प्रयागराज : गंगा तट पर करीब 1100 लोग अवधूत संन्यासी बनने की प्रक्रिया में रविवार को शामिल हुए। अवधूत संन्यासी बनने के लिए गंगा के तट पर इनका मुंडन और जनेऊ संस्कार किया गया। जूना अखाड़े के महात्मा और दिल्ली संत महामंडल के अध्यक्ष आगत्स्य गिरि ने बताया कि संन्यासी बनने का रविवार को प्रथम चरण है जिसमें पहले इनका (1100 लोगों का) मुंडन कराया गया, फिर स्नान कराया गया और जनेऊ धारण कराया गया। उन्होंने बताया कि इसके उपरांत इन्हें दंड और कमंडल दिया गया जिसे लेकर ये पूरी रात बैठेंगे और हवन में शामिल होंगे। सबसे अधिक जूना अखाड़े में लोग संन्यासी बनते हैं। रविवार को शामिल हुए लोगों की संख्या करीब 1100 है। गिरि ने बताया कि 13 अखाड़ों में से जूना, आवाहन, अटल, महानिर्वाणी, निरंजनी समेत केवल 6 अखाड़ों में संन्यास दिलाया जाता है। दूसरे अखाड़ों में संन्यास की प्रक्रिया चल रही है। पूरे कुंभ में केवल दो बार संन्यास दिलाया जाता है।
संन्यास लेने वालों में गृहस्थ आश्रम छोड़कर आए लोगों के साथ ही कई युवा भी शामिल हैं। एक अन्य महात्मा ने बताया कि संन्यास की प्रक्रिया के तहत इन लोगों के कपड़े उतार लिए जाते हैं और एक सफेद कपड़ा जो ओढ़ाया जाता है, उसी में से फाड़कर कोपीन या लंगोट बांध दी जाती है। इनकी यह मृतक वाली क्रिया है और अब ये अपनी गृहस्थ क्रिया से अलग हो गए। उन्होंने बताया कि रात्रि 12 बजे हवन शुरू होगा जिसमें ये सभी लोग हाथ में दंड और कमंडल लेकर शामिल होंगे और रातभर हवन करेंगे। इसके बाद भोर में 4 बजे ये गंगा में 108 डुबकी लगाएंगे जिसके पश्चात अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर इन्हें अवधूत संन्यास की दीक्षा देंगे।