खुरमी से लेकर सोहारी तक, ये हैं छत्तीसगढ़ के फेमस पकवान
तसमई- छत्तीसगढ़ी तसमई खीर जैसा व्यंजन है. दूध, चावल का यह पकवान हर अवसर में बनता है फिर चाहे खुशी हो या फिर गम.
खुरमी- गेहूं और चावल के आटे के मिश्रण से बनी मीठी छत्तीसगढ़ी लोगों लोकप्रिय व्यंजन है. गुड़ चिरौंजी दाना और नारियल इसका स्वाद बढ़ा देते हैं.
पपची- गेहूं-चावल के आटे से बनी पपची बालूशाही को भी मात दे सकती है. मीठी पपची मंद आंच में सेके जाने से कुरमुरी और स्वादिष्ट बन जाती है.
अइरसा- चावल आटा और गुड़ की चाशनी से बना छत्तीसगढ़ी पकवान है. इसका स्वाद वाकई में लाजवाब है.
देहरौरी- दरदरे चांवल और चाशनी में भींगी देहरौरी को रसगुल्ले का देसी रूप कह सकते हैं. हालांकि अब यह मीठा पकवान कम ही बनता है.
फरा- फरा पके हुए चावल का बनाया जाता है. जबकि मीठे में गुड़ का घोल मिलाया जाता है फिर भाप में पकाया जाता है. वहीं नमकीन फरे को भाप में पकाकर बघार लगाकर खाया जाता है.
चौसेला- हरेली, पोरा, छेरछेरा त्यौहारों में चावल के आटे से तलकर तैयार किया जाने वाले इस पकवान का जायका गुड़ व आचार बढ़ा देते हैं. यह नमकीन और मीठा दोनों तरह के बनते हैं.
गुलगुला- ये मीठा व्यंजन है जिसे गेहूं के आटे में गुड़ से बनाया जाता है. इसमें आटे के घोल में गुड़ डालकर तेल में तला जाता है.
ये हैं छत्तीसगढ़ के नमकीन पकवान
ठेठरी- लम्बी या गोल आकृति वाला यह नमकीन व्यंजन बेसन से बनता है. यह विशेषकर तीज के त्योहार में बनने वाला पकवान है. मध्यप्रदेश में भी इसे बड़े शौक से बनाया और खाया जाता है.
करी- करी, बेसन का मोटा सेव है, इसे नमक डालकर नमकीन करी बनाते हैं. बिना नमक के करी से गुड़ वाला मीठा लड्डू बनता है. दुःख-सुख के अवसरों में करी का गुरहा लड्डू बनाया जाता है.
अंगाकार – अंगार में पकाई गई गेहूं और चावल की मोटी रोटी होती है. इसे कोयले या फिर कंडे की आग में सेंककर पकाया जाता है.
सोहारी- शादि-ब्याह और भोज में पतली और बड़ी पूरी-सोहारी बनाई जाती है. इसी तरह से मैदे का पूड़ा भी बनता है जिसे शादी ब्याह के मौके पर ससुराल पक्ष को भेजा जाता है.
बरा या बड़ा- उड़द दाल से बने इस व्यंजन का शादि-ब्याह और पितर में विशेष चलन है. इसे बनाने के लिए उड़द और मूंग दाल को भिगोकर पीसा जाता है. फिर इसमें कुछ मसाले मिलाकर बड़े के आकार में तला जाता है. इसे सादा या फिर नमक मिले पानी में डालकर भी खाया जाता है.
चीला- चावल के आटे में नमक डालने से नुनहा चीला बनता है और घोल में गुड़ डाल देने से गुड़हा चीला. इन दोनों चीले का स्वाद हरी मिर्च और चटनी से बढ़ जाता है.
लाल चींटी की चटनी– छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में लाल चींटी, जिसे देहाती भाषा में मटा बोला जाता है, की चटनी बहुत खाई जाती है. दरअसल, यह चींटी न होकर इसके अंडे से बनती है.