खेल संघों पर नेताओं नौकरशाहों का बोलबाला
दस्तक ब्यूरो
भारतीय खेल जगत में आजकल लोढ़ा समिति को लेकर खूब चर्चा हो रही। देश में खेलों को चलाने वाली कई संस्था दशहत में जी रही है। दरअसल भारतीय क्रिकेट कट्रोल बोर्ड पर लगाम लगाने के लिए लोढ़ा समिति बेहद कारगर साबित हुई। लोढ़ा समिति को लेकर शुरू में दुनिया का अमीर बोर्ड इससे बचने के लिए कई रास्ते तलाश रहा था लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद बीसीसीआई के कुनबे की पूरी तसवीर बदल गई। भारत में क्रिकेट को चलाने वाली संस्था बीसीसीआई को आखिर सुप्रीम कोर्ट के आगे झुकना पड़ा। लोढ़ा समिति के आगे बोर्ड की एक नहीं चली। यह बात सौ फीसदी सच है कि लोढ़ा समिति को लागू न करने के लिए बीसीसीआई ने तमाम कोशिश की लेकिन बाद में उसकी हार हुई। इस समिति के आने के फौरन बाद बीसीसीआई के कई आला आधिकारियों का बोरिया बिस्तर बंध गया। इतना ही नहीं बीसीसीआई के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर को तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि जो भी लोढ़ा समिति को नहीं मानेगा उसे बाहर का रास्ता देखना होगा। खैर लोढ़ा समिति के आने के बाद बीसीसीआई की पूरी तस्वीर बदल गई। बोर्ड के कुनबे में कई नये मेहमान जुड़ गये हैं। दूसरी ओर इस कमेटी के सहारे भारतीय क्रिकेट के पूर्व कप्तान अजहर भी क्रिकेट में लौटने का मन बना चुके थे। इसी के तहत उन्होंने हैदरबाद क्रिकेट एसोसिएश्न का चुनाव लड़ने की ठानी थी लेकिन उनका नामांकन रद कर दिया गया। क्रिकेट के जानकारों की मानें तो यह जानबूझकर किया गया ताकि अजहर को जोड़ने से रोका जाये। बहरआल लोढ़ा समिति की देख-रेख में भारतीय क्रिकेट अब आगे बढ़ने की ओर अग्रसर है। खेलों के जानकारों की मानें तो लोढ़ा समिति की चपेट में क्रिकेट ही नहीं देश के कई और खेल संघों को आना पड़ सकता है। दरअसल क्रिकेट के बाद यह भी तय हो गया है कि भारतीय खेल संघों को भी अब लोढ़ा समिति के दायरे में आना होगा। अगर यह सच साबित हुआ तो देश में खेलों का कायाकल्प होना लगभग तय है। इतना ही नहीं, बरसों से खेल संघों पर काबिज नेता, नौकरशाहों और खेल माफियाओं को जाना पड़ सकता है। मौजूदा दौर में अगर भारतीय खेल जगत पर नजर दौड़ायी जाये तो लगभग हर खेल संघों पर देश के राजनेता विराजमान हैं। इसके साथ नेताओं के साथ नौकरशाहों और जिनका खेलों से कुछ भी लेना-देना नहीं है वह खेल संघों की कुर्सी पर काबिज होकर मलार्ई काट रहे हैं। ऐसे उनको अब लोढ़ा समिति का खौफ सता रहा है। देश में दर्जन भर ऐसे खेल संघ हैं जो खेल माफियों के चंगुल में फंसे हुए है। जूडो से लेकर फुटबॉल संघों में नेताओं का बोलबाला है। यही राजनीतिक दल के नेता खेल संघों में जमकर लूट खसोट में इतने आगे निकल जाते हैं कि इनको खिलाड़ियों का दर्द का एहसास तक नहीं होता है। पैसों के अम्बार पर बैठने वाले खेल संघों पर राजनेता केवल अपनी जेब भरने में लगे रहते हैं। बीसीसीआर्ई में लोढ़ा समिति के लागू होने के बाद यह सवाल उठने लगा है कि अन्य खेलों में इसे क्यों न लागू किया जाये। इसको लेकर कोर्ट में याचिका दायर की गई। इस याचिका को दायर करने वालों में कई बड़े खिलाड़ी शामिल हैं। उनमें सबसे प्रमुख पूर्व भारतीय क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी से लेकर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के पुत्र और ओलम्पियन अशोक ध्यान चंद का नाम भी शामिल है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट भी काफी गम्भीर दिख रहा है।
लोढ़ा समिति के इतिहास पर गौर किया जाये तो इतना तो साफ है कि दुनिया का सबसे अमीर बोर्ड बीसीसीआई ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वह इसके दायरे में आ जायेगा। बीसीसीआई शुरू से ही लोढ़ा समिति के खिलाफ रहा है। उसकी पूरी कोशिश थी कि वह इससे बचने के लिए कई तरह की तरकीब निकालने में जुटा रहा लेकिन बाद में उसे मायूसी हाथ लगी। बीसीसीआई का सारा खेल आईपीएल में चल रहे स्पॉट फिक्सिंग के सामने आने के बाद हुआ। इसके बाद जांचों का सिलसिला शुरू हुआ। पहले मुकद्ल कमेटी बनी, बाद में यह लोढ़ा समिति की शक्ल में सामने आ गई। जानकारों की माने तो इसके आने के बाद भारतीय खेल संघों पर भी अब तलवार लटकने लगी है क्योंकि देश के हर खेल संघों पर भ्रष्टाचार का खेल चरम पर रहा है। देश के कई बड़े खेल संघ नेताओं, नौकरशाहों जैसे लोगों की जागीर बन चुके हैं। आलम तो यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अब केंद्र सरकार से पूछ लिया है कि क्यों न लोढ़ा समिति की सिफारिशें अन्य खेलों में लागू कर दी जायें। इसके बाद भारतीय खेल जगत में दहशत का माहौल देखा जा सकता है। दरअसल लोढ़ा समिति में कुछ ऐसी बातें हैं जो अन्य खेल संघों को परेशान कर रही है। उनमें सबसे प्रमुख है राजनेताओं अथवा मंत्रियों को खेलों से अलग-थलग करने की बात की गई जबकि इसमें उम्र को लेकर भी कुछ फैसले किये गये है यानी कोर्ई भी पद पर बैठा आधिकारी 70 साल का नही होना चाहिए। देश के अधिकत्तर खेल संघों पर राजनेताओं का कब्जा है। हॉकी, बैडमिंटन, जूडो, फुटबॉल जैसे बड़े खेल राजनेताओं के पाले में है। यही राजनेता इसी खेल के सहारे में अपने रसूक का खूब इस्तेमाल करते हैं। यही कारण है कि विश्व स्तर पर इन खेलों में भारत सफल नहीं होता पाता है। अगर खिलाड़ी सफल भी होता है इसमें संघ का रोल न के बराबर होता है। देश के जाने माने नेता विजय कुमार मल्होत्रा करीब 42 साल से इंडियन आर्चरी संघ के अध्यक्ष पद पर काबिज है। मल्होत्रा बीजेपी के जाने-माने चेहरा माने जाते हैं, अगर लोढ़ा समिमि लागू हुई तो इनका जाना भी तय है।
फुटबॉल में पहले कांग्रेस के प्रिरंजन दास मुंशी, अब प्रफुल्ल पटेल, जूडो में जगदीश टाइटलर जूडो संघ में 27 साल से कुंडली मारकर बैठे हुए है। इतना ही नहीं यूपी में तो इससे बुरा हाल है। यहां तो पूरा खेल संघों का कुनबा राजनेताओं और नौकरशाहों की जागीर बन गया खेल संघ जो हटने का नाम ही नहीं ले रहा है। आईएएस और राजनेताओं का गढ़ बन गया यूपी में खेल संघ। इतना ही नहीं इस बैठने वाले लोग एकदम फेवीकाल की तरह चिपक गये हैं। उत्तर प्रदेश में डॉ.अखिलेश दास गुप्ता और आर.पी. सिंह जैसे कुछ चुनिंदा पूर्व खिलाड़ी ही हैं जो खेल संघों में अपनी जगह बना पाये हैं वरना ज्यादातर का खेल से दूर-दूर का कोई लेना-देना नहीं है। पूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी होने का अनुभव होने के नाते डॉ.अखिलेश दास बैडमिंटन में और आर.पी. सिंह हॉकी में विश्व स्तर पर नित नये कीर्तिमान गढ़ रहे हैं। लोढ़ा समिति की सिफारिशें ठीक से लागू कर दी जायें तो और खेलों का भी उद्धार हो सकता है। ल्ल