में किया गया। यानी इन पांच सालों में जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए 200 अरब डॉलर खर्च किए जाएंगे। विश्व बैंक ने एक बयान जारी करते हुए कहा था कि करीब 100 अरब डॉलर तो सीधे बैंक से फंड किए जाएंगे। इसके अलावा बाकी बचे फंड को दो विश्व बैंक की एजेंसी से जुटाया जाएगा।
छोटे देश डाल रहे दबाव
जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के तापमान में वृद्धि हो रही है। इसका असर सामान्य मौसम पर भी पड़ रहा है। इस समस्या से दुनिया के सभी देश चिंतित हैं। खासतौर पर छोटे और गरीब देश। इसके अलावा ये देश विकसित और अमीर देशों पर भी दबाव डाल रहे हैं कि साल 2015 में पैरिस समझौते के दौरान हुए वादों को वह पूरा करें।
दुनियाभर में दिख रहा परिणाम
जलवायु परिवर्तन के घातक परिणाम का शिकार कोई एक नहीं बल्कि कई देश हो रहे हैं। दुनियाभर में समुद्र का जल स्तर बढ़ता जा रहा है। इसके अलावा जंगलों में भी भीषण आग, लू और तूफान जैसी खबरें आ रही हैं। इन सबसे न केवल संपत्ति बल्कि जान माल को भी काफी नुकसान पहुंच रहा है। जिसका सीधा प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था और विकास पर पड़ता है।